नई दिल्ली : हिंदुस्तान के प्रसिद्ध सूफी संत हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर मंगलवार को जश्ने-बहारां यानी बसंतोत्सव पूरी आस्था और उल्लास के साथ मनाया गया। इस मौके पर दरगाह को खासकर पीले रंग के फूलों से सजाया गया। दरगाह पर आने वाले अकीदतमंदों (श्रद्धालुओं) ने पीले फूल और पीली चादर पेश कर श्रद्धासुमन को अर्पित किए।ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर बसंतोत्सव मनाने का सिलसिला उनके जीवन काल से ही शुरू हो गया था और वह सिलसिला आज भी जारी है। यह उत्सव हिन्दू-मुस्लिम एकता और भाईचारे को बढ़ावा देने का अवसर बन चुका है। बसंत उत्सव के मौके पर यहां बहुत ही मनमोहक और दिलकश नज़ारा देखने को मिला। दरगाह को पूरी तरह पीले रंग के फूलों, कपड़ों और बिजली के कुमकुमों से सजाया गया है।
यहां बसंतोत्सव मनाने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। बताया जाता है कि हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के एक भांजे का बहुत ही कम उम्र में आकस्मिक निधन हो गया था। इसका ख्वाजा को काफी सदमा लगा और उन्होंने एकांतवास का सहारा ले लिया। वह किसी से न तो मिल-जुल रहे थे, न बातचीत कर रहे थे, जिसकी वजह से उनके ख़ास मुरीदों में काफी बेचैनी पाई जा रही थी।
उनके बहुत ही ख़ास मुरीद ख्वाजा आमिर खुसरो को भी ख्वाजा की यह परेशानी नहीं देखी जा रही थी। उन्होंने एक दिन देखा कि कुछ महिलाएं गाती-बजाती पीले वस्त्र पहनकर और पीले फूल लिए हुए जा रही हैं। अमीर खुसरो ने उन्हें रोककर इसकी वजह पूछी तो उन्हें पता चला कि आज बसंत पंचमी है और वह देवी की पूजा करने जा रही है। उन्हें बताया गया कि इस दिन वे लोग पीले वस्त्र पहनकर देवी को खासतौर से पीले फूल अर्पित करती हैं।
अमीर खुसरो को यह काफी पसंद आया। उन्होंने भी पीला वस्त्र धारण किया और गाते-बजाते ख्वाजा के हुजरे (कमरा) तक पहुंचे, जिसे देखकर ख्वाजा मुस्कुरा दिए। उसके बाद से यहां पर बसंत ऋतु के आगमन पर उत्सव मनाने का सिलसिला लगातार चलता आ रहा है और ख्वाजा के जाने के बाद भी सदियों से जारी है।
दरगाह के प्रमुख कर्ताधर्ता काशिफ निजामी का कहना है कि ख्वाजा के अकीदतमंदों में बड़ी तादाद हिंदू श्रद्धालुओं की है। ख्वाजा के दरबार में सभी का इज्जत और सम्मान के साथ स्वागत किया जाता है। उन्होंने बताया कि हम दिवाली भी मनाते हैं और बसंत भी मनाते हैं। बसंत उत्सव के अवसर पर दरगाह को पूरी तरह से पीले रंग में बदल दिया जाता है। दरगाह के चारों तरफ के हिस्से को खासतौर से पीले रंग के फूलों से सजावट की जाती है। शाम को दरगाह की खूबसूरती देखने लायक रहती है, क्योंकि दरगाह को पूरी तरह से पीले रंग के बिजली के कुमकुमों से सजाया जाता है और जब रोशनी होती है तो उसका नजारा देखने लायक होता है।
आगे उन्होंने बताया कि इस मौके पर दरगाह में आने वाले सभी श्रद्धालु पीले रंग की चादर और पीले फूल ही अर्पित करते हैं। इस मौके पर दरगाह में होने वाली सूफी कव्वाली और लंगर में भी यहां आने वाले श्रद्धालु बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। उन्होंने बताया कि सदियों से यह सिलसिला चलता आ रहा है और हमेशा चलता रहेगा, क्योंकि दरगाह पर हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी का स्वागत किया जाता है और उन्हें इज्जत और ऐहतराम की नजर से देखा जाता है।