मनीषा झा, खड़गपुरः- सात फरवरी को नंदादेवी ग्लेशियर के टूटकर गिरने से उत्तराखंड के चमोली जिले में भारी तबाही आई। जोशीमठ के पास ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर धौलीगंगा नदी में गिरा। इसकी वजह से ऋषिगंगा नदी में सैलाब आ गया और ऋषिगंगा पॉवर प्रोजेक्ट को भारी नुकसान पहुँचा। इस तबाही की चेतावनी देहरादून के वीडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने आठ महीने पहले ही दे दी थी। वैज्ञानिकों ने चेताया था कि जम्मू- कश्मीर के काराकोरम रेंज समेत पूरे हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों द्वारा प्रवाह रोकने पर कई झीलें बनी हैं। यह बेहद खतरनाक स्थिति हैं। 2013 में उत्तराखंड में आई आपदा इसका जीता जागता उदाहरण हैं।
नंदादेवी ग्लेशियर नंदादेवी पहाड़ पर स्थित है।
कंचनजंघा के बाद यह देश की दूसरी सबसे ऊँची चोटी हैं। यह गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में आता है।दरअसल उत्तराखंड दो प्रमुख भागों में बंटा हुआ है- कुमांयू और गढ़वाल। उत्तराखंड के गढ़वाल हिस्से में ही बड़-बड़े ग्लेशियर पाये जाते हैं। ये ग्लेशियर ही नदियों के उद्गम स्त्रोत हैं। नंदादेवी ग्लेशियर से बर्फ पिघलकर पानी ऋषिगंगा और धौलीगंगा में पहुँचता है। बद्रीनाथ के सतोपंथ नाम की जगह से निकलती है विष्णु नदी और दूसरी तरफ से आती है धौलीगंगा नदी। दोनों नदियां विष्णु प्रयाग में मिलती है। यदि एक नदी की गहराई ज्यादा और दूसरे नदी की गहराई कम हो तो गहरी नदी के नाम से नदी आगे बढ़ती है, लेकिन दोनों नदियों की गहराई एक समान होने के कारण नदी का नाम बदलकर अलकनंदा कर दिया गया है। अलकनंदा नदी पर कुल पांच प्रयाग है- विष्णु प्रयाग, नंद प्रयाग, कर्ण प्रयाग, रूद्र प्रयाग और देव प्रयाग। देव प्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी (गोमुख से निकलने वाली) भागीरथी नदी में मिलती है। दोनों नदियों की गहराई समान होने के कारण यहाँ नदी का नाम बदलकर गंगा हो जाता हैं।
ग्लेशियर टूटने की वजह से होने वाली त्रासदी मानव समाज के लिए एक चेतावनी है। साथ ही साथ ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न होने वाले खतरों का संकेत हैं। एक कवि की कविता इस पर सटीक बैठती हैः-
ग्लोबल वार्मिंग से गरमाती धरती,
ग्लेशियर पिघल रहे, घबराती धरती।
कहीं बाढ़, कहीं सूखा रंग दिखलाता,
खून के आंसू भीतर बहाती धरती ।
अंधाधुन्ध न काटो, बढ़ाओ वृक्षों को,
पर्यावरण बचा लो, समझाती धरती।।
मानव समाज अब भी इसके प्रति सचेत नहीं हुआ तो आने वाले समय में इसके गंभीर दुष्परिणाम भुगतने होगें।