नई दिल्ली : अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के पहले कार सेवक, 1989 में मंदिर शिलान्यास कार्यक्रम में पहली ईंट रखने वाले और वर्तमान में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने 6 दिसंबर 1992 की घटना को याद करते हुए कहा कि उस दिन देशभर से अयोध्या आए कारसेवरक काफी गुस्से में थे और किसी की भी सुन नहीं रहे थे। तीस साल पहले, 6 दिसंबर के दिन अयोध्या में कैसा माहौल था और अचानक लोगों ने गुंबद पर चढ़कर विवादित ढांचे को क्यों और कैसे तोड़ना शुरू कर दिया, इन तमाम घटनाक्रम पर कामेश्वर चौपाल के साथ खास बातचीत के विशेष अंश।
सवाल :- आपको राम मंदिर निर्माण का पहला कार सेवक कहा जाता है। 6 दिसंबर 1992 को भी आप अयोध्या में मौजूद थे। उस दिन वहां क्या माहौल था ? कितने लोग बाहर से आए थे और उनके मन में क्या चल रहा था ?
जवाब :- 6 दिसंबर को हम लोग अयोध्या में ही मौजूद थे। संख्या तो नहीं बता सकता लेकिन भगवान राम की नगरी भक्तों से भरी हुई थी। देश के हर कोने से लोग उस दिन वहां मौजूद थे। सबके मन में एक ही भाव था कि प्रभू राम की जन्मभूमि को इस बार कलंक से मुक्त करके ही जाएंगे।
सवाल :- सभी कारसेवक, उस दिन वहां प्रतीकात्मक कार सेवा के लिए ही जुटे थे, फिर अचानक यह सारा माहौल कैसे बदल गया ?
जवाब :- लोगों के मन में बहुत गुस्सा था। इससे पहले भी कार सेवा के लिए कई बार देश भर से लोगों को बुलाया था। वो हर बार आते थे और ऐसे ही चले जाते थे। कई बार ऐसा लगा कि अदालत के जरिए कोई फैसला आ जाएगा, तो कई बार यह कहा गया कि बातचीत के माध्यम से मसला सुलझने जा रहा है, लेकिन कुछ हो नहीं पा रहा था। सरकार तो पहले से ही इसे उपेक्षा के भाव से देख रही थी और देश के बहुसंख्यक समाज से जुड़े इस मुद्दे के महत्व को ही नकार रही थी। लोगों के मन में इन सारी बातों को लेकर क्रोध था और यह लगातार बढ़ता ही जा रहा था।
सवाल :- मंच पर मौजूद आडवाणी समेत तमाम दिग्गज नेता उस समय क्या कर रहे थे?
जवाब :- आडवाणी और तमाम बड़े नेता लोगों से लगातार भगवान राम की मयार्दा का पालन करने की अपील कर रहे थे। वो कह रहे थे कि भगवान राम की मयार्दा को खंडित नहीं करना है। हम राम की मयार्दा में ही रहकर सारे काम करेंगे। राम ने अपने जीवन में अनुशासन का ही पाठ दिया था और हम सबको इसी रास्ते पर चलना है।
सवाल :- तो कारसेवकों ने उनकी बात क्यों नहीं सुनी?
जवाब :- मैने आपको बताया न कि उस दिन वहां मौजूद सभी लोग गुस्से में थे। वो हर बार की तरह इस बार सिर्फ नेताओं के भाषण सुन कर घर वापस नहीं जाना चाहते थे। उनके मन में यही भावना आ रही थी कि अनुशासन भी दुर्बल को नहीं बचा सकता। समुद्र ने भी शांति से रास्ता मांगने पर भगवान राम को रास्ता नहीं दिया था। इसलिए उन्हे लग रहा था कि अब गुस्सा करने का समय आ गया है। इसलिए वो किसी की भी नहीं सुन रहे थे। ऐसा लग रहा था कि लोग उस समय सारी बातें भूल गए हैं। हरेक के मन में यही भाव था कि प्रभु राम की इस पावन जन्मभूमि को इस बार कलंक से मुक्त करके ही वापस जाएंगे। कोई किसी के संभाले नहीं संभल रहा था। सबको यह लग रहा था कि आज कुछ नहीं किया तो फिर यह कभी नहीं हो पाएगा। अब उन्हे किसी की बात पर भरोसा नहीं हो रहा था और इसलिए उस दिन कारसेवकों ने अपना फैसला स्वयं कर लिया। वास्तव में यह उनके क्रोध और स्वाभिमान का प्रकटीकरण था। वर्षों से हिंदुओं के मन में अपमान, अवमानना और उत्पीड़न का जो क्रोध भरा हुआ था, उस दिन उसका प्रकटीकरण हो गया।
सवाल :- 6 दिसंबर, 1992 को तो उत्तर प्रदेश में आपकी ही सरकार थी लेकिन उससे पहले मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में जो हुआ था, क्या उसे लेकर भी कारसेवकों के मन में कुछ चल रहा था?
जवाब :- मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में गोलीबारी तो एक छोटी घटना थी क्योंकि 492 वर्षों तक राम भक्तों को यातनाएं सहनी पड़ी थी। इसे लेकर 78 बार लड़ाईयां भी हुई और 4 लाख से अधिक राम भक्तों ने अपना बलिदान दिया। 6 दिसंबर, 1992 को जो कुछ भी अयोध्या में हुआ वह इन सबका सम्मिलित गुस्से का प्रकटीकरण था। देशभर से अयोध्या पहुंचे नौजवानों के मन में यह घर कर गया था कि इस बार सिर्फ भाषण सुन कर नहीं लौटना है।
सवाल :- आज के दिन, आप 6 दिसंबर की घटना को लेकर क्या सोचते हैं?
जवाब :- मुझे लगता है कि हर राष्ट्र के जीवन में ऐसा स्वाभिमान का एक काल आना चाहिए क्योंकि राष्ट्र बिना सम्मान, स्वाभिमान और मान बिंदू के सुरक्षित नहीं रह सकता है। मुझे यह भी लगता है कि 6 दिसंबर को अयोध्या में लोगों को जो क्रोध आया वो क्रोध अगर काफी पहले आया होता तो इस देश में कभी विदेशियों को पैर रखने की जगह नहीं मिलती, यहां आक्रांता टिक नहीं पाते और देश कभी गुलाम नहीं होता। देश को अपमान और लूट का केंद्र नहीं बनना पड़ता।
सवाल :- अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का कार्य जोर-शोर से जारी है। आप लोगों को सपना साकार होने जा रहा है।
जवाब :- देखिए, यह सपना सिर्फ मेरा नहीं था बल्कि देश के सभी लोगों ने इसे देखा था। भगवान राम सबके हैं, राम सबके लिए हैं और सब राम के हैं। इसलिए सबको मिलकर प्रभु राम का भव्य मंदिर बनाना चाहिए और सभी को राम के चरित्र का पालन करना चाहिए। राम मंदिर के साथ-साथ देश के लोगों को मन-मंदिर भी उसी तरह से बने यही भाव मेरे मन में है।