आस की टकटकी लगाये बैठे प्रवासी बिहारी मजदूर

राजकुमार गुप्त, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता

आज पूरे देश के विभिन्न राज्यों में जितने भी प्रवासी मजदूर फंसे हुए हैं उनमें लगभग 60 फीसद मजदूर बिहार के होंगे और ये सभी लोग प्राण-प्रण से टकटकी लगाए हुए हैं बिहार सरकार की ओर, कि कब इन्हें वापस बुलाने की व्यवस्था कर दें। ये सभी लोग अपने प्रदेश में वापस लौटने को बेताब हैं। इतनी तादात में सदियों से इनके प्रवासी होते रहने का आखिर कारण क्या है…?

कारण है खुद ही बिहार के लोग, ये चुनाव के वक्त अपने जाति, धर्म के नेताओं को चुनकर वोट देते हैं जैसे अपने लिए जनप्रतिनिधि नहीं रिश्तेदार चुन रहे हो और चुनाव खत्म होने के तुरंत बाद ही फिर से देश के अन्य प्रदेशों की ओर काम करने के लिए रवाना हो जाते हैं। फिर तो सवाल ही पैदा नहीं होता की अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों से या सरकार से अपनी रोजगार या अपने क्षेत्र के विकास के बारे में सवाल करने की।

नतीजा यह होता रहा है कि ये दल या नेता इन्हें जाति और धर्म के नाम पर ही बरगलाते रहें हैं आजतक और ये लोग भी उसी के नाम पर ही वोट देते रहते हैं। अगर पिछले दस-बीस सालों में दस-बीस प्रतिशत जनता भी खुद के चुने हुए जनप्रतिनिधियों से और सरकार से अपने रोजगार के बारे में सवाल करती तो आज हालात कुछ हद तक ही सही बेहतर होते! परंतु नहीं, इन्हें तो अपने जात और धर्म वाले प्रतिनिधियों को ही चुनकर खुशी होती है। बिहार में ही स्थाई रोजगार जाए भाड़ में उसके लिए तो देश के अन्य प्रांत है ही।

और दूसरी और उड़ीसा जो कि बिहार से भी पिछड़ा राज्य है परंतु वहां के लोग दूसरे राज्यों में बहुत ही कम मिलेंगे मजदूर के रूप में कारण आत्मसम्मान के साथ भले ही दो पैसा कम मिले अपने प्रतिनिधियों और सरकार पर दबाव बनाए रखते हुए अपने प्रदेश में विकास के पथ पर अग्रसर हैं।

जबकि बिहार का पड़ोसी यूपी में योगीराज के आने के बाद से अपुष्ट ख़बरों के मुताबिक विदेशों की लगभग तीन सौ कंपनियों ने इन्वेस्टमेंट की योजना बनाई है जबकि बिहार से ऐसी कोई भी खबर आजतक नहीं है क्योंकि वहां के हालात ही अभी तक विदेशियों के इन्वेस्टमेंट के लायक नहीं है।

उम्मीद करता हूं कि आने वाले विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता आज की इस भयानक त्रासदी से सबक लेकर रोजगार के नाम पर ही वोट देंगे। आज तक आपने जाति और धर्म के नाम पर वोट किया है फिर भी रोजगार से वंचित रहे तो अब उम्मीद है कि बिहारवासी विकास के नाम पर वोट करेंगे और आत्मसम्मान के साथ अपनी तथा आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित करेंगे।

बिहारी मजदूरों को यह प्रतिज्ञा करनी होगी की मजदूरी कुछ कम भले मिले अपने प्रदेश में ही मजदूरी करेंगे एवं राज्य सरकार को मजबूर करेंगे उनके लिए रोजगार की व्यवस्था राज्य में ही उपलब्ध करवाएं। जिस दिन से ये खुद से पलायन पर रोक लगा लेंगे एवं अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों तथा सरकार पर दबाव बनाना शुरू करेंगे तो कोई शक नहीं कि सरकार बाध्य न हो।

उम्मीद करता हूं कि इस वैश्विक महामारी के बाद पूरे विश्व में ही परंपरागत राजनीति से हटकर अब राजनीति भी होगी और लोगों का नजरिया भी बदलेगा, हो सकता है इसी के साथ बिहारियों के प्रवासी होते रहने का अभिशाप भी खत्म हो जाय और इसी उम्मीद पर तो दुनिया कायम है अतः अंत भला तो सब भला।

नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत हैं । इस आलेख में  दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।

2 thoughts on “आस की टकटकी लगाये बैठे प्रवासी बिहारी मजदूर

  1. LAL SAHEB VERMA says:

    BAHUT he.. Katu Satya ko ujagar kiya gaya hai…

    Majdoor ke praishram se dhani bankar… USI majdoor ko… Bhulna… Sarwatha anuchit hai.
    BAHUT Achha likhe HAIN.. Bhaiya ji

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