सीतामढ़ी : सीतामढ़ी जिला के रीगा प्रखंड स्थित कुसमारी गांव में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति जिसने अपने कीर्ति, शौर्य, वीरता और कर्तव्यपरायणता की अमिट छाप छोड़ते हुए भारत माँ की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिया था। ऐसी वीरांगना हम सभी भारतीयों की प्रेरणा स्रोत झलकारी बाई की 191वीं जयंती पर उन्हें अखिल भारतीय पान/चौपाल/कोली समाज, बिहार संगठन के तत्वावधान में पान/स्वांसी समाज द्वारा जयंती समारोह मनाया गया। इस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित प्रो. संतोष दास पान, प्रदेश अध्यक्ष ने वीरांगना झलकारी बाई जी की जीवन पर प्रकाश डालते हुए समाज को शिक्षित बनने के साथ संगठित और साहसी बनने का आह्वान किया।
विशिष्ट अतिथि प्रो. रंजीत कुमार पान, हरियाणा विश्वविद्यालय एवं वीरचन्द्र दास, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, बैशाली, इं. रणजीत कुमार पान, रामबाबू दास, हरि दास, धूपा दास, जगदीश दास, बिगू दास, शत्रुध्न दास, रंजीत दास, राजकुमार दास, सुभाष दास, विक्रम दास समेत समाज के अनेकों लोगों और आम नागरिकों ने भाग लिया। इस अवसर पर सभी लोगों ने वीरांगना झलकारी बाई जी के चित्र पर माला व पुष्प अर्पित कर नमन किया। कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों ने अपने वक्तव्य में कहा की समाज और देश के लोगों को झलकारी बाई जी के चरित्र से शिक्षा लेनी चाहिए।
झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झाँसी के पास के ही भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। इनके पिता सदोवर सिंह कोली और माता जमुना देवी थेI झलकारी बाई को शैशवावस्था में ही मातृ-वियोग सहना पड़ा I पर पिता ने उन्हें उन दिनों की सामाजिक परिस्थितियों के कारण कोई औपचारिक शिक्षा तो न दिलवा सके, परन्तु घुड़सवारी और हथियारों का प्रयोग जैसे प्रशिक्षण कराते हुए उसका पालन-पोषण एक वीर लड़के की भांति किया था। झलकारी बचपन से ही बहुत साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ संकल्पी बालिका थी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता गंगा दास जी ने किया एवं संचालन शंकर कुमार दास ने सफलता पूर्वक किया।