पूर्वोत्तर भारत- 7 बहनें 1 भाई- सांस्कृतिक संपदा का प्रतीक संस्कृतिक अष्टलक्ष्मी महोत्सव 6-8 दिसंबर 2024

अष्टलक्ष्मी नाम, देवी लक्ष्मी के आठ अवतारों से प्रेरित है जो समृद्धि धन ज्ञान धर्म और कृषि आदि के प्रतीक है
अष्टलक्ष्मी महोत्सव पूर्वोत्तर भारत के बेहतर भविष्य का महोत्सव, जो विकसित भारत विजन 2047 को गति देगा सराहनीय विचार- अधिवक्ता के.एस. भावनानी

अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया को मालूम है कि भारत में प्राकृतिक संपदा, संस्कृति, संस्कारों, मानवीय बौद्धिक कौशलता, धार्मिक धर्मनिरपेक्षता हर जाति धर्म, सहित राज्य स्तरपर हर त्योहार व सांस्कृतिक समारोह विशालता से मिलजुल कर मनाए जाते हैं। आज हम इस विषय पर बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि 6 से 8 दिसंबर 2024 को नई दिल्ली में पूर्वोत्तर भारत के सात बहनों व एक भाई यानी असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और एक भाई सिक्किम मिलकर अष्ठलक्ष्मी महोत्सव मना रहे हैं। जिसका उद्घाटन 6 दिसंबर 2024 को देर शाम माननीय पीएम ने किया, महोत्सव में पूर्वोत्तर के 250 से अधिक कारीगर और उद्यमी हस्तशिल्प हथकरघा और कृषि-बागवानी उत्पादों तथा 34 जीआई टैग वाले उत्पादों का प्रदर्शन कर रहे हैं। राज्य विशिष्ट मंडप, एरी और मुगा सिल्क गैलरी भी कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण है।

यहां महिला नेतृत्व, सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा स्वास्थ्य सेवा, खेल, कला और संस्कृति पर तकनीकी सत्र भी हुए। यह महोत्सव आठ पूर्वोत्तर राज्यों की सांस्कृतिक सामाजिक और आर्थिक विविधता दर्शाता है। इस दौरान पूर्वोत्तर भारत की समृद्ध सांस्कृतिक झलक दिखाई दी, जिसमें पारंपरिक कला, शिल्प और सांस्कृतिक प्रथाओं की एक सीरीज को साथ पेश किया गया। इस कार्यक्रम में पारंपरिक हस्तशिल्प, हथकरघा, कृषि उत्पादों और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में आर्थिक अवसरों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए गए। यह कार्यक्रम उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित किया जा रहा है। जिसका प्रबंधन सीपीएसई उत्तर पूर्व हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम लिमिटेड के माध्यम से किया जा रहा है।

आठ पूर्वोत्तर राज्य- असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा और सिक्किम, ऐसे राज्य हैं जिन्हें अष्टलक्ष्मी या समृद्धि के आठ रूप कहा जाता है। यानि इसका कनेक्शन सेवन सिस्टर (अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा) से भी है। ये भारत के सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। अष्टलक्ष्मी महोत्सव क्षेत्र की प्रगति को प्रदर्शित करने इसकी सांस्कृतिक संपदा का जश्न मनाने और भविष्य के विकास के लिए नए निवेश को आमंत्रित करने के लिए आयोजित होने वाला एक अहम कार्यक्रम है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, पूर्वोत्तर भारत- 7 बहाने 1 भाई, सांस्कृतिक संपदा का प्रतीक संस्कृतिक अष्टलक्ष्मी महोत्सव 6 से 8 दिसंबर 2024 तक मनाया जा रहा है।

साथियों बात अगर हम 6 से 8 नवंबर 2024 तक आयोजित सांस्कृतिक महोत्सव के उद्देश्यों व महत्व की करे तो, देश के पहले अष्टलक्ष्मी महोत्सव का उद्देश्य पूर्वोत्तर भारत के बहु आयामी कपड़ा क्षेत्र, पर्यटन के अवसरों, पारंपरिक शिल्प कौशल और विशिष्ट भौगोलिक संकेत टैग वाले उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए एक गतिशील मंच प्रदान करना है। यह भारत के भविष्य के विकास के रणनीतिक महत्व पर ध्यान केंद्रित करते हुए क्षेत्र की सांस्कृतिक संपदा के उत्सव के रूप में काम करेगा इस महोत्सव की परिकल्पना एक वार्षिक कार्यक्रम के रूप में की गई है जो पूर्वोत्तर भारत की विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि का सम्मान करना जारी रखेगा, जिससे इस क्षेत्र को और अधिक आर्थिक उन्नति की ओर अग्रसर किया जा सकेगा।

