अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों ने मानवता को शर्मसार कर दिया है। मंदिरों को तोड़ा जा रहा है, घर जलाए जा रहे हैं और मासूमों को बलि चढ़ाई जा रही है। परंतु इन घटनाओं पर वही लोग चुप्पी साधे हुए हैं, जो हर मंच पर संविधान की प्रति दिखाकर “सेक्युलरिज़्म” की दुहाई देते हैं। उनकी संवेदनशीलता केवल तब जागती है, जब उन्हें अपना एजेंडा चमकाना हो।
कोलकाता की सड़कों पर यूक्रेन युद्ध के लिए मोमबत्तियां जलाने वाले वामपंथी और समाजवादी नेता बांग्लादेशी हिंदुओं के दर्द पर क्यों मौन हैं? क्या इनकी इंसानियत जाति और धर्म देखकर काम करती है? ये वही लोग हैं जो हिंदू त्योहारों पर पर्यावरण की दुहाई देते हैं, लेकिन जब हिंदुओं पर हमला होता है, तो इनकी जबान सिल जाती है। इनका यह मौन न केवल कायरता है, बल्कि इनके दोहरे मापदंड को उजागर करता है।
हिंदुओं पर हो रहे इन हमलों के बीच अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी आंखें मूंदे हुए है। वह संयुक्त राष्ट्र, जो हर छोटे-छोटे मुद्दे पर बयान जारी करता है, बांग्लादेश के हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर खामोश क्यों है? यह प्रश्न पूरी मानवता के लिए चिंता का विषय है।
धिक्कार है उन पर जो “सर्वधर्म समभाव” की आड़ में हिंदुओं की पीड़ा को अनदेखा करते हैं। अब समय आ गया है कि हिंदू समाज ऐसे पाखंडियों को पहचानें और उनकी वोट-बैंक राजनीति को सिरे से खारिज करें। यह चुप्पी केवल कायरता नहीं, बल्कि हिंदू समाज के प्रति उनकी गहरी असंवेदनशीलता को दर्शाती है। यह पाखंड अब और नहीं सहा जाएगा। हिंदू समाज को एकजुट होकर इन अन्यायों के खिलाफ खड़ा होना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय की गूंज हर कोने तक पहुंचे।
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