महानायक टंट्या मामा भील के बलिदान दिवस 4 दिसंबर पर जनजातीय नायकों के अविस्मरणीय योगदान पर केंद्रित महत्वपूर्ण प्रदर्शनी लगाई गई
उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में जनजातीय गौरव- ऐतिहासिक सामाजिक एवं आध्यात्मिक योगदान विषय पर केंद्रित महत्वपूर्ण व्याख्यान एवं कार्यशाला का आयोजन किया गया। महानायक टंट्या मामा भील के बलिदान दिवस 4 दिसंबर 2024, बुधवार को प्रातः विक्रम विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती सभागार में हुए इस आयोजन में ऐतिहासिक, सामाजिक और आध्यात्मिक संदर्भ में जनजातीय समुदायों के अतुलनीय योगदान पर व्याख्यान हुए।
राजभवन, भोपाल से विषय विशेषज्ञ दीपमाला रावत, डॉ. रेखा नागर एवं रूपसिंह नागर, इंदौर ने व्याख्यान दिए। अध्यक्षता कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने की। आयोजन की पीठिका कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने प्रस्तुत की। इस अवसर पर देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले जनजाति नायकों के अविस्मरणीय योगदान पर केंद्रित महत्वपूर्ण प्रदर्शनी संयोजित की गई।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि राजभवन भोपाल की विषय विशेषज्ञ डॉ. दीपमाला रावत ने कहा कि जनजातीय नायकों ने इस राष्ट्र के स्व. के जागरण में अविस्मरणीय योगदान दिया। विकसित भारत के स्वप्न को साकार करने के लिए जनजातीय समुदाय के गौरवशाली योगदान को लेकर आगे बढ़ना होगा।
जनजातीय समुदाय में सामूहिकता और समरसता की भावना है, जिसे नई पीढ़ी को सीखना होगा। रानी दुर्गावती के 500वें जयंती वर्ष और बिरसा मुंडा के 150वें जयंती वर्ष पर मध्यप्रदेश में पूरे वर्ष को जनजातीय गौरव के रूप में मनाया जा रहा है। यह गौरव की बात है कि मध्यप्रदेश के बैगा जनजातीय समुदाय से जुड़ी लहरीबाई ने मिलेट्स के बीजों को संरक्षित करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया है, उन्हें ब्रांड एंबेसडर बनाया गया है।
मुख्य वक्ता प्राध्यापक डॉ. रेखा नागर, महू ने अपने उद्बोधन में कहा कि सैकड़ों वर्षों से विदेशी आक्रांताओं से मुकाबला करने में जनजातीय बन्धुओं की अविस्मरणीय भूमिका रही है। जनजाति गौरव से सभी को जोड़ना होगा। समाज में व्याप्त भगोरिया और घोटुल से जुड़ी भ्रांत धारणाओं से मुक्त होना होगा।
कुलगुरु डॉ. अर्पण भारद्वाज ने कहा कि सदियों पहले जनजातीय समुदाय ने शक्तिशाली विदेशी हमलावरों के सामने चुनौती खड़ी की थी। उनसे जुड़ी गौरव गाथा को सुदूर क्षेत्रों तक ले जाने की आवश्यकता है। इस दिशा में विश्वविद्यालय द्वारा निरंतर प्रयास किए जाएंगे। सभी क्षेत्रों के युवा जनजातीय विषयों को लेकर कार्य करें।
जनजातीय मामलों के विशेषज्ञ रूपसिंह नागर ने कहा कि आक्रांताओं के सामने जनजातीय बन्धुओं ने कभी पराजय स्वीकार नहीं की। देश की स्वाधीनता के लिए सौ से अधिक बड़ी लड़ाइयाँ जनजाति बन्धुओं द्वारा लड़ी गईं।
संगोष्ठी की पीठिका रखते हुए कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि महानायक टंट्या भील मामा ने विपरीत परिस्थितियों में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ तीखा प्रतिकार किया। महान संत गोविंद गुरु ने जनजाति बन्धुओं के मध्य नई चेतना का प्रसार किया। उन्होंने ईश्वर भक्ति को राष्ट्रभक्ति के साथ जोड़ा। मानगढ़ के अमर शहीदों का स्मरण प्रत्येक भारतवासी को करना चाहिए।
अतिथियों का स्वागत एवं स्मृति चिन्ह अर्पण कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार शर्मा, कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा एवं डीएसडब्ल्यू प्रो. एस.के. मिश्रा ने किया। इस अवसर पर इतिहासकार डॉ. सुरेंद्र शक्तावत की पुस्तक 1857 की क्रांति और नीमच की प्रति डॉ. रमेश चौहान ने अतिथियों को अर्पित की। डॉ. मंगलेश्वरी जोशी रतलाम ने मध्यप्रदेश में स्वतंत्रता आंदोलन पर केंद्रित अपनी पुस्तक अर्पित की।
आयोजन में विक्रम विश्वविद्यालय क्षेत्राधिकार के दो सौ से अधिक महाविद्यालयों और अध्ययनशालाओं के नोडल प्रभारी एवं प्रतिनिधिगण ने भाग लिया। सभी महाविद्यालयों और अध्ययनशालाओं के प्रतिनिधियों को जनजातीय वीरों पर केंद्रित पुस्तक जनजातीय गौरव गाथा भाग एक और दो प्रदान की गई, जिनके आधार पर उच्च शिक्षा विभाग, मध्यप्रदेश शासन के सौजन्य से सभी उच्च शिक्षण संस्थाओं में प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता आयोजन के साथ जनजातीय नायकों पर केंद्रित प्रदर्शनी लगाई जाएगी।
आयोजन का संचालन डॉ. अमृता शुक्ला ने तथा आभार प्रदर्शन डीएसडब्ल्यू प्रो. एस.के. मिश्रा ने किया। इस महत्वपूर्ण आयोजन में बड़ी संख्या में प्रबुद्धजनों, शिक्षकों और विद्यार्थियों ने भाग लिया।
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