विवेक चौबे, दिल्ली : हर साल ही विश्व गौरैया दिवस का पालन 20 मार्च को किया जाता है। दरअसल गौरैया को आंगन की पक्षी या यूं कहीं हर घर के घरौंदे के साथी पक्षी के रूप में भी माना जात है। आज भी गौरेया पक्षी हर जगह ही मौजूद है। हालांकि समय के साथ चीं..चीं करते इस पक्षी की आवाज कम सी होती जा रही है। यही वजह है कि हर साल जागरूकत के तहत विश्व गौरैया दिवस का पालन किया जाता है। पक्षी विशेषज्ञों की मानें तो अब घरों के आंगन में चीं-चीं करती गौरैया की आवाज काफी कम सुनाई देती है।
ऐसे में यदि समय रहते हम नहीं चेते को इनकी प्रजाति लुप्त प्राय सी ही हो जाएगी। कंसर्न फॉर अर्थ के संतोष मोहता कहते हैं कि इस प्रजाति को बचाने के लिए हम सभी को ही पहल करने की जरूरत है। पक्षियों व पेड़ों का एक विशेष लगाव है। हालांकि अब बढ़ती आबादी, कम होते वनांचल क्षेत्र के कारण पशु व पक्षियों को काफी संकट का सामना करना पड़ रहा है। गौरैया समेत अधिकांश पक्षियों के प्रजननकाल का समय मार्च व अप्रैल कहा जाता है। इसी समय घोंषला घर बनाने की आवश्यकता पक्षियों को होती है।
गौरैया पर आधुनिक जीवनशैली का प्रभाव पड़ा है। यह भी कहा जा सकता है कि गौरैया शहरों के साथ ही गांवों से भी गायब हो रही है। कभी घरों के आस-पास बसेरा, आज चीं-चीं भी कम सुनाई देती है- उपज फाउंडेशन से जुड़े दीपक पाठक कहते हैं कि ऐसे समय में बर्ड वाचर की भूमिका काफी बढ़ जाती है। पहले हर घर व आंगन के आस-पास गौरैया की चीं..चीं.. सुनाई देती थी। हालांकि अब स्थिति काफी भयावह बनी हुई है। जरूरत है कि लोग अपने घरों के आस-पास भी इनका ध्यान रखें। छत पर पानी रखें। दाने फेंककर रखें। पेड़ व पौधे की कटाई न हो इसका ध्यान रखें।