नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) और राज्य सूचना आयोगों (एसआईसी) में रिक्त पदों को भरने पर नवीनतम स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को मामले में ताजा स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है।
शीर्ष अदालत ने आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया। इस याचिका में कानून के तहत सीआईसी तथा एसआईसी में नियुक्तियों पर 2019 के आदेश को लागू करने का अनुरोध किया गया है।
भारद्वाज ने सरकारी प्राधिकारियों को उच्चतम न्यायालय के आदेश को लागू करने का निर्देश देने का अनुरोध भी किया। था शीर्ष अदालत ने सरकार को एक निर्धारित समयसीमा के भीतर और पारदर्शी तरीके से सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करने का आदेश दिया था।
दरअसल एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज और अन्य द्वारा दायर जनहित याचिका में सरकार को सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के संबंध में शीर्ष अदालत के निर्देशों को निर्धारित समय के भीतर और पारदर्शी तरीके से लागू करने का निर्देश देने की मांग की गई है। पीठ ने याचिकाकर्ता को मामले में एक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने की भी अनुमति दी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा किया कि 2019 में रिक्तियों को भरने के लिए निर्देश जारी किए गए थे, ताकि नौकरशाहों को आयोग को चलाने या चयन समिति का हिस्सा बनाने के अभ्यास पर अंकुश लगाया जा सके।
प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने चयन पैनल में केवल नौकरशाहों को चुनने की प्रथा को हटा दिया था और कहा था कि चयन के लिए मानदंड रिकॉर्ड में होना चाहिए।
भूषण ने अपनी दलील में कहा बार-बार दिशानिर्देशों के बावजूद, अभी भी तीन रिक्तियां हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने जो किया है, वह काफी चौंकाने वाला है। उन्होंने या तो उम्मीदवारों के नाम या रिकॉर्ड पर चयन मानदंड नहीं रखा है। 300 से अधिक लोगों ने आवेदन किया है, लेकिन उन्होंने सात लोगों को निर्धारित किया। मानदंड क्या थे, विवरण क्या थे, रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है।
भूषण ने बताया कि 16 दिसंबर, 2019 को शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्यों को सीआईसी और एसआईसी में तीन महीने के भीतर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करने का निर्देश दिया था, लेकिन रिक्तियां बनी हुई हैं।
उदाहरण देश के कई राज्यों में व्याप्त रिक्त स्थानों का उल्लेख भी किया। उन्होंने कहा कि यह पेंडेंसी आरटीआई अधिनियम के उद्देश्य को नष्ट कर रही है, जिसे शीर्ष अदालत के फैसलों के बाद लाया गया था और जिसमें सूचना के अधिकार को बरकरार रखा गया था।
केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाली अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने दलील दी कि अनुपालन की प्रक्रिया सरकार द्वारा की गई है और नियुक्तियां मार्च 2020 में की गई थीं। उन्होंने कहा कि 24 अप्रैल, 2020 को एक अनुपालन हलफनामा दायर किया गया था।
दीवान ने कहा कि सीआईसी की अधिकतम संख्या 10 सदस्यों तक है और अभी सात सदस्य हैं। उन्होंने कहा, अगर वे बाद के घटनाक्रम से या हमारे हलफनामे से व्यथित हैं, तो उन्हें हलफनामे पर ऐसा कहना चाहिए।
न्यायमूर्ति नजीर ने कहा कि अनुपालन रिपोर्ट एक साल से अधिक समय पहले दायर की गई थी। पीठ ने कहा, हमें नवीनतम स्थिति बताएं और नवीनतम स्थिति रिपोर्ट दर्ज करें और हम इस पर निर्णय लेंगे।
तमाम दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने भारत संघ और सभी राज्यों को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) और राज्य सूचना आयोगों (एसआईसी) में रिक्तियों और लापरवाही के संबंध में नवीनतम विकास पर स्टेटस रिपोर्ट दर्ज करने के लिए निर्देशित किया और मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह के बाद निर्धारित कर दी।