मौत का पर्याय बन चुके कोविड-19 महामारी से देश भर में जिस तरह से मौतों का सिलसिला जारी है उससे आम जनों में खौफ और दहशत बढता जा रहा है। हर रोज किसी न किसी अपने को खो रहे भारतीय समाज के मन से इस डर को दूर करने के लिए अब सामाजिक दूरी की नही बल्कि नजदीकियों की जरुरत है। भले ही शारीरिक मतलब आमने-सामने से न सही तकनीक के इस युग मे मोबाइल फोन से बातचीत द्वारा या लाइव भी सामाजिक नजदीकियां बना कर रखा जा सकता है।
जो भी परिवार महामारी की चपेट में आ रहे हैं उनका सामाजिक बहिष्कार करना कहीं से भी उचित नहीं है बल्कि उस परिवार के सदस्यों का मनोबल बनाए रखने के लिए हमें आधुनिक तकनीकों का सहारा लेते हुए उनके साथ खड़े रहना होगा। आधुनिक तकनीक मतलब आप कोरोना पीड़ित व्यक्ति या परिवार के पास परोक्ष रूप से नहीं भी जा कर, अपने घर बैठे यानी शारीरिक दूरी बनाये रखते हुए कहीं भी मोबाइल फोन से बातचीत या लाइव जा कर उन्हें ढ़ाढस बंधा सकते हैं।
परिवार को दिशा निर्देश दे सकते हैं। दैनिक जरूरत के चीजों को ऑनलाइन भेज कर भी सहयोग कर सकते हैं। अगर जरूरत हुई तो कुछ आर्थिक सहयोग भी ऑनलाइन कर सकते हैं। कोविड-19 का तूफान आज नहीं तो कल थम ही जाएगा लेकिन जब यह रुकेगा तब हम समझ सकेंगे कि लोग महामारी से कम तथा डर, दहशत और सामाजिक बहिष्कार की वजह से बड़ी संख्या में मौत के शिकार हुए हैं।
ये सही है कि कोविड-19 महामारी ने हमारे समाज के नकारात्मक पहलू को कुछ ज्यादा उजागर किया है, फिर भी बहुत सारी स्वयंसेवी संस्थाएं और व्यक्तिगत रूप से भी कुछ लोग अच्छा काम कर रहे हैं। आज ज्यादातर मीडिया द्वारा देश में एक दहशत का माहौल बनाया जा रहा है। जैसे कि तीसरी लहर अभी आई भी नहीं है और कई चैनल दावा कर रहे हैं कि यह बच्चों के लिए बहुत ही खतरनाक है और इससे 70 लाख बच्चों की मौत हो सकती है।
इस तरह की गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग देश में डर और दहशत का माहौल बना रहा है। इसकी वजह से जो लोग इस महामारी की चपेट में आ रहे हैं वे कोविड से कम और दहशत से ज्यादा मौत की चपेट में जा रहे हैं।
संक्रमित लोगों का बहिष्कार करना एक संगठित अपराध है। कोविड-19 संक्रमित लोगों या परिवारों का सामाजिक बहिष्कार पर तत्काल रोक लगनी चाहिए।
हमारे समाज में ज्यादातर लोग इंसानियत के बजाय हैवानियत का परिचय दे रहे हैं। कुछ खबरें ऐसी भी आ रही है कि संक्रमित परिवार के घर पर इलाके के लोग नो एंट्री का बोर्ड लगा दे रहें हैं और उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा है जिससे हताशा में कुछ लोग आत्महत्या जैसे कदम उठा ले रहे हैं। जो कि महामारी से भी अधिक घातक है।
आज जरूरत है समाज के सभी लोगों को इस पर ठंडे दिमाग से सोचने की और कुछ करने की, संक्रमित व्यक्ति या परिवार से तकनीक द्वारा जुड़े रहने की। जिससे कि उन्हें लगे कि संकट की इस घड़ी में मैं अकेला नहीं हूँ, समाज या मित्र हमारे साथ है।
सभी को यह बात समझना होगा कि कल मैं या मेरा परिवार भी संक्रमित हो सकता है तब क्या होगा?
(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। )