पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी । नए घर में प्रवेश से पूर्व वास्तु शांति अर्थात यज्ञादि धार्मिक कार्य अवश्य करवाने चाहिए। वास्तु शांति कराने से भवन की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है, तभी घर शुभ प्रभाव देता है। जिससे जीवन में खुशी व सुख-समृद्धि आती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार मंगलाचरण सहित वाद्य ध्वनि करते हुए कुलदेव की पूजा व बडो का सम्मान करके और ब्राह्मणों को प्रसन्न करके गृह प्रवेश करना चाहिए।
आप जब भी कोई नया घर या मकान खरीदते है तो उसमे प्रवेश से पहले उसकी वास्तु शांति करायी जाती है। जाने अनजाने हमारे द्वारा खरीदे या बनाये गये मकाने में कोई भी दोष हो तो उसे वास्तु शांति करवा के दोष को दूर किया जाता है। इसमें वास्तु देव का ही विशेष पूजन किया जाता है। जिससे हमारे घर में सुख शांति बनी रहती है।
“वास्तु” का अर्थ है — मनुष्य और भगवान का रहने का स्थान। वास्तु शास्त्र प्राचीन विज्ञान है जो सृष्टि के मुख्य तत्वों के द्वारा निःशुल्क देने में आने वाले लाभ प्राप्त करने में मदद करता है।
ये मुख्य तत्व हैं – आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु।
वास्तु शांति : यह वास्तव में दिशाओं का, प्रकृति के पांच तत्वों के, प्राकृतिक स्त्रोंतों और उसके साथ जुड़ी हुइ वस्तुओं के देव हैं। हम प्रत्येक प्रकार के वास्तु दोष दूर करने के लिए वास्तु शांति करवाते हैं। उसके कारण ज़मीन या बांधकाम में, प्रकृति अथवा वातावरण में रहा हुआ वास्तु दोष दूर होता है।
वास्तु दोष हो वैसी मकान में कोइ बड़ा भाग तोड करने के लिए वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा करने में आती है।
नियम के हिसाब से परिस्थिति में प्रकृति या वातावरण के द्वारा होने वाली खराब असर को टालने के लिए आपको एक निश्चित वास्तु शांति करनी चाहिए।
गृह प्रवेश के पूर्व वास्तु शांति कराना शुभ होता है। इसके लिए शुभ नक्षत्र वार एवं तिथि इस प्रकार हैं-
* शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, व शुक्रवार शुभ हैं।
* शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी।
*शुभ नक्षत्र- अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, उत्ताफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, स्वाति, अनुराधा एवं मघा।
* अन्य विचार- चंद्रबल, लग्न शुद्धि एवं भद्रादि का विचार कर लेना चाहिए।
क्या है वास्तु शांति की विधि?
* स्वस्तिवचन, गणपति स्मरण, संकल्प, श्री गणपति पूजन, कलश स्थापन और पूजन, पुनः-वचन, अभिषेक, शोडेशमातेर का पूजन, वसोधेरा पूजन, औशेया मंत्रजाप, नांन्देशराद, आचार्य आदे का वरेन, योग्ने पूजन, क्षेत्रपाल पूजन, अग्ने सेथापन, नवग्रह स्थापन और पूजन, वास्तु मंडला पूजल और स्थापन, गृह हवन, वास्तु देवता होम, बलिदान, पूर्णाहुति, त्रिसुत्रेवस्तेन, जलदुग्धारा और ध्वजा पताका स्थापन, गतिविधि, वास्तु पुरुष-प्रार्थना, दक्षिणा संकल्प, ब्राह्मण भोजन, उत्तर भोजन, अभिषेक, विसर्जन उपयुक्त वास्तु शांति पूजा के हिस्सा है।
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जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
9993874848