कोलकाता। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी उनके खिलाफ तृणमूल कांग्रेस छोड़ने के बाद दर्ज मामलों में गिरफ्तारी पर रोक के कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और ए.एस. बोपन्ना ने कहा कि हाईकोर्ट की टिप्पणी अंतरिम रोक के समर्थन में है। पीठ ने कहा, हम अनुच्छेद 136 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग करने के इच्छुक नहीं हैं। पीठ ने स्पष्ट किया कि वह मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं करेगी।
पश्चिम बंगाल सरकार के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कल्याण बनर्जी ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया विचार किया कि अधिकारी को उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करके पीड़ित किया जा रहा है। उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा कि एक व्यापक आदेश पारित किया गया था, ताकि भविष्य में कुछ भी हेरफेर नहीं किया जा सके। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में अधिकारी को गिरफ्तार करने से पहले राज्य सरकार को अदालत की अनुमति लेनी होगी।
वकील ने इस बात पर जोर दिया कि आदेश के तर्क कानूनन टिकाऊ होने चाहिए, जो इस मामले में नहीं थे।अधिकारी पर कथित तौर पर गुंडागर्दी करने, एक गैरकानूनी सभा इकट्ठा करने और अन्य बातों के अलावा कोविड-19 दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था। उन्होंने यह दावा करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था कि पश्चिम बंगाल सरकार चार अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में उनके खिलाफ छह प्राथमिकी दर्ज करके पुलिस तंत्र का दुरुपयोग कर रही है।
राज्य सरकार के वकील ने तर्क दिया कि केवल इसलिए कि शिकायतें अधिकारी के तृणमूल से भाजपा में जाने के बाद की गई थीं, इन मामलों को दुर्भावनापूर्ण नहीं कहा जा सकता। अधिकारी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने शीर्ष अदालत के समक्ष बताया कि आदेश पारित होने से पहले हाईकोर्ट की एकल पीठ के समक्ष सुनवाई लगभग एक महीने तक चली थी। उन्होंने कहा कि एक महीने की सुनवाई के बाद जज किसी नतीजे पर पहुंचे, यह कहना अनुचित लगता है।
उन्होंने कहा, अधिकारी ने मौजूदा मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ा और यह एक बड़ा प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया..। हाईकोर्ट ने इस साल सितंबर में देखा था कि राज्य सरकार अधिकारी के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज कर उन्हें फंसाने का प्रयास कर रही है और उन्हें उनके खिलाफ दर्ज छह प्राथमिकी में गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया। अदालत ने कहा कि राज्य हाईकोर्ट के समक्ष जवाबी हलफनामा दाखिल करने और शीघ्र सुनवाई की मांग कर सकती है।