Tokyo Olympic : म्हारी छोरीयाँ छोरों से कम है के!

किरण नांदगाँवकर, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) इतिहास ऐसे ही नहीं बनते। इतिहास बनता है अदम्य इच्छाशक्ति, साहस, कठोर परिश्रम, समर्पण और दृढ निश्चय से। ऐसा ही कुछ इतिहास आज टोक्यो ओलंपिक में भारत की महिला हॉकी टीम ने बना ड़ाला है। इस ओलंपिक के हॉकी में भारत की महिला हॉकी टीम को विशेषज्ञ, एक्सपर्ट, कॉलमनिस्ट कोई भी नोटिस करने को तैयार नहीं था।क्योंकि महिला हॉकी ओलंपिक में क्वालीफाई ही बमुश्किल कर पाती थी। प्रदर्शन तो दूर की बात है। इससे पूर्व के रियों ओलंपिक में भारत की महिला हॉकी टीम छत्तीस वर्ष बाद क्वालीफाई कर सकी थी।

इसलिए इस बार भी महिला हॉकी टीम के लिए टोक्यो ओलंपिक में ज्यादा उम्मीदे नही थी। लेकिन भारत की महिला हॉकी टीम ने अपने दमदार प्रदर्शन से इस ओलंपिक में ना केवल शानदार प्रदर्शन किया अपितु आज तीन बार की ओलंपिक चैम्पियन ऑस्ट्रेलिया को हराकर ओलंपिक में इतिहास रचते हुए पहली बार सेमीफाइनल में पहूँच कर ही दम लिया।

भारतीय टीम पुल A में थी और महिला हॉकी टीम का प्रदर्शन शुरुआत में अच्छा नहीं था। यह टीम पहला ही मैच निदरलैंड से 5-1 से हार गई। जर्मनी से दूसरा मैच भी 2-0 से हार गई। और तीसरा मैच ग्रेट ब्रिटेन से बुरी तरह 4-1 से हारी। लेकिन उसके बाद महिला टीम ने वापसी करते हुए आयरलैंड को 1-0 से हराया और फिर साउथ अफ्रिका को 4-3 से हराकर क्वार्टरफाइनल में पहुंची।

क्वार्टरफाइनल में आज ऑस्ट्रेलिया जैसी चैम्पियन टीम को 1-0 से हरा कर इतिहास रच दिया है। यह टीम की सभी महिला सदस्यों की अदम्य इच्छाशक्ति का प्रमाण है। अंतिम चार में पहूँचना किसी भी रुप से बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है और जब आप ऑस्ट्रेलिया की चैम्पियन और पूरी तरह दक्ष महिला हॉकी टीम को हरा देते हो तो पदक की उम्मीद हम इस बार महिला हॉकी टीम से जरुर कर सकते है।

कप्तान रानी रामपाल और पूरी भारतीय महिला हॉकी टीम को बधाई। गोलकीपर सविता पूनिया को आज रोके गए ऑस्ट्रेलिया के सात पेनाल्टी कॉर्नर के लिए उनको द वॉल कहा जा सकता है। पूरी टीम को इस अद्भुत और चमत्कारी जीत के लिए ढ़ेरों बधाई !!
सेमीफाइनल के लिए शुभकामनाएं!

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