डीपी सिंह की कुण्डलिया

*कुण्डलिया*

करते टीका-टिप्पणी, केवल आठो याम।
अब विपक्ष के पास बस, एक यही है काम।।
एक यही है काम, कभी है टोपी-टीका।
आन्दोलन पर टिके, कभी टीका पर टीका।।
कल तक ख़ुद ही खेत, देश का थे जो चरते।
दो-मुखिया, दो-गले, दीखते टीका करते।।

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