तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर : दो साल के भीतर बदली अनुकूल हवा के बावजूद खड़गपुर सदर विधानसभा क्षेत्र में तृणमूल कांग्रेस की नैया आखिर क्यों डूब गई ?? नवंबर 2019 के उपचुनाव में जबरदस्त पटखनी खाने वाली भाजपा की जीत आखिर किन कारणों से निश्चित हुई ??
चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद टीएमसी खेमे में ऐसे सवालों के जवाब बेचैनी से तलाशे जा रहे हैं।
उम्मीदवारों की घोषणा के कई दिन बाद किसी विक्षुब्ध नेता के बजाय भाजपा ने जब हिरणमय चट्टोपाध्याय को इस सीट से उम्मीदवार घोषित किया तो टीएमसी खेमे में हर्ष की लहर दौड़ गई । आधी जीत तभी तय मान ली गई थी। मुकाबले में एक ओर पांच साल के नगरपालिका चेयरमैन और डेढ़ साल के विधायक प्रदीप सरकार थे तो दूसरी ओर बांग्ला फिल्म जगत से जुड़े और ऊलबेड़िया निवासी हिरण चटोपाध्याय।
जिन्हें राजनीति का नौसिखिया कहा जा रहा था । शुरू में आत्मविश्वास से लबरेज टीएमसी खेमा बढ़त पर दिखाई दे रहा था। लेकिन अंत में बाजी कैसे पलट गई , यह सवाल पार्टी नेताओं को परेशान कर रहा है। वार्ड स्तर पर प्राप्त वोटों के आधार पर समीक्षा करने से पता लगता है कि टीएमसी के ज्यादातर बड़े नेताओं के वार्डों में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा।
ऐसे अधिकांश वार्डों में भाजपा बढ़त पर रही। खुद दलीय उम्मीदवार सरकार अपने ही वार्ड में भाजपा से 333 वोटों से पीछे रह गए। अन्य वरिष्ठ नेताओं में पूर्व नपाध्यक्ष रविशंकर पांडेय से लेकर पार्टी की जिला समिति के कार्यकारी अध्यक्ष व इंटटक अध्यक्ष निर्मल घोष तक के वार्ड में पार्टी को मुंह की खानी पड़ गई।
पार्टी के गिने – चुने नेता ही अपने वार्ड में टीएमसी उम्मीदवार को बढ़त दिलाने में कामयाब हो सके। ऐसे में अनुमान यही है कि टीएमसी नेताओं के भाजपा के अंडर करंट को न समझ पाने और अति आत्मविश्वास में समय रहते डैमेज कंट्रोल की कोशिश नहीं करने की वजह से ही शहर में भाजपा की राह आसान हो गई।