महोत्सव में पूर्वोत्तर भारत के बुनियादी ढांचे के विकास के महत्व और इसके क्रांतिकारी प्रभाव पर भी जोर दिया जा रहा है। इस क्षेत्र की बेहतर कनेक्टिविटी, औद्योगिक विकास और परिवहन, ऊर्जा और डिजिटल बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में चल रहे विकास से भारत के विकास की कहानी में इसकी रणनीतिक भूमिका बढ़ेगी और व्यापार और व्यवसाय के लिए नए अवसर खुलेंगे।

साथियों बात अगर हम माननीय पीएम उद्घाटन संबोधन में 8 लक्ष्मियों के वर्णन की करें तो, हमारी परंपरा में मां लक्ष्मी को सुख, आरोग्य और समृद्धि की देवी कहा जाता है। जब भी लक्ष्मी जी की पूजा होती है, तो हम उनके आठ रूपों को पूजते हैं। आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी और विद्यालक्ष्मी इसी तरह भारत के पूर्वोत्तर में आठ राज्यों की अष्टलक्ष्मी विराजमान हैं। नॉर्थ ईस्ट के आठों राज्यों में अष्टलक्ष्मी के दर्शन होते हैं। अब जैसे पहला रूप है आदि लक्ष्मी। हमारे नॉर्थ ईस्ट के हर राज्य में आदि संस्कृति का सशक्त विस्तार है। नॉर्थ ईस्ट के हर राज्य में अपनी परंपरा, अपनी संस्कृति का उत्सव मनाया जाता है।

मेघालय का चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल, नागालैंड का हॉर्नबील फेस्टिवल, अरुणाचल का ऑरेंज फेस्टिवल, मिज़ोरम का चपचार कुट फेस्टिवल, असम का बीहू, मणिपुरी नृत्य। दूसरी लक्ष्मी धन लक्ष्मी, यानि प्राकृतिक संसाधन का भी नॉर्थ ईस्ट पर भरपूर आशीर्वाद है। आप भी जानते हैं कि नॉर्थ ईस्ट में खनिज, तेल, चाय के बागान और बायो-डायवर्सिटी का अद्भुत संगम है।वहां रीन्युएबल एनर्जी का बहुत बड़ा पोटेंशियल है। धन लक्ष्मी का ये आशीर्वाद, पूरे नॉर्थ ईस्ट के लिए वरदान है। तीसरी लक्ष्मी धान्य लक्ष्मी की भी नॉर्थ ईस्ट पर भरपूर कृपा है। हमारा नॉर्थ ईस्ट, नैचुरल फार्मिंग के लिए, जैविक खेती के लिए, मिलेट्स के लिए प्रसिद्ध है। हमें गर्व है कि सिक्किम भारत का पहला पूर्ण जैविक राज्य है।

नॉर्थ ईस्ट में पैदा होने वाले चावल, बांस, मसाले और औषधीय पौधे, वहां कृषि की शक्ति को दिखाते हैं। आज का भारत, दुनिया को हेल्दी लाइफ स्टाइल से जुड़े हुए न्युट्रिशन से जुड़े हुए, जो सोल्यूशन देना चाहता है उसमें नॉर्थ ईस्ट की बड़ी भूमिका है। अष्टलक्ष्मी की चौथी लक्ष्मी है, गज लक्ष्मी, गज लक्ष्मी कमल पर विराजमान हैं और उनके आसपास हाथी हैं। हमारे नॉर्थ ईस्ट में विशाल जंगल है, काजीरंगा मानस मेहाओ जैसे नेशनल पार्क और वाइल्ड लाइफ सेंचुरी हैं वहां अद्भुत गुफाएं हैं, आकर्षक झीलें हैं। गजलक्ष्मी का आशीर्वाद नॉर्थ ईस्ट को दुनिया का सबसे शानदार टूरिज्म डेस्टिनेशन बनाने का सामर्थ्य रखता है। पांचवीं लक्ष्मी हैं, संतान लक्ष्मी यानि उत्पादकता की, क्रिएटिविटी की प्रतीक।

