अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। स्नेहा की दूसरी किताब की सफलता ने उसे एक नई ऊँचाई पर पहुँचा दिया था। वह अब एक प्रतिष्ठित लेखिका बन चुकी थी और उसके लेखन को लेकर समाज में उसकी एक अलग पहचान बनने लगी थी। वह कई साहित्यिक आयोजनों में आमंत्रित की जाने लगी और उसके विचारों को लेकर लोगों में एक नई जागरूकता उत्पन्न होने लगी थी।
लेकिन इस सफलता के साथ-साथ स्नेहा के जीवन में कुछ चुनौतियाँ भी आने लगीं। उसकी बढ़ती व्यस्तता और लोकप्रियता के कारण उसे अपने परिवार के साथ समय बिताने में कठिनाई होने लगी। पहले जहां वह अपने हर दिन का एक बड़ा हिस्सा अर्जुन और आन्या के साथ बिताती थी, अब उसे अपने लेखन और साहित्यिक कार्यक्रमों में समय देना पड़ रहा था।
अर्जुन को स्नेहा की सफलता पर गर्व था, लेकिन धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि स्नेहा की बढ़ती व्यस्तता उनके रिश्ते को प्रभावित कर रही है। वह अब पहले की तरह स्नेहा के साथ खुलकर बातें नहीं कर पा रहा था और कई बार उसे अकेलापन महसूस होने लगा था। स्नेहा, अपने काम में इतनी उलझी हुई थी कि वह अर्जुन की इस स्थिति को समझ नहीं पा रही थी।
एक दिन, जब स्नेहा एक महत्वपूर्ण साहित्यिक समारोह से लौटी, अर्जुन ने उससे गंभीरता से बात करने का फैसला किया।
“स्नेहा,” अर्जुन ने कहा, “मुझे तुम पर गर्व है और मैं तुम्हारी सफलता से बहुत खुश हूँ। लेकिन मुझे ऐसा लगने लगा है कि तुम और मैं धीरे-धीरे एक-दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। पहले हम हर छोटी-बड़ी बात एक-दूसरे से साझा करते थे, लेकिन अब तुम्हारे पास समय नहीं होता। मुझे ऐसा लगता है जैसे हम दोनों एक ही घर में होते हुए भी अलग-अलग जीवन जी रहे हैं।”
अर्जुन की ये बातें सुनकर स्नेहा चौंक गई। उसने कभी सोचा ही नहीं था कि उसकी सफलता उसके रिश्ते पर ऐसा असर डालेगी। उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने अर्जुन का हाथ पकड़ा और कहा, “मुझे माफ कर दो, अर्जुन। मैं अपनी सफलता और काम में इतनी खो गई थी कि मैंने तुम्हारे और आन्या के साथ बिताने वाले समय को नजरअंदाज कर दिया। तुम हमेशा मेरे साथ खड़े रहे हो और मुझे हर कदम पर सपोर्ट किया है। मैं तुम्हारे बिना कुछ नहीं हूँ।”
अर्जुन ने स्नेहा के आँसू पोंछते हुए कहा, “स्नेहा, मैं जानता हूँ कि तुमने बहुत मेहनत की है और तुम्हारी सफलता तुम्हारे लिए बहुत मायने रखती है। लेकिन हमें अपनी जिंदगी में संतुलन बनाए रखने की जरूरत है। सफलता का आनंद तभी आता है जब हम उसे अपने अपनों के साथ साझा करें।”
स्नेहा ने यह समझ लिया था कि उसे अपनी जिंदगी में संतुलन बनाने की जरूरत है। उसने फैसला किया कि वह अपने काम और परिवार के बीच बेहतर तालमेल बैठाएगी। उसने अर्जुन से वादा किया कि वह अपने काम में थोड़ी कमी लाएगी ताकि वे दोनों एक-दूसरे के साथ समय बिता सकें।
इसके बाद, स्नेहा ने अपनी दिनचर्या में बदलाव किया। उसने अपने काम के समय को सीमित कर दिया और ज्यादा से ज्यादा समय अर्जुन और आन्या के साथ बिताने का फैसला किया। वह अर्जुन के साथ शाम की सैर पर जाने लगी और आन्या के साथ समय बिताने के लिए स्कूल से जुड़ी गतिविधियों में भी शामिल होने लगी।
धीरे-धीरे, स्नेहा और अर्जुन का रिश्ता फिर से पहले जैसा मजबूत होने लगा। दोनों ने मिलकर इस बात को समझा कि जिंदगी में सफलता और रिश्तों का संतुलन बनाए रखना कितना जरूरी है।
इस बदलाव ने स्नेहा के लेखन पर भी गहरा प्रभाव डाला। उसने अपने लेखन में परिवार, रिश्तों और जीवन में संतुलन की महत्ता पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया। उसकी अगली किताब भी इसी थीम पर आधारित थी और पाठकों ने इसे भी खूब सराहा।
अगली किश्त में पढ़ेंगे कि स्नेहा और अर्जुन की यह नई समझदारी उनके रिश्ते और करियर को कैसे और मजबूत बनाती है और कैसे वे एक नई चुनौती का सामना करते हैं, जो उनके जीवन को एक बार फिर बदलने वाली है।
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