छत्तीसगढ़ के रायपुर शहर का कबीर नगर इलाका प्रतिदिन सुबह गांधी जी के प्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम… से गुंजायमान रहता है, हालांकि अब यह चर्चित भजन सिर्फ गांधी जी की जयंती या पुण्यतिथि पर ही सुनाई पड़ती है अतः प्रतिदिन सुबह-सुबह इस भजन को सुनकर लोग एक बार रुक कर आसपास देखने लगते हैं और फिर जब सफाई में जुटे एक 50 वर्षीय बुजुर्ग को देखते हैं तो उनकी उत्सुकता और भी बढ़ जाती है।
जी हां हम बात कर रहे हैं संजय ताँती की, जो कि मूलतः बिहार के मुंगेर जिला के दानी गाँव के रहने वाले हैं और फिलहाल करीब एक महीने से सामाजिक शोध संस्थान रायपुर से जुड़कर समाज सेवा कर रहे हैं और संस्थान के अध्यक्ष बजरंगलाल अग्रवाल के दिशा निर्देश में संस्थान की जिम्मेदारियों को जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। वे अब तक करीब 20 राज्यों में इसी तरह से साइकिल से घूम-घूमकर स्वच्छता, पर्यावरण, स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने का कार्य किया है और कर रहे हैं।
इतिहास से स्नातक संजय ताँती महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे को अपना आदर्श मानते हैं और इसी के चलते वे इन महापुरुषों के संदेशों का प्रचार करते रहते हैं। प्रतिदिन साइकिल से कई किलोमीटर घूम कर बापू के भजन को प्रसारित कर रहे संजय ताँती बिना किसी के सहयोग की उम्मीद किये अपने कार्य में लगे हुए हैं, क्योंकि इनका मानना है कि प्रकृति द्वारा प्रदत्त हवा, पानी और सूर्य की रोशनी के बदले हम प्रकृति को क्या दे रहे हैं?
इसीलिए सड़क पर यदि कोई पशु घायल मिल जाए तो उसे तुरंत उपचार करने में लग जाते हैं। कही भी लगे हुए पौधों में पानी डालना, पंछियों को दाना पानी देना, सड़क पर घूम रहे कुत्तों को खाने का इंतजाम करना इनकी दिनचर्या में शामिल है। हमारे संवाददाता को इन्होंने बताया कि इस तरह से समाज सेवा करना ही इनकी जिंदगी का मुख्य मकसद है, साथ ही इनके परिवार में पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा है तो जाहिर है कि इनकी जिम्मेदारी भी इनके कंधों पर ही है, फिर भी अपने परिवार के कार्यों से बढ़कर समाज सेवा को ही प्रमुखता देते हैं।
एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इनका गांव ‘दानी’ विनोबा भावे जी को दान किया हुआ ग्राम है अतः परोपकार की भावना इनमें जन्मजात है। ऐसे ही लोगों से भारत महान बनता है, आज जब रुपए और विलासिता की भाग दौड़ में लोग गलत कार्यों को भी करने से परहेज नहीं करते हैं वहीं संजय ताँती जैसे लोग अपने परिवार को अभाव में भी पालन पोषण करते हुए समाज सेवा का बीड़ा उठाए हुए है।