एयर वेटरन बिनय कुमार शुक्ल, कोलकाता। अभी कोविड के खुमारी की यादें मनो-मस्तिष्क से उतरी भी नहीं कि फिर से एक और विषाणु का प्रवेश, वह भी हाहाकारी मुद्रा में! जीवन क्षणभंगुर है पर जब हर क्षण इसपर विषाणुओं के खतरे का आघात लगता रहे तो बेचार कितनी देर तक लड़ सकता है। अब खुद ही देख लीजिए, फिर से उसी दिशा से विषाणुओं की हवा बहकर आने लगी है। दो-चार दिन पहले तक तो ऐसी खबरें या रही थीं कि इसका केंद्र चीन है तो यह चीन की परिधि लांघने में शायद सक्षम न हो सके और फिर भारत पर किसी प्रकार का खतरा नहीं है पर भला हवाओं को कोई बांध कर साख सका है क्या?
हवाओं की सवारी करते हुए एच.एम.प.वी (Human metapneumovirus) विषाणु ने भारत की धरती पर प्रहार करना शुरू कर दिया है। गाहे बगाहे खबरें आने लगी हैं कि किसी ने चेन्नई में देखा तो किसी ने अहमदाबाद में देखा। विषाणु भले ही न आया हो पर सोशयल मीडिया में लाइक और व्यू के शौकीन लोग और चैनल पिछले दो दिन से बस लॉक-डाउन की संभावनाओं और आशंकाओं के बैनर लगाए जनता जनार्दन में एक अज्ञात खतरे का डर बैठाने के प्रयास में लग गए है।
अच्छी चीजें आजकल देखता भला कौन है! बुरी चीज की एक झलक भी मिल जाए तो उसके अंत तक के परिणाम की भी झलक पाएं की व्यग्रता हमें बुरे और खराब चीजों की ओर खींच कर ले जाती है। यही आज यहाँ भी हो रहा है।
विशेषज्ञों की यदि मानें तो इसके लक्षण भी वही कोविड के जैसे ही होते हैं। वैश्विक स्तर पर इसे सर्दी-जुकाम परिवार का ही एक रोग माना जाता रहा है। सन 1970 से यह मानव समाज को चिढ़ा रहा है पर पहली बार सन 2001 में इसे पहचाना गया था और इसका नामकरण हुआ। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि भारत के लिए यह रोग नया नहीं है अतः इसके बुरे प्रभाव की आशंका बिल्कुल ही नहीं है।
हालांकि सर्दी जुकाम यदि जटिल स्थिति में पहुँच जाए तो नाक का बहना या बंद हो जाना, नाक यदि बंद हो तो थोड़ा-बहुत साँसों की तकलीफ होना तो लाजिमी है। बस यही लक्षण इस बीमारी में भी हैं। कुछ ऐसे मरीज भी होंगे जिन्हें फेफड़े में किसी प्रकार का संक्रमण होगा। फेफड़े में संक्रमण होना अर्थात आपकी श्वसन प्रक्रिया का बाधित होना। इस प्रकार के विषम लक्षण वाले रोगियों में जैसे आम सर्दी जुकाम का प्रभाव होता है वैसे ही लक्षण इस बीमारी के भी हो सकते हैं।
चूंकि एक प्रकार की फ्लू है और फ्लू को ठीक करने के लिए कोई भी विशेष दवा बाजार में उपलब्ध नहीं हैं अतः लक्षणों के आधार पर इसका उपचार करने की सलाह चिकित्सकों द्वारा दी जाती है। आमतौर पर सर्दी जुकाम होने पर यह सलाह दी जाती है कि अधिक से अधिक जल या तरल पदार्थों का सेवन किया जाए तथा जब तक अत्यावश्यक न हो तब तक बिना चिकित्सक की सलाह के एंटीबायोटिक का प्रयोग न करें।
कहा जाता है कि विषबेल उगने के पहले ही उसे नष्ट कर देना उचित है और सबसे बड़ी बात यह है कि उसके लिए यदि उर्वरा भूमि न दी जाए तो उगेगा कैसे? इसी सूत्र का प्रयोग कर हर प्रकार के श्वसन तंत्र के रोगों में बचाव के उपाय यदि किये जाएँ तो रोग फैलेगा ही नहीं। इस बीमारी के रोकथाम के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं :-
हाथों की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें।
खाँसते या छींकते समय मुंह और नायक को ढक कर रखने का प्रयास करें।
यदि आवश्यकता हो तो मास्क का प्रयोग करें।
यदि तबीयत खराब हो तो आराम करें और एकांत का सेवन करें।
आँख, नाक और मुँह बार-बार छूने से बचें।
हवादर कमरे में रहने का प्रयास करें।
रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि के लिए उचित पोषाहार, नियमित व्यायाम, अच्छी नींद और सही जीवनशैली जीने का प्रयास करें।
*(पूर्वांचली भोजपुरी में जिल-जिलाकर का शाब्दिक अर्थ है चिढ़कर)
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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