अर्चना द्वारा स्वरचित काव्य गोष्ठी का आयोजन संपन्न

कोलकाता। अर्चना संस्था स्वरचित रचनाओं के लिए जानी जाती है और नए पुराने सदस्यों को अपनी लेखनी से सृजनात्मकता को बढ़ावा देती है। डॉ. वसुंधरा मिश्र ने बताया कि स्वर्गीय कवि और साहित्य महोपाध्याय नथमल केडिया द्वारा स्थापित अर्चना संस्था में स्वरचित रचनाएँ सुनाने की परंपरा चली आ रही है।

हर माह गोष्ठी में रचनाकार अपनी रचनाएँ सुनाते हैं जो अच्छी कविताओं, गीत, संगीत, गजल, लेख आदि क्षेत्रों में विकास करते हैं। इस गोष्ठी में कई सदस्यों ने 27 सितंबर को ऑन-लाइन अपनी महत्वपूर्ण रचनाओं की प्रस्तुति दी।

भोर दुपहरी/ बीते द्वार खड़ी है/ संध्या बेला बूढ़ा बरगद/ छांव परोसे बैठा/ निपट अकेला। कविता निशा कोठारी ने सुनाई जिसमें प्रकृति के माध्यम से समाज में फैले अंधेरे की चर्चा करती है। एक नयी सुबह आकर फिर विश्वास/दिलायेगी…रूