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हिंदू समाज की परिभाषा और भारत की मूल पहचान : भागवत

कोलकाता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने पश्चिम बंगाल में संघ के मध्य बंग प्रांत की सभा को संबोधित करते हुए हिंदू समाज की एकता पर जोर दिया। संघ प्रमुख ने कहा कि हिंदू समाज विविधताओं को स्वीकार करता है और यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है।

‘विविधता में एकता’ केवल एक नारा नहीं है, बल्कि हिंदू समाज इसे अपने स्वभाव में अपनाए हुए है।

भागवत ने जोर देकर कहा कि भारत की सांस्कृतिक जड़ें हिंदू समाज में हैं, और इसी कारण यह समाज पूरे देश को एकजुट रखता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ का उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करना है, क्योंकि यह समाज भारत की सांस्कृतिक और नैतिक पहचान का प्रतीक है।

भागवत ने कहा कि अक्सर लोगों द्वारा यह सवाल उठाया जाता है कि संघ सिर्फ हिंदू समाज पर ही क्यों ध्यान देता है। इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हिंदू समाज ही इस देश का जिम्मेदार समाज है, जो उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण है।

इसलिए, इसे एकजुट करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि भारत केवल एक भौगोलिक संरचना नहीं है, बल्कि इसका एक विशिष्ट स्वभाव और सांस्कृतिक पहचान है।

अपने संबोधन में मोहन भागवत ने ऐतिहासिक आक्रमणों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत पर शासन करने वाले आक्रमणकारियों ने समाज के भीतर विश्वासघात के कारण सफलता पाई।

उन्होंने सिकंदर से लेकर आधुनिक युग तक के विभिन्न आक्रमणों का उदाहरण देते हुए कहा कि समाज जब संगठित नहीं रहता, तब बाहरी ताकतें हावी हो जाती हैं। इसलिए, हिंदू समाज की एकजुटता सिर्फ वर्तमान की नहीं, बल्कि भविष्य की भी जरूरत है।

उन्होंने भगवान राम और भरत के त्याग एवं मर्यादा का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत में महान शासकों की तुलना में उन व्यक्तियों को अधिक याद किया जाता है, जिन्होंने आदर्शों की रक्षा के लिए बलिदान दिया।

उन्होंने हिंदू समाज से आग्रह किया कि वह इन मूल्यों को अपनाए और समाज को संगठित रखे ताकि भविष्य की किसी भी चुनौती का सामना किया जा सके।

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