अशोक वर्मा “हमदर्द” की दिल को छू लेने वाली कहानी : जुदाई प्यार का

अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। प्यार एक अहसास है जो किसी भी सीमा या धर्म के बंधनों को नहीं मानता। लेकिन जब समाज और परंपराएं रास्ते में आती है, तो यह प्रेम पीड़ा बन जाता है। यह कहानी सिर्फ आलोक और जमीला की नहीं, बल्कि उन तमाम दिलों की है, जो बिना किसी गलती के तन्हाई का दंश झेलते हैं।

2 फरवरी 1992 का दिन…आलोक के जीवन का सबसे मुश्किल दिन। शादी का मंडप सजा था, मेहमानों की भीड़ थी और जमीला लाल जोड़े में एक परी जैसी लग रही थी। लेकिन उसकी आंखों में जो नमी थी, वह उस लाल जोड़े से कहीं ज्यादा चमक रही थी। आलोक दूर खड़ा था, बेबस और टूटा हुआ। जमीला ने विदाई से पहले एक आखिरी बार उसे देखा। उसकी आंखों ने जो कहा, वह शब्दों में कहना मुश्किल था। यह विदाई सिर्फ एक घर से नहीं, बल्कि उसकी आत्मा और सपनों से भी थी।

जमीला के जाने के बाद आलोक के लिए दिन और रात का कोई मतलब नहीं रह गया। वह हर रात उस गंगा के किनारे जाकर घंटों बैठता, जहां कभी वह और जमीला मिलते थे। पानी की लहरें उसे जमीला की हंसी की याद दिलाती और ठंडी हवा उसके गालों पर जमीला के आंसुओं का अहसास कराती। वह अक्सर खुद से सवाल करता, “क्या प्यार का यही अंजाम होता है? क्या धर्म का बंधन इंसानियत से बड़ा है?”

इधर जमीला का जीवन भी किसी सजा से कम नहीं था। उसका पति उसे तवज्जो नहीं देता था। अब वह दो बच्चों की मां थी, लेकिन उसका जीवन सिर्फ जिम्मेदारियों और दुखों से भरा हुआ था। जब उसने अपने पति की दूसरी शादी के बारे में सुना, तो उसकी दुनिया पूरी तरह बिखर गई। उसने अपने सास-ससुर से इंसाफ की गुहार लगाई, लेकिन हर बार यही जवाब मिला, “यह हमारे धर्म में जायज है। तुम्हें इस रिश्ते को निभाना होगा।”

जमीला ने हार नहीं मानी। उसने अपने बच्चों के भविष्य के लिए अपने मायके लौटने का फैसला किया। लेकिन वह अंदर से पूरी तरह टूट चुकी थी।

जब आलोक को जमीला के लौटने की खबर मिली, तो उसका दिल उम्मीद से भर गया। वह उस गंगा के किनारे पहुंचा, जहां जमीला ने उसे बुलाया था। जमीला सफेद सलवार-कमीज में, बिना किसी गहने के, सिर्फ अपनी उदास आंखों के साथ खड़ी थी। आलोक ने उसे देखा और उसका दिल रो पड़ा। वह वही जमीला थी, लेकिन अब उसकी आंखों में सपने नहीं थे, सिर्फ तकलीफ थी।

“जमीला, क्या तुम ठीक हो?” आलोक ने कांपते हुए पूछा।
“ठीक?” जमीला ने हल्की सी हंसी के साथ जवाब दिया। “क्या तुमने कभी एक पिंजरे में बंद पक्षी को ठीक कहते सुना है?”

आलोक की आंखों में आंसू थे, और उसकी आवाज में वह दर्द साफ झलक रहा था जो उसने इतने सालों तक सहा था।
“जमीला, तुम दूर रहकर भी हमेशा मेरे पास रही हो। हर सांस में, हर ख्याल में, हर रात के अंधेरे में मैं तुम्हारा चेहरा देखता हूं। तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारी बातें, वो गंगा किनारे बिताए पल… सब कुछ मेरे भीतर आज भी जिंदा है। लेकिन तुम्हें इस हाल में देखकर… यह सोचकर कि तुम्हें इतना दर्द सहना पड़ा… मेरा दिल टूट जाता है। मुझे बस इतना बताओ, जमीला, क्या मेरे प्यार में कमी थी? क्या हमारी भावनाएं इतनी कमजोर थीं कि ये धर्म और समाज की दीवारें हमें अलग कर सकीं?”
जमीला के पिता ने कोर्ट में केस दर्ज कराया। केस लंबा खिंचता गया, लेकिन आलोक हर कदम पर जमीला के साथ खड़ा रहा। उसने जमीला को अपने दुखों से बाहर निकालने की पूरी कोशिश की।

एक दिन जमीला ने कहा, “आलोक, अगर मेरे अब्बा ने हमारे रिश्ते को मंजूरी दी होती, तो शायद आज मेरी जिंदगी इतनी मुश्किल न होती। मैं तुम्हारे साथ खुश रहती। लेकिन अब, जब सब खत्म हो चुका है, तो सिर्फ भगवान से यही दुआ है कि मेरे बच्चे इस दर्द से बच जाएं।”
कई सालों की लड़ाई के बाद कोर्ट ने फैसला जमीला के पक्ष में सुनाया। लेकिन यह जीत भी एक नयी पीड़ा लेकर आई। उसके पति ने उसे वापस ले जाने का फैसला किया। हलाला की रस्म के बाद वह फिर से उसी रिश्ते में बांध दी गई, जिसने उसे कभी खुशी नहीं दी थी।

आलोक यह सब देखकर अंदर ही अंदर मरता जा रहा था। वह जमीला को अपने पास रखना चाहता था, लेकिन समाज की जंजीरों ने उसे रोक दिया।

आज 15 साल बीत चुके हैं। आलोक अब भी उसी गंगा के किनारे बैठा रहता है। उसकी आंखों में अब भी वह पुरानी चमक नहीं लौटी। वह सोचता है, “क्या जमीला अब खुश है? क्या उसने अपनी तन्हाई को किसी तरह दूर कर लिया है?”

उसके हाथों में एक पुराना खत है, जिसे जमीला ने कभी लिखा था :
“आलोक, मैं चाहती थी कि यह जिंदगी तुम्हारे साथ बिताऊं। लेकिन शायद हमारी किस्मत में सिर्फ दर्द लिखा था। अगर अगले जन्म में हमारा मिलन हो, तो मैं सिर्फ तुम्हारी बनकर रहूं।”
यह शब्द आलोक के लिए सब कुछ थे। उसने यह खत अपने दिल के पास रखा और एक लंबी सांस ली।

“अगर भगवान को हमारी तक़दीर बदलनी होती, तो क्या वह हमें इतना कुछ सहने देता?” आलोक अक्सर खुद से यही सवाल करता।
यह कहानी खत्म होती है, लेकिन प्रेम और पीड़ा का यह संगम कभी खत्म नहीं होगा। वह प्रेम जो कभी पूरी तरह से साथ नहीं रह पाया, वह अब भी किसी न किसी रूप में जीवित रहेगा—जैसे आलोक के दिल में जमीला की यादें और जमीला के मन में आलोक का प्यार।
यह एक ऐसी कहानी है, जो हर उस दिल की है, जो समाज और धर्म के बंधनों में बंधकर भी प्यार करता है, लेकिन अंततः उसे जुदाई का दर्द सहना पड़ता है।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

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