वसंत पंचमी के पावन अवसर पर विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा पर विशेष…

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

‘हे परमेश्वरी भगवती माँ शारदा! जो कुंदपुष्प, चंद्र और बर्फ के श्वेत हार से सुशोभित हैं और श्वेत वस्त्रों से आवृत हैं, जिनके हाथों में श्रेष्ठ वीणा शोभायमान है, जो स्वयं प्रभा के समान उज्जवल श्वेत कमल पर विराजमान हैं और जिनकी सदा सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, सृष्टिभर्ता विष्णु और हर्ता देवाधिदेव महेश वन्दना करते रहे हैं। दिव्य ज्ञानपूँज से महिमामंडित परमेश्वरी माँ सरस्वती! आप मेरे समस्त अवगुणों को दूर कर अपने ज्ञान प्रकाश से सदैव मेरी रक्षा करें।’

वसन्त ऋतु के साथ ज्ञानदायिनी माँ भारती का परस्पर बहुत ही गहरा सम्बन्ध है। ‘सरस्वती’ शब्द का मेल ही (स+रस+वती) अर्थात ‘रस से परिपूर्ण प्रकृति’ माना जाता है। ऋतुराज वसंत के आते ही उसके स्वागत हेतु प्रकृति का कण-कण अपनी सरंग मधुरता के साथ खिल उठते हैं। मानव तो क्या? तरु-पादप और पशु-पक्षी तक, सब के सब जीवन के नव उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन का सूर्य भी कुछ नयापन के साथ उदित होता है। दिन भर अपनी मधुरता व नयी चेतना से प्रकृति के समस्त उपादनों को जीवन्तता बनता है, उसे हँसाता है और फिर अगले दिन पुनः आने का रंगीन आश्वासन देकर दूर कहीं और भी चला जाता है। सबके मन में नव उमंग पारंगत होने लगता है।

हर घड़ी ऐसा लगता है कि ऋतुराज वसंत चुपके से आकर कानों में मौन-मूक कुछ न कुछ जरूर ही कहा है। इसी बीच अपने इर्द-गिर्द श्रेष्ठ वीणा के तारों के मधुर मौन झंकार को सुनकर प्रकृति अपने नव पल्लवों, नव पुष्पों, नव भंवरों के साथ मंद शीतल पवन के साथ इठलाती नृत्य करने लगती है। ऐसी मधुर रंग-बिरंगी सुसज्जित प्रकृति को देख कर ही ऋतुराज वसंत के विशेष आमंत्रण पर वसंत पंचमी के दिन माँ भारती श्वेत हंस पर सवार, अपने कोमल हाथों में वीणा को धारण किये, पीताभ वस्तों से सुसज्जित होकर धरती पर अवतरित होती है, ताकि वह ऋतुराज वसंत के अनुयायियों को ‘नव गति, नव लय, ताल-छंद नव’ प्रदान कर सकें।
चंद्रवदनि पद्मासिनी, ध्रुति मंगलकारी।
सोहें शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी।।

वसंत पंचमी अर्थात माघ शुक्ल पंचमी को ज्ञान और कला की देवी माँ वागेश्वरी भगवती सरस्वती का जन्मदिन माना जाता है। इसी माघ शुक्ल पंचमी के पावन दिवस से त्रेता युग में श्रीराम की शिक्षा-दीक्षा प्रारम्भ हुई थी। फिर जीवन के पूर्वार्द्ध के महामूर्ख कालिदास अपनी विद्वत पत्नी से अपमानित होकर एक जलाशय के तट पर आत्महत्या की भावना से प्रेरित होकर पहुँचे।

पर इसी माघ शुक्ल पंचमी के दिवस ज्ञानदायिनी माँ सरस्वती उन्हें वैसा करने से रोकी और और उसी जलाशय में डुबकी लगाते ही उन्हें ज्ञानवान की वरदान दिन। फिर कालांतर में वे संस्कृत के एक महान कवि बन गए। इसी माघ शुक्ल पंचमी के दिन ही पीले वस्त्रों को धारण कर भगवान श्रीकृष्ण ने सत् -ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की पूजा की थी।

वैसे भी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पीले रंग का सम्बन्ध गुरु ग्रह से है, जो ज्ञान, धन और शुभता के कारक माने जाते हैं। यह पर्व भारतीय जनजीवन और भारतीय संस्कृति को प्राचीन काल से ही प्रभावित करते आ रहा है। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि अपने अन्त: करण को निर्मल करने के लिए ब्रह्म-विद्या के रूप में माँ सरस्वती देवी की उपासना किया करते थे।

उसी के अनुरूप आज भी सभी कलाकारों, शिक्षाविदों, शिक्षा-प्रशिक्षुओं, कवियों, लेखकों, गायकों, वादकों, नाटककारों, नृत्यकारों आदि के लिए वसन्त पंचमी या माघ शुक्ल पंचमी का दिन कला की देवी माँ सरस्वती की विशेष आराधना ही का दिन होता है। इनकी वन्दना ही कलाकारों को ‘नयी गति, नव लय-ताल’ तथा कलमकारों को ‘नव छंद’ प्रदान करती है।

वर दे वीनावादिनी वर दे।
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !

