प्राकृतिक घटनाओं का एक कारण भौगोलिक रचना-उत्तराखंड

वीना आडवाणी “तन्वी”

आजकल उत्तराखंड के रहवासियों को किसी ना किसी भयावह प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। हर वर्ष पहले तो वर्षा ऋतु मे ही अधिकतर कोई ना कोई प्राकृतिक परेशानी आ ही खड़ी होती थी परंतु अब ये प्राकृतिक आपदाओं से भरी घटनाएं कभी भी घटित हो जाती है जिसके चलते हर वर्ष या कभी भी उत्तराखंड की सरकारी सम्पत्ति हो या वहां के रहवासियों की सम्पत्ति को बहुत ही अधिक नुकसान होता है और भी बहुत सी परेशानियों से रुबरू होना पड़ता है।

इन प्राकृतिक आपदाओं का आखिर कारण क्या मानव के द्वारा किया जा रहा प्रकृति दोहन ही है या और भी कोई कारण हो सकता है ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के पीछे। वर्ष 2020 मे उत्तराखंड ही पहाड़ से बहुत बड़ा ग्लेशियर का टुकड़ा गिर के टूट गया जिसके चलते नदी मे जलभराव तो हुआ ही साथ मे आर्थिक क्षति भी हुई।

बांध के लिये बनाई मजबूत कांक्रीट की दीवार पुल भी टुटकर तिनके की तरह बिखर गये। साथ ही जनहानि भी हुई जो इसके चपेट मे आ दलदल मे दब गई। कुछ ही दिन पूर्व ही पहाड़ों से तेजी से हुआ मिट्टी का रिसाव या पहाड़ का ढ़हना जिसके चलते बड़े बड़े पत्थर गिर पड़े रास्ते पर और रास्ता भी आधा टूट कर मलबे मे तब्दील हो रास्ते पर आ गया।

पहाड़ों से मिट्टी पत्थर का रिसाव, बाढ़ का आना, बादल फटना, बिजली गिरना या ग्लेशियर का टूटना ये सभी प्राकृतिक घटनाएं ही तो हैं। जिसके चलते आए दिन या कहें हर वर्ष ही लगभग इन मुसीबतों का सामना उतराखंड के रहवासियों को करना पड़ता है।

इन सभी घटनाओं के जिम्मेदार सिर्फ मानव जाति ही नहीं है। इन उतराखंड मे होने वाली घटनाओं का अहम कारण जो हे वो है उतराखंड की भोगोलिक संरचना। उत्तराखंड जो की बहुत ही ऊंचाई पे बसा है जहां जाने पर कहीं भी नजर घुमाओं तो दूर-दूर तक आपको सिर्फ पहाड़ी इलाका ही नजर आऐगा हर ओर ऊंचे पहाड़ और उन्हीं पहाड़ो के दुर्गम राहों पे आड़े टेड़े चढ़ाव मार्ग पे बने रास्ते हैं।

उतराखंड की इन्हीं ऊंची पहाडियों और पहाड़ियों की नीचली सतह पर भी बहुत से लोग वास करते हैं। पहाड़ों पर बहुत अधिक प्राकृतिक धरोहर वृक्षों का समावेश है जिसके चलते वहां आद्रता नमी बहुत अधिक छाई रहती है। बारिश भी अधिक होने के कारण पहाड़ों की मिट्टी मे गिलापन बहुत अधिक होता है। जिसके चलने इतनी अधिक आद्रता रहती की पहाड़ों की मिट्टी सूख ना पाती और चिकनाहट फिसलन के चलते ऐसे हादसे होते हैं।

जिसके चलते बहुत अधिक हानी उतराखंड को हर वर्ष उठानी पड़ती है। भोगोलिक संरचना के अनुसार ही वहां के रहवासियों को अपना निवास स्थान उच्च पहाड़ों की चोटियों अनुसार बनाना पड़ता है जिसके चलते बहुत बार उन पर बहुत ही गहरा संकट आ जाता है और या तो सदैव किसी ना किसी प्राकृतिक घटना या कहे अनहोनी होने का भय सदा बना रहता है। जितना मनोहारी रमणीक उतराखंड है उतना ही अधिक भोगोलिक संरचनाओं को देख खतरा भी।

साथ ही भारत देश के साथ-साथ सैलानियों का भी पसंदीदा स्थल होने के कारण यहां हमेशा ही पर्यटक आते ही रहते हैं। पर्यटन विभाग या कहें की उतराखंड की आर्थिक लाभ मे पर्यटन विभाग का भी विशेष योगदान है। बस यदि उच्च पहाड़ी चोटियों से दिखने वाली प्राकृतिक सौंदर्यीकरण मन को हर लेता है। परंतु इन्हीं उच्च चोटियों के अचानक मिट्टी सरकने जैसे हादसे मन को देहला भी देते हैं। प्राकृतिक आपदाओं के लिये और भौगोलिक संरचना के लिये हम किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते हैं। ये तो कुदरत का करिश्मा है जो इतने खूबसूरत प्राकृतिक स्थल पे इतना प्राकृतिक घटनाओं का आतंक भी फैलाया है। उतराखण्ड धरती का स्वर्ग है जिसकी ओर खींचे चले आना स्वभाविक ही है।

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