उमेश तिवारी, हावड़ा (Howrah) : जी हाँ, आज हम बात करने जा रहे हैं उस भोजपुरी फिल्म की जिसने फिल्म जगत में तहलका मचा दिया था, और उसके बाद जो भोजपुरी फिल्म निर्माण का दौर शुरू हुआ वो आज तक जारी है। फिल्म थी “गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो”। अपनी गांव की मिट्टी से भला किसे प्रेम नहीं होगा। कौन नहीं चाहेगा कि उसके गांव की मिट्टी की सौंधी महक देश के कोने-कोने में पहुंचे। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भी यही चाह थी कि हर प्रांत के लोग बिहार की धरती से परिचित हो, वे जाने और समझे कि बाबू कुंवर सिंह, निशान सिंह तथा आधुनिक बिहार के निर्माताओं मे से एक अनुग्रह नारायण सिंह जैसे कई महापुरुषों ने बिहार मे जन्म लिया और देश के लिए मर मिटे। और इसके लिए उन्होंने फिल्म को साधन मानते हुए इस पर विचार करना शुरू कर दिया। और फिर देश की पहली भोजपुरी फिल्म बनी गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो।
मिट्टी की महक दिलों तक पहुंची : गांव की गलियों की मिट्टी की भाषा फिल्म के माध्यम से दर्शकों के दिलों तक पहुंचेगी, यह कौन जानता था? शायद यही सपना देश के प्रथम राष्ट्रपति ने देखा होगा। और इसलिए प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की पहल पर बनी देश की पहली भोजपुरी फिल्म गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो के रूप में भोजपुरी सिनेमा की नीव रखी गयी।
जब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने विश्वनाथ शाहाबादी से कहा कि आप भोजपुरी में फिल्म बनाइये :“गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो” नहीं “देवदास” की पटकथा लेकर घूम रहे थे नाजीर हुसैन साहब। इसकी जानकारी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को जब हुई तो उन्होंने विश्वनाथ शाहाबादी से कहा कि आप भोजपुरी में फिल्म बनाइये। इसके बाद शुरू हुई फिल्म निर्माण को लेकर तैयारी, विश्वनाथ शाहाबादी अभ्रक (माइका) के कारोबारी थे। गिरिडीह, कोडरमा आदि में उनका काम चलता था। वे आजादी की लड़ाई के दौरान खादी आंदोलन में शामिल थे। शाहाबादी जी फिल्म बनाने के लिए तैयार हो गये लेकिन तय बजट के बावजूद फिल्म बनते-बनते बजट बहुत बढ़ गया था।
गांव की मिट्टी में जन्मे लोगों ने फिल्म का भार उठाया : बनारस के ही रहने वाले कुमकुम और असीम को फिल्म में नायक-नायिका की भूमिका मिली। फिल्म का निर्देशन बनारस के कुंदन कुमार को सौंपा गया। आरा के रहनेवाले शैलेन्द्र ने गीत लिखा था। इसमें काम करने वाले अधिकतर कलाकार बिहार से थे। लीला मिश्रा, रामायण तिवारी और सुजीत कुमार सरीखे भोजपुरी कलाकारों ने इस फिल्म में अपनी अमिट छाप छोड़ी थी।
फिल्म ने कई कीर्तिमान स्थापित किये : भोजपुरी की पहली फिल्म जिसने कई क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों के लिए कीर्तिमान स्थापित किया। फिल्म ने प्रादेशिक लोगों के लिए अपनी भाषा में फिल्म बनाने की चाह पैदा की। भोजपुरी की देखादेखी में मैथिली भाषा में प्रथम चलचित्र कन्यादान बना जिसे 1965 में रिलीज़ किया गया था। मैथिली चलचित्रपट का इतिहास कोई अधिक बेहतर नहीं रहा है क्योंकि मैथिली सिनेमा का स्थान तो भोजपुरी सिनेमा ने ले रखा था।
22 फरवरी को रिलीज हुई थी फिल्म : 22 फरवरी, 1963 भोजपुरी के लिए ऐतिहासिक दिन था। इसी दिन भोजपुरी की पहली फिल्म गंगा मइया तोहे पियरी चढ़ईबो रिलीज हुई थी। ब्लैक एंड व्हाइट में बनी इस फिल्म का पटना के वीणा सिनेमा में प्रदर्शन हुआ था। इस फिल्म को देखने के लिए लोग बैलगाड़ी पर सवार होकर, समूह बनाकर सिनेमा घर जाते थे।