नॉर्थ ईस्ट, क्रिएटिविटी के लिए, स्किल के लिए जाना जाता है। जो लोग यहां एग्ज़ीबिशन में जाएंगे, हाट बाज़ार में जाएंगे। उन्हें नॉर्थ ईस्ट की क्रिएटिविटी दिखेगी। हैंडलूम्स का, हैंडीक्राफ्ट्स का ये हुनर सबका दिल जीत लेता है। असम का मुगा सिल्क, मणिपुर का मोइरांग फी, वांखेई फी, नागालैंड की चाखेशांग शॉल। ऐसे दर्जनों हैं जो नॉर्थ ईस्ट की क्राफ्ट को, क्रिएटिविटी को दिखाते हैं। अष्टलक्ष्मी की छठी लक्ष्मी हैं वीर लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी यानि साहस और शक्ति का संगम। नॉर्थ ईस्ट, नारी-शक्ति के सामर्थ्य का प्रतीक है। मणिपुर का नुपी लान आंदोलन, महिला-शक्ति का उदाहरण है। नॉर्थ ईस्ट की महिलाओं ने कैसे गुलामी के विरुद्ध बिगुल फूंका था, ये हमेशा भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से दर्ज रहेगा।

रानी गाइदिन्ल्यु, कनकलता बरुआ, रानी इंदिरा देवी, ललनु रोपिलियानी लोक गाथाओं से लेकर हमारी आज़ादी की लड़ाई तक, नॉर्थ ईस्ट की नारीशक्ति ने पूरे देश को प्रेरणा दी है। आज भी इस परंपरा को नॉर्थ ईस्ट की हमारी बेटियां समृद्ध कर रही हैं। यहां आने से पहले मैं जिन स्टॉल्स में गया, वहां भी अधिकतर महिलाएं ही थीं। नॉर्थ ईस्ट की महिलाओं की इस उद्यमशीलता से पूरे नॉर्थ ईस्ट को एक ऐसी मजबूती मिलती है, जिसका कोई मुकाबला नहीं। अष्टलक्ष्मी की सातवीं लक्ष्मी हैं जय लक्ष्मी अर्थात ये यश और कीर्ति देने वाली हैं। आज पूरे विश्व में भारत प्रति जो उम्मीदें हैं, उसमें हमारे नॉर्थ ईस्ट की अहम भूमिका है।

आज जब भारत, अपने कल्चर, अपने ट्रेड की ग्लोबल कनेक्टिविटी पर फोकस कर रहा है, तब नॉर्थ ईस्ट, भारत को साउथ एशिया और ईस्ट एशिया के असीम अवसरों से जोड़ता है।अष्टलक्ष्मी की आठवीं लक्ष्मी है, विद्या लक्ष्मी यानि ज्ञान और शिक्षा। नॉर्थ ईस्ट को अपना पहला एम्स मिल चुका है। देश की पहली नेशनल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी भी मणिपुर में ही बन रही है। मैरी कॉम, बाइचुंग भूटिया, मीराबाई चानू, लोवलीना सरिता देवी ऐसे कितने ही स्पोर्ट्स पर्सन नॉर्थ ईस्ट ने देश को दिए हैं। आज नॉर्थ ईस्ट टेक्नोलॉजी से जुड़े स्टार्टअप्स, सर्विस सेंटर्स और सेमीकंडक्टर जैसे उद्योगों में भी आगे आने लगा है। इनमें हज़ारों नौजवान काम कर रहे हैं। यानि “विद्या लक्ष्मी” के रूप में ये रीजन, युवाओं के लिए शिक्षा और कौशल का बड़ा केंद्र बन रहा है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम अपने पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि पूर्वोत्तर भारत – 7 बहनें 1 भाई- सांस्कृतिक संपदा का प्रतीक संस्कृतिक अष्टलक्ष्मी महोत्सव 6-8 दिसंबर 2024 अष्टलक्ष्मी नाम, देवी लक्ष्मी के आठ अवतारों से प्रेरित है जो समृद्धि धन ज्ञान धर्म और कृषि आदि के प्रतीक हैं अष्टलक्ष्मी महोत्सव पूर्वोत्तर भारत के बेहतर भविष्य का महोत्सव, जो विकसित भारत विज़न 2047 को गति देगा सराहनीय विचार

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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