गुरु गोविंद सिंह जी के छोटे साहबजादों के साहस को श्रद्धांजलि
छोटे साहबजादों का स्मरण आते ही सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है व सिर श्रद्धा से झुक जाता है
साहबजादों बाबा जोरावर सिंह व फतेहसिंह के सम्मान में बाल दिवस के साथ बाल पुरस्कार 26 जनवरी के स्थान पर 26 दिसंबर को देना सराहनीय निर्णय- अधिवक्ता के.एस. भावनानी
अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर आदि अनादि काल से भारत की अनेक गाथाएं इतिहास में दर्ज है, जिसका बखान उनके प्रकाशोत्सव वर्षगांठ या उस दुखद पल बलिदान दिवस के रूप में उसको याद किया जाता है। इसी कड़ी में 26 दिसंबर को सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार की शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है। छोटे साहिबजादों का स्मरण आते ही सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है और सिर श्रद्धा से झुक जाता है। देश में पहली बार पीएम के ऐलान के बाद ही 26 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी के साहस को श्रद्धांजलि देने के लिए वीर बाल दिवस पूरे देश-विदेश में मनाया जाता है। गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब उस स्थान पर खड़ा है, जहां साहिबजादों ने आखिरी सांस ली।
केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री ने मंगलवार 24 दिसंबर 2024 को एक बयान जारी करके बताया कि भारत के बच्चों की उपलब्धियों और सामर्थ्य को सम्मानित करते हुए आगामी गुरुवार को वीर बाल दिवस मनाया जाएगा। इस अवसर पर राष्ट्रव्यापी गतिविधियों के लिए इस साल 14 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के 17 बच्चों को सम्मानित किया जाएगा। इस पुरस्कार समारोह में सात श्रेणियों में उल्लेखनीय योगदान के लिए सात लड़कों और दस लड़कियों को सम्मानित किया जाएगा। पीएम बाल पुरस्कार इस बार 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के बजाय 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के मौके पर दिए जाएंगे। राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में राष्ट्रपति बाल पुरस्कार बांटेंगी। पीएम इसके बाद भारत मंडपम में बच्चों से मिलेंगे। चूँकि छोटे साहबजादों का स्मरण आते ही सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है व सिर श्रद्धा से झुक जाता है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, गुरु गोविंद सिंह जी के छोटे साहबजादों के साहस को श्रद्धांजलि, वीर बाल दिवस 26 दिसंबर 2024 पर विशेष।
साथियों बात अगर हम वीर बाल दिवस के महत्व व परिभाषा संशोधन की करें तो, यह दिवस खालसा के चार साहिबजादों के बलिदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। अंतिम सिख गुरु गोबिंद सिंह के छोटे बच्चों ने अपने आस्था की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। यह उनकी कहानियों को याद करने का भी दिन है और यह जानने का भी दिन है कि कैसे उनकी निर्मम हत्या की गई, खासकर जोरावर और फतेह सिंह की। सरसा नदी के तट पर एक लड़ाई के दौरान दोनों साहिबजादों को मुगल सेना ने बंदी बना लिया था।इस्लाम धर्म कबूल नहीं करने पर उन्हें क्रमशः 8 और 5 साल की उम्र में कथित तौर पर जिंदा दफन कर दिया गया था।
बदली परिभाषा : अब वीर वह है जो अंधेरों को रोशन करें। सरकार ने इस बार वीरता की परिभाषा को भी परिमार्जित किया है। इसमें कहा गया है, वीर वह है जो अंधेरों को रोशन करें। इसमें केवल साहस ही नहीं दया, क्रियाशीलता, नवप्रवर्तन के साथ कुछ कर गुजरे बच्चों जो समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बनते हैं को शामिल किया गया है, ताकि इससे देश की युवा पीढ़ी और बच्चे भी ऐसा करने के लिए प्रेरित हों। सरकार का मकसद इसके जरिए समग्रता के साथ बच्चों की वीरता और कारनामों को पेश करना है। वीर सपूतों के अदम्य साहस से प्रेरणा लेना आवश्यक है।
साथियों बात अगर हम 26 दिसंबर 2024 को वीर बाल दिवस के रूप में मनाने व इसी दिन पीएम राष्ट्रीय बाल पुरस्कार वितरण की करें तो, पीएम आह्वान पर 2022 से 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के दो छोटे साहिबजादे 9 साल के बाबा जोरावर सिंह और उनके छोटे भाई 5 साल के बाबा फतेह सिंह की वीरता को समर्पित है। 26 दिसंबर को 1705 में इन महान सपूतों को धर्म नहीं बदलने पर प्रतिशोध स्वरूप वजीर खान ने जिंदा दीवार में चुनवा दिया था। इस शहादत को नमन करने के लिए इस बार वीर बाल दिवस के मौके पर बहादुर बच्चों को सम्मानित किया जा जाएगा। केंद्रीय मंत्री ने सोशल मीडिया पर लिखा पीएम राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित बच्चों के साथ वीर बाल दिवस मनाया जाएगा।
