एक ऐसी हड़ताल जिसकी कोई खबर नहीं पर परेशान है आम आदमी

विनय शुक्ला, कोलकाता। ओडिशा राज्य में आवागमन के लिए सरकार द्वारा बहुत सुंदर व्यवस्था बनाई गई है। इस व्यवस्था में सुदूर गांव तक सस्ती दरों में सरकारी बसों के परिचालन की सुविधा उपलब्ध है।इसके अतिरिक्त राजधानी भुवनेश्वर में आम प्रवासी (गांव से या अन्य शहरों से भुवनेश्वर आने वाले) आदमी के आवागमन का सुगम साधन ऑनलाइन ऐप कैब या ऑटो है। स्थानीय स्टैंड से चलने वाले ऑटो रिक्शा अनाप शनाप और सीमा से अधिक किराए की मांग करते हैं। अब यह सोच लीजिए कि आधे किलोमीटर की सवारी के लिए डेढ़ सौ से लेकर ढाई सौ तक की मांग की जाती है और मजबूरन सवारी को देना भी पड़ता है।

ऐसे सवारियों की सुविधा और सुलभता के लिए शहर में ऐप कैब खूब चलते है और शायद यह एकमात्र ऐसा शहर है जहां काफी संख्या में ऐप कैब है। ओला, उबर, रैपिडो तो काफी प्रचलित हैं ही इसके अतिरिक्त ओडिशा यात्री सहित कुछ और जाने अजाने एप्प भी हैं जो यात्रियों के लिए काफी राहत भरी सुलभ और सस्ती यात्रा का बंदोबस्त करते हैं। पर अब लगता है जैसे इन ऐप कैब का जमाना भी लदने की ओर अग्रसर हो रहा है।

आज तीन दिनों से ऑटो चालक इन समस्त ऐप कैब का बहिष्कार किए बैठे हैं या यूं कह लीजिए कि इनके खिलाफ हड़ताल पर उतरे हुए हैं। इन ऐप के माध्यम से किसी भी सवारी की बुकिंग नहीं की जा रही है। ऑटो वालों का कहना है कि हर यात्रा के लिए ये ऐप पैंतीस रुपए कमीशन लेते हैं तथा जो किराया लिया जा रहा है वह काफी कम है, पिछले दस वर्षों में कोई किराया वृद्धि नहीं हुई है अर्थात किराया बढ़ाना भी उनकी एक मांग है।

यह तो चल ही रहा है साथ ही एप्प कैब भी अपनी ओर से ग्राहकों पर सितम ढा रहे हैं। दो दिनों से मैं उबर से गाड़ी बुक करने का प्रयास कर रहा हूं, बुकिंग में दस से बीस मिनट तक का समय लगा रहा है। बुकिंग के बावजूद गाड़ियां नहीं आ रही हैं और जब तब आकर यात्रा कैंसिल की जा रही है तो एप्प वाले अठारह रुपए और उन्चास पैसे की रसीद भेज दे रहे हैं। उनका कहना है कि पहले भुगतान करो फिर आगे की बात करो अर्थात यात्रियों पर दोहरी मार पड़ रही है।

ऑटो ड्राइवरों और एप्प वालों के बीच इस रस्साकसी के कारण हमारे जैसे निरीह यात्री हलकान हो रहे हैं पर ऐसा लग रहा है जैसे किसी पर भी इस घटना से कोई सरोकार नहीं है। कुछ ऑटो वालों से मेरी बात हुई पर ऐसा नहीं लगता कि समस्या यथाशीघ्र हल हो पाएगी। एप्प वालों को ऐसा लगता है जैसे ड्राइवर जाएंगे कहां, लौट के आना तो होगा ही।

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