“रंग फगुआ के” (भोजपुरी गीत) : हृषिकेश

“रंग फगुआ के”

आईल बसन्त मनमीत बाड़े दूर सखी,
सवख जगावे पिक-मोर फगुआ के ।

सरसों पलाश रंगारंग रंगे दस दिस,
दीक देत फगुनी बयार फगुआ के ।

नैन चैन पावे नाहीं रैन दिन कबहूँ,
कब रे सनेस आवे पी के फगुआ के ।

चान के चकोर ताके सोझवे बा नैन के,
नैनन के चाह पी-दरस फगुआ के ।

संग रंग खेलत उमंग सखी पी के निज,
केकरा संग खेलीं हम रंग फगुआ के ।

नैनन के लोर संग सानत चौकठ के धूरि,
पी के पियारी जे रहे फगुआ के ।

लाल पियर हरियर बसन्ती मधेस रंग,
“ऋषि” निज गात भरे रंग फगुआ के ।

पवन बसन्ती सनेस पी के देस लेजा,
उहवाँ का होला नाहीं रंग फगुआ के?

हृषिकेश

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