माँ वाणिश्वरी की आराधना सम्बन्धित इतिहास बहुत ही पुराना है। ऋग्वेद में माँ सरस्वती ही ‘वाग्देवी’ के रूप पूजित हुई हैं। इसी तरह से भारतीय प्राचीन शास्त्रों में इन्हें ही विद्या, प्रत्यभिज्ञा, मेधा, तर्क शक्ति तथा वाणी की देवी के रूप में स्वीकार किया गया है। यह शास्त्र सम्मत है कि माँ शारदा की आराधना से प्राणिमात्र के मन और मस्तिष्क में सत् ज्ञानजन्य सकरात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे उसकी जड़ता विलीन हो जाती है और वह सभी सद् गुणों और सत् ज्ञानों को प्राप्त कर इस लोक में श्रेष्ठता को प्राप्त करता है। महर्षि बाल्मीकि व आदिकवि कालिदास की जीवनी सबको विदित ही है।

वेदांत परंपरा के प्रवर्तक और महान भारतीय दार्शनिक जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी माँ सरस्वती को ‘माँ शारदा’ के नाम से ही संबोधित किया था। उन्होंने अपने द्वारा स्थापित चार पीठों में से एक पीठ को माँ सरस्वती के प्रति समर्पित कर उसका नाम ‘शारदापीठ’ रखा है। आधुनिक संदर्भ में महर्षि अरविन्द ने सात्विक स्वभाव और गुण वाले पात्र को ही माँ सरस्वती की कृपा का अधिकारी माना है और माँ सरस्वती को ही कर्मशक्ति और सिद्धिशक्ति का प्राणाधार माना है।

उनका कहना है कि – ‘महासरस्वती माता की कर्म शक्ति और सिद्धि और सुव्यवस्था में उनकी प्राणशक्ति है। महासरस्वती सब शक्तियों के सार्थक संयोजन तथा निश्चितार्थ की संप्राप्ति और संपूर्ण के विषय में अव्यर्थ यथायोग्य अनुष्ठान का पर्यवेक्षन करती हैं । सभी विद्या, कला और ज्ञान कौशल महासरस्वती के साम्राज्य के अन्तर्गत हैं। माता सरस्वती का वाहन हंस है, जो नीर – क्षीर विवेकी और सात्विक स्वभाव का है। इसका आशय यह है कि सरस्वती की कृपा का अधिकारी वही है जो सात्विक स्वभाव और गुण धर्म वाला हो।’

चन्द्रार्क-कोटिघटितोज्ज्वल-दिव्य-मूर्ते!
श्रीचन्द्रिका-कलित-निर्मल-शुभ्रवस्त्रे!
कामार्थ-दायकलि-हंस-समाधिरूढ़े।
वागीश्वरि! प्रतिदिनं मम रक्ष देवि!।।

माँ सरस्वती विद्या, बुद्धि और विवेक की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है, जिनकी उपासना केवल सनातन वैदिक धर्मावलम्बी ही नहीं, बल्कि जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायी भी करते रहे हैं। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पंचमी को जैन ‘ज्ञानपंचमी’ या ‘श्रुत पंचमी’ भी कहते हैं और उस दिन ‘श्रुतदेवी’ (माँ सरस्वती) एवं शास्त्रों की विधिवत् पूजा का विधान दिगम्बर जैन परम्परा में है

जबकि कार्तिक शुक्ल पंचमी को ‘श्रुत देवी’ की पूजा का विधान श्वेताम्बर जैन परम्परा में है। श्रुतदेवी (माँ सरस्वती) की सबसे प्राचीन प्रतिमा मथुरा के ‘कंकाली टीले’ से प्राप्त हुई है, जिसे 132 ईo का माना गया है। जैन परम्परा के अंतर्गत भी मानवीय बुद्धि, प्रज्ञा, मनोवृति आदि की संरक्षिका माँ सरस्वती को ही माना गया है, जिनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
बौद्ध ग्रंथों में ज्ञानदायिनी माँ सरस्वती को महासरस्वती, वङ्कावीणा, वङ्काशारदा सरस्वती, आर्य सरस्वती, वङ्का सरस्वती आदि के रूप में आराधना की गई है। यहाँ तक कि रोम की ‘देवी एथेना’ को भी माँ सरस्वती का ही समाकृति बताया गया है। दक्षिण एशिया के अलावा थाइलैण्ड, इण्डोनेशिया, बाली, जापान एवं अन्य देशों में भी माँ सरस्वती की पूजा विविध रूपों में होती है।

सबकी सत् ज्ञान सम्बन्धित सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली और विद्या-ज्ञानजनित कार्य में सिद्धता प्रदान करने वाली ज्ञानदायिनी वाणिश्वरी माँ महासरस्वती को मैं सादर सहृदय प्रणाम करता हूँ।
सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी,
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा।

(सरस्वती पूजन दिवस, वसंत पंचमी/माघ शुक्ल पंचमी, 5 फरवरी, 2022)
श्रीराम पुकार शर्मा
ई-मेल सम्पर्क सूत्र – rampukar17@gmail.com

श्रीराम पुकार शर्मा

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