लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल जयन्ती विशेष

‘आवाज में सिंह-सी दहाड़ थी, ह्रदय में कोमलता की पुकार थी’

श्रीराम पुकार शर्मा : जी हाँ! जिस सिंह-सी दहाड़ के सम्मुख तत्कालीन 560 से अधिक देशी रियासतों ने नतमस्तक होकर भारतीय गणराज्य में समाहित हो गए, हठी जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू एवं कश्मीर के शासकों के कलेजे काँप गए और जिस हृदय की कोमलता ने भारत के लाखों-करोड़ों गरीब किसान-मजदूरों के दुःख को अपनाने के लिए वकालत को तुच्छ समझा, उस सिंह-सी दहाड़ और हृदय की कोमलता के दृढ़ स्वामी को हम भारतवासी “लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल” के नाम से जानते हैं।

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को अपने विचारों तथा क्रियाओं से एक नई दिशा और नई गति देने वाले ‘लौह पुरुष’ सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नडियाद नामक गाँव में हुआ था। इनका वास्तविक नाम ‘वल्लभ भाई झावर भाई पटेल’ था। उन्होंने भारत की आजादी के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए उसे नई गति प्रदान की थी, जिससे कृतज्ञ भारतवासी उन्हें ‘सरदार’ जैसे विशिष्ट शब्द से संबोधित किया करते थे।

वल्लभ भाई पटेल की अपनी पढ़ाई-लिखाई देरी से प्रारम्भ हुई थी, अतः उन्होंने 22 वर्ष की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। उनका सपना वकील बनाने का था। 36 वर्ष की अवस्था में, वह अपने इस सपने को पूरा करने के लिए इंग्लैंड गए और उन्होंने अपने 36 महीने के कोर्स को सिर्फ 30 महीनों में ही पूरा कर कॉलेज टॉप कर स्वदेश लौट आये और अंग्रेजियत सूत-बूट की स्टाइल में अहमदाबाद में एक सफल और प्रसिद्ध बेरिस्टर के रूप कार्य करने लगे। अर्थगत आधार मिलने लगा। वल्लभ भाई पटेल अपने आस-पास के लोगों के लिए एक बहुत ही साधारण और व्यावहारिक व्यक्ति थे तथा एक साधारण मनुष्य की तरह ही जीवनगत समस्याओं से जूझते हुए आगे बढ़ रहे थे। एक आम आदमी की तरह ही बहुत पैसे कमाना और अपनी सन्तान को एक अच्छा समृद्ध युक्त भविष्य प्रदान करने के स्वप्न देखा करते थे। लेकिन साधारण जनों के सब्जबागी सुख-स्वप्न समय आने पर अक्सर झूठे ही साबित होते हैं। पर उन्हें क्या पता था कि नियति उन्हें एक दिन देश का ‘सरदार’ और ‘लौह पुरुष’ बनाने के लिए आतुर है।

तत्कालीन राजनीति मंच के सिरमौर ‘गाँधी जी’ से प्रेरित होकर इन्होने सबसे पहले अपने स्थानीय क्षेत्रों में शराब, छुआछूत एवं नारियों के अत्याचार के खिलाफ सामाजिक लड़ाई शुरू की, जो बाद में प्रशासनिक शोषण के खिलाफ बन गयी। फिर तो रूचि न होते हुए वे भी धीरे-धीरे वे सक्रीय राजनीति का हिस्सा ही बन गए और फिर भारत की स्वतंत्रता के लिए किए जा रहे संघर्ष के प्रमुख धुरी बन गए। इनकी अन्तःशक्ति और वाक् शक्ति ही इनकी सबसे बड़ी ताकत बनी, जिसके संकेत मात्र से ही लोग इनके साथ हो चलने लगे।

1917 में जब गुजरात में अतिवृष्टि और बाढ़ के कारण किसानों की फसल नष्ट हो गई थी, लेकिन अंग्रेजी सरकार ने कर वसूली में कोई छूट न दी, बल्कि बर्बरता के साथ कर वसूली करने लगी। किसानों की इस विपदा को देख गाँधी जी की आज्ञा से वल्लभ भाई पटेल ने खेड़ा, बारडोली व गुजरात के अन्य क्षेत्रों से किसानों को संगठित कर उन्हें कर न देने के लिए प्रेरित करते हुए सरकार विरोधी आन्दोलन शुरू दिया। जिससे घबराकर अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा और किसानों को कर से मुक्ति मिल गई। यह वल्लभ भाई पटेल की राजनैतिक सबसे पहली और बड़ी जीत साबित हुई। इसे ‘खेडा आन्दोलन’  के नाम से याद किया जाता हैं। फिर ‘बारडोली सत्याग्रह’ ने उन्हें पूरे देश में प्रसिद्ध कर दिया। इस आन्दोलन की सफलता ने उन्हें भारतीय किसानों के प्रिय और विश्वासी नेता बना दिया। फिर लोगों ने उन्हें ‘सरदार’ शब्द से सम्मानित किया। और अब वे ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल’  कहलाने लगे।

सरदार वल्लभ भाई पटेल सन् 1922, 1924 और 1927 में लगातार तीन बार अहमदाबाद की नगर पालिका के अध्यक्ष के रूप में चुने गये, जो इनकी जनप्रियता को प्रदर्शित करता है। भारतीय ध्वज फहराने को प्रतिबंधित करने वाले अंग्रेजों के काले कानून के खिलाफ सन् 1923 में उन्होंने नागपुर में सत्याग्रह आन्दोलन का नेतृत्व भी किया था। फिर तो बाद के गाँधी जी द्वारा संचालित सभी आंदोलनों जैसे असहयोग आन्दोलन, स्वराज आन्दोलन, दांडी यात्रा, भारत छोडो आन्दोलन आदि के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल प्रमुख धुरी ही रहे थे।

और 15 अगस्त 1947 को देश-प्रेमियों तथा स्वतंत्रता-प्रेमियों का राष्ट्रीय स्वप्न साकार हुआ। भारत देश आजाद हुआ। पर इस आजादी के साथ ही हमारा देश दो टुकड़ों में बँट गया, जिसको सरदार वल्लभ भाई पटेल न चाहते हुए भी बहुत ही भारी मन से स्वीकार किया था। आजादी के बाद हकीकत में वह ही प्रधानमंत्री के प्रथम दावेदार थे, लेकिन गाँधी जी के कारण उन्होंने स्वयं को प्रधान मंत्री की दौड़ से दूर रखा और देश के प्रथम गृहमंत्री एवं उप-प्रधानमंत्री के प्रदत्त पद को स्वीकार कर लिया।

सरदार वल्लभ भाई पटेल के सम्मुख देश के बँटवारे के कारण बेघर हुए लोगों के पुनर्वासन और उस समय देश में मौजूद कोई 562 छोटी-बड़ी रियासतों का एकीकरण करने जैसे अनिवार्य कार्य थे, जो अपने आप में बहुत ही कठिन थे। उन्होंने पंजाब और दिल्ली में शरणार्थियों के लिए राहत शिविरों का आयोजन किया और बिना खून बहाए अपनी बुद्धिमता और कूटनीति के बल पर राष्ट्रीय एकीकरण कर एकता का एक ऐसा स्वरूप दिखाया, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। केवल जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर के शासकों ने राष्ट्रीय एकीकरण की नीति को मानने से अस्वीकार कर दिए थे। तब इन रियासतों के प्रति सैन्य-बल का कुछ सहारा लेना पड़ा था। राष्ट्र की एकीकरण जैसे महत्वपूर्ण कार्य के सम्पादन हेतु देश ने उन्हें ‘लौह पुरुष’ की संज्ञा से विभूषित किया।

आजादी के जश्न के दौर में ही पाकिस्तानियों ने कश्मीर पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था, तब उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार पटेल तुरंत कश्मीर में सेना भेजने के पक्ष में थे, लेकिन दुर्भाग्यवश तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू और लार्ड माउंटबेटन के साथ जबरन सहमत होने के कारण उन्हें कश्मीर के सम्राट का भारत आने तक इंतजार करना पड़ा। फिर बाद में सरदार पटेल ने भारत के सैन्य अभियानों के माध्यम से श्रीनगर, बारामूला दर्रे को सुरक्षित कर आक्रमणकारियों से अधिक से अधिक क्षेत्र को प्राप्त कर लिया था।
सरदार वल्लभ भाई पटेल और महात्मा गाँधी दो जिस्म, एक जान के समान ही थे। महात्मा गाँधी की मृत्यु के बाद से सरदार पटेल की भी शारीरिक स्थिति बिगड़ने लगी थी और फिर 15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल को भयानक दिल का पड़ा, जिससे उनका निधन हो गया।

स्वतंत्रता के सेवक तथा राष्ट्रीय एकीकरण को साकार स्वरूप देने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु के 41 वर्षों के बाद उन्हें 1991 में ‘भारतरत्न’ सम्मान प्रदान किया गया। देश के पुनर्निर्माण कार्य करने के उद्देश्य से ही उनके जन्म दिवस को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’  का नाम दिया गया है।

‘लौह पुरुष’ सरदार वल्लभ भाई पटेल की याद में सन् 2013 में उनके जन्मदिन पर गुजरात के नर्मदा जिले के भरूच के पास ‘साधू बेत’ नामक स्थान पर नर्मदा नदी के पार्श्व में उनका स्मृति स्मारक स्वरूप एक वृहत मूर्ति बनाने की शुरुआत की गई, जो मात्र 4 वर्षों में भव्य रूप में बन कर तैयार हो गई। यह 208 मीटर (652 फीट) ऊँची भारत व दुनिया की सबसे ऊँची मूर्ति है, जिसे ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ नाम प्रदान किया गया है। वर्तमान प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने सरदार पटेल की 143 वीं जयंती पर 31 अक्टूबर, 2018 को इस गगनचुम्बी प्रतिमा को राष्ट्र को समर्पित कर उनके प्रति भारतवासियों की कृतज्ञता को प्रगट की।

सरदार वल्लभभाई पटेल एक ऐसा नाम था, जो आन्दोलन में विजय को निश्चित करता रहा था। उनके देखने मात्र से ही लोगों के शरीर में नव ऊर्जा का संचार हो जाया करता था। हर भारतीयों का सपना था, कि लौह जैसा दृढ़ निश्चयी वाला यह ‘लौह पुरुष सरदार पटेल’ ही देश के प्रथम प्रधान मंत्री बने, पर शायद अंग्रेजों की नीति, महात्मा गांधीजी के निर्णय और जवाहरलाल नेहरु जी के हठ के कारण भारतीयों का वह सपना सच न हो सका। क्या यह अपने आप में आश्चर्य नहीं है, कि भारत के प्रथम उप-प्रधानमन्त्री और गृहमंत्री के पास अपना स्वयं का मकान तक न था, वे अहमदाबाद में एक किराये के मकान में रहते थे। जब उनका निधन हुआ, तब उनके बैंक के खाते में सिर्फ 260 रूपये मौजूद थे। ऐसे दृढ़ स्वाभिमानी, निश्चयी, विजय के पर्याय ‘लौह पुरुष’ सरदार वल्लभ भाई पटेल की 146 वीं पावन जयंती पर हम उन्हें सादर हार्दिक नमन करते हैं।

श्रीराम पुकार शर्मा

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