फिल्म ने तहलका मचाया था : गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो पहली भोजपुरी फिल्म थी, जिसने पहली स्क्रीनिंग में ही तहलका मचा दिया था। जिसकी पहली स्क्रीनिंग सदाकत आश्रम में की गई थी तथा देश के प्रथम राष्ट्रपति ने इसे देखा था। इस फिल्म ने पहली भोजपुरी फिल्म का गौरव पाने के साथ ही धमाका मचा दिया था।
कहा जाता था फिल्म देखने के बाद पूरी होगी बनारस यात्रा : गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो ने बनारस में ऐसी धूम मचाई थी कि लोग कहने लगे थे कि काशी जाइये, गंगा मइया और विश्वनाथ जी का दर्शन कीजिए और उसके बाद “हे गंगा मइया तोरे पियरी चढ़इबो” देखिए तभी बनारस की यात्रा पूरी होगी।
शैलेंद्र ने लिखा था गीत : फिल्म के लिए गीत लिखने की बारी आयी तो शैलेंद्र तैयार हो गए। हिंदी सिनेमा के टॉप के 10 गीतकारों में उनका नाम आता है। यहां यह बताते चले कि शैलेंद्र जी बहुत कम समय के लिए ही आरा में रहे थे लेकिन अपनी मातृभाषा से और अपनी माटी से उनका गहरा लगाव था। इसलिए फिल्म में गाये गये गीतों से गाँव की मिट्टी की खुशबू आती है। फिल्म के सुपरहिट होने के पीछे इसके गीत भी थे। लोग अक्सर इसके गीतों को गुनगुनाया करते थे।
मोहम्मद रफी ने पहली भोजपुरी फिल्म में गाया था गाना : भोजपुरी फिल्मों का अगर इतिहास पढ़ेंगे तो इसके निर्माण में पाकिस्तान में जन्में उर्दू भाषा के ज्ञाता और स्वर सम्राट मोहम्मद रफी का भी नाम आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो फिल्म में पहली बार मोहम्मद रफी ने भोजपुरी भाषा ने गीत गाया था? “सोनवा के पिंजरा में बंद भइले हाय राम, चियरी के जियवा उदास” फिल्म का एक ऐसा दर्द भरा गीत था जिसे हृदय में टीस पैदा करता है। इस गीत को गाते समय पार्श्वगायक मो. रफी साहब ने सारे दर्द उड़ेल दिया था। इसके गीतों को रफी साहब ने अपनी सुरीली आवाज से संवारा है।
स्वर साम्राज्ञी लता ने पहली भोजपुरी फिल्म को स्वर से संवारा था : स्वर साम्राज्ञी भारत रत्न लता मंगेशकर का भोजपुरी गीतों के प्रति भी काफी लगाव है। वे खुद मानती हैं कि भोजपुरी में गाए गए गीत किसी को भी मंत्रमुग्ध कर सकते हैं। उन्होंने खुद कहा कि भोजपुरी लोकगीतों की स्वर लहरियां बेमिसाल हैं। साठ के दशक में बनी पहली भोजपुरी फिल्म- “गंगा मइया तोहे पियरी चढइबो” के कई गानों को लता मंगेशकर ने ही आवाज दी है। “काहे बसुरियां बजुवले, कि सुध बिसरउले, गइल सुख चैन हमार”, एक ऐसा गीत था जो हृदय में गुदगुदी पैदा कर देता है। लड़कियां अक्सर इस गीत को गुनगुनाया करती थीं।
भोजपुरी गीतों के पहले संगीतकार बने चित्रगुप्त :“गंगा मइया तोहे पियरी चढइबो” के सुपरहिट गीतों को अपने संगीत से संवारा था फिल्म के संगीतकार चित्रगुप्त ने। चित्रगुप्त ने गंगा मइया तोहे पियरी चढइबो में ग्रामीण वाद्य यंत्रों से संगीत दिया था। उन्होंने बांसुरी की तान और ढोलक की थाप पर गीतों को संवारा था।
फिल्म का विशेष शो दिल्ली में हुआ : “गंगा मइया तोहे पियरी चढइबो” का विशेष शो दिल्ली में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जगजीवन राम जैसे बड़े नेताओं के बीच हुआ था। और गर्व के साथ राजेंद्र बाबू, जगजीवन बाबू जैसे लोग अपनी भाषा, अपनी माटी के फिल्म को लोगों को बुला-बुलाकर दिखाते थे। तो यह थी विश्व और भारत की पहली भोजपुरी फिल्म। बिल्कुल साफ सुथरी फिल्म जिसे परिवार के साथ देखा जाता था और जिसने भोजपुरी फिल्म की आधाशिला रखी थी।