यह वह नौनिहाल हैं, जिन्होंने साबित किया है कि दृढ़ संकल्प से हर मुकाम हासिल किया जा सकता है। इन बाल प्रतिभाओं से प्रेरणा लेकर विकसित भारत बनाएंगे। भारत सरकार असाधारण उपलब्धियों के लिए सात श्रेणियों कला और संस्कृति, बहादुरी, नवाचार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, सामाजिक सेवा, खेल और पर्यावरण में बच्चों को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (पीएमआरबीपी) प्रदान करती है। इस बार 14 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 17 बच्चों को इस पुरस्कार के लिए चुना गया है। इनमें 7 लड़के और 10 लड़कियां शामिल हैं। राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु 26 दिसंबर, 2024 को इन बच्चों को पुरस्कार प्रदान करेंगी। प्रत्येक विजेता को पदक, प्रमाण पत्र और प्रशस्ति पत्र पुस्तिका दिए जाएंगे। वीर बाल दिवस पर राष्ट्रीय कार्यक्रम 26 दिसंबर, 2024 को ही नई दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित किया जाएगा।
यह दिन युवा दिमागों को पोषित करने, उनकी रचनात्मकता बढ़ाने और विकसित भारत की भविष्य दृष्टि में योगदान के लिए उन्हें प्रेरित करने पर केंद्रित होगा। इस कार्यक्रम में पीएम शामिल होंगे। आयोजन में पीएम राष्ट्रीय बाल पुरस्कार विजेताओं और गणमान्य व्यक्तियों सहित लगभग 3,500 बच्चे इस कार्यक्रम में भाग लेंगे। कार्यक्रम में बच्चों द्वारा भारतीय विरासत को दर्शाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएंगे। बच्चे विविध संस्कृतियों के प्रतिनिधित्व वाले मार्च पास्ट में भी शामिल होंगे। इसके अलावा माई गॉव/माई भारत पोर्टल पर ऑनलाइन गतिविधियां सहित देश भर के स्कूलों, बाल देखभाल संस्थानों, आंगनवाड़ी केंद्रों में कहानी सुनाने, रचनात्मक लेखन, पोस्टर बनाने, निबंध लेखन, कविता और प्रश्नोत्तरी जैसी विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होंगे।
साथियों बात अगर हम वीर बाल दिवस के इतिहास की करें तो, बताते हैं कि मुगलों ने अचानक आनंदपुर साहिब के किले पर हमला कर दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों से लड़ना चाहते थे, लेकिन अन्य सिखों ने उन्हें वहां से चलने के लिए कहा। इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह के परिवार सहित अन्य सिखों ने आनंदपुर साहिब के किले को छोड़ दिया और वहां से निकल पड़े। जब सभी लोग सरसा नदी को पार कर रहे थे तो पानी का बहाव इतना तेज हो गया कि पूरा परिवार बिछड़ गया। बिछड़ने के बाद गुरु गोबिंद सिंह व दो बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिंह व बाबा जुझार सिंह चमकौर पहुंच गए। वहीं, माता गुजरी, दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह और गुरु साहिब के सेवक रहे गंगू गुरु साहिब व अन्य सिखों से अलग हो गए। इसके बाद गंगू इन सभी को अपने घर ले गया लेकिन उसने सरहिंद के नवाज वजीर खान को जानकारी दे दी जिसके बाद वजीर खान माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को कैद कर लिया।
वजीर खान ने दोनों छोटे साहिबजादों को अपनी कचहरी में बुलाया और डरा-धमकाकर उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन दोनों साहिबजादों ने जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल के जयकारे लगाते हुए धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया। वजीर खान ने फिर धमकी देते हुए कहा कि कल तक या तो धर्म परिवर्तन करो या मरने के लिए तैयार रहो। अगले दिन ठंडे बुर्ज में कैद माता गुजरी ने दोनों साहिबजादों को बेहद प्यार से तैयार करके दोबारा से वजीर खान की कचहरी में भेजा। यहां फिर वजीर खान ने उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन छोटे साहिबजादों ने मना कर दिया और फिर से जयकारे लगाने लगे। यह सुन वजीर खान तिलमिला उठा और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दे दिया और साहिबजादों को शहीद कर दिया। यह खबर जैसे ही माता दादी माता गुजरी के पास पहुंची, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि गुरु गोविंद सिंह जी के छोटे साहबजादों के साहस को श्रद्धांजलि- वीर छोटे साहबजादों का स्मरण आते ही सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है व सिर श्रद्धा से झुक जाता है। साहबजादों बाबा जोरावर सिंह व फतेहसिंह के सम्मान में बाल दिवस के साथ बाल पुरस्कार 26 जनवरी के स्थान पर 26 दिसंबर को देना सराहनीय निर्णय है।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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