काल पुरुष की कुंडली में “सप्तम भाव” या विवाह और दाम्पत्य जीवन का वर्णन करता है कि आपको जीवन में दांपत्य कलह या मधुरता क्या मिलना है “इस भाव” में यदि क्रूर पापी ग्रह राहु केतु सूर्य मंगल विराजमान हो या केतु की 5,7, 9वीं दृष्टि हो तब दांपत्य कलह की सम्भावना 90% रहती है तो आपको वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
सूर्य, शनि और राहु अलगाववादी स्वभाव वाले ग्रह हैं, वहीं मंगल और केतु मारणात्मक स्वभाव वाले ग्रह हैं। ये सभी दांपत्य-सुख के लिए हानिकारक होते हैं। कुंडली में सप्त या सातवां घर विवाह और दांपत्य जीवन से संबंध रखता है। यदि इस घर पर पाप ग्रह या नीच ग्रह की दृष्टि रहती है तो वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यदि जन्म कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, द्वादश स्थान स्थित मगंल होने से जातक को मंगली योग होता है इस योग के होने से जातक के विवाह में विलंब, विवाहोपरांत पति-पत्नी में कलह, पति या पत्नी के स्वास्थ्य में शिथिलता, तलाक और क्रूर मंगली होने पर जीवन साथी की मृत्यु तक हो सकती है।
यदि चंद्रमा पाप ग्रह के साथ राहु से युक्त होता है और पांचवें या फिर आठवें स्थान में हो तो कलह योग बनता है। ऐसे जातक को पूरा जीवन किसी न किसी बात को लेकर घर में कलह होता है।
चंद्रमा में जब शनि, मंगल और राहु एक साथ आ जाता है तब भी कलह का योग बनता है। जब कुंडली में चंद्रमा के साथ शनि-मंगल बैठ गया तो जातक ज्ञानी होते हैं।
अगर कुंडली में चंद्रमा के साथ शनि और राहु बैठ जाए तो जातक के मन में वैराग्य आ जाता है।
यदि पति हमेशा अप्रसन्न रहता हो, पत्नी की बातों पर ध्यान न देता हो, हमेशा खोया-खोया सा रहता हो जिसके कारण वैवाहिक जीवन में कलह उत्पन्न हो रही हो तथा सारे प्रयत्न निष्फल हो रहे हाें तो पत्नी पति की अनुकूलता के लिए श्रद्धा विश्वास पूर्वक भगवान शंकर एवं माता पार्वती का ध्यान करके सोमवार से निम्न मंत्र का एक माला जप करे।
मंत्र : ॐ क्लीं त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पतिवेदनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्षीय मामृतात् क्ली ॐ।।
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जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
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