पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी । भगवान श्रीनारायण ने ही तुलसी के शाप से शालिग्राम का रूप ग्रहण किया है। शालिग्राम शिला का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्व है, श्रीमद्देवीभागवत में शालिग्राम शिला का महत्व बताते हुए कहते हैं कि जहां शालिग्राम की शिला रहती है, वहां भगवान श्री हरि विराजमान रहते हैं और वहीं पर भगवती लक्ष्मी भी सभी तीर्थों को साथ लेकर सदा निवास करती हैं। ब्रह्महत्या आदि जो भी पाप है, वह सब शालिग्राम शीला के पूजन से नष्ट हो जाते हैं। व्रत, स्नान, प्रतिष्ठा, श्राद्ध तथा देव पूजन आदि जो भी कर्म शालिग्राम की सन्निधिमें किया जाता है, वह प्रशस्त माना जाता है और उसके कर्ता मानो सभी तीर्थों में स्नान कर चुका और सभी यज्ञों में दीक्षित हो गया, इस प्रकार उसे संपूर्ण यज्ञ, तीर्थों व्रतों और तपस्याओं का फल मिल जाता है।
चारों वेदों के पढ़ने तथा तपस्या करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य शालिग्राम की शिला के पूजन से निश्चित रूप से सुलभ हो जाता है। जो मनुष्य शालिग्राम के जल से नित्य अभिषेक करता है, वह सभी दान करने तथा पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो पुण्य होता है, उसे प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य शालिग्राम शिला के जल का नित्य पान करता है, वह देवाभिलषित प्रसाद प्राप्त कर लेता है, इसमें संदेह नहीं है। समस्त तीर्थ उसका स्पर्श करना चाहते हैं। वह जीवन मुक्त तथा परम पवित्र मनुष्य, अंत में भगवान श्री हरि के लोक को चला जाता है, वहां पर भगवान श्री हरि के साथ असंख्य प्राकृत प्रलय पर्यंत रहता है। वह वहां भगवान का दास्य भाव प्राप्त कर लेता है और उनके सेवा कार्य में नियुक्त हो जाता है।
ब्रह्महत्या सदृश जो कोई भी पाप हो, वह भी उस व्यक्ति को देखते ही उसी प्रकार भाग जाते हैं, जैसे गरुण को देखकर सर्प। उस मनुष्य के चरण की रजसे पृथ्वी देवी तुरंत पवित्र हो जाती है और उसके जन्म से उसके लाखों पितरों का उद्धार हो जाता है। जो मनुष्य मृत्यु के समय शालिग्राम शिला के जल का पान कर लेता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर, विष्णु लोक को चला जाता है। इस प्रकार वह सभी कर्मों से मुक्त होकर निर्वाण मुक्ति प्राप्त कर लेता है और भगवान विष्णु के चरणों में लीन हो जाता है, इसमें संशय नहीं है। शालिग्राम को हाथ में लेकर जो मनुष्य मिथ्या वचन बोलता है, वह कुंभीपाक नरक में जाता है और ब्रह्मा की आयु पर्यंत वहां निवास करता है। जो महाज्ञानी व्यक्ति शालिग्राम तुलसी और शंख को एकत्र रखता है, वह भगवान श्रीहरि के लिए अत्यंत प्रिय हो जाता है।
जोतिर्विद दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
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जयलक्ष्मी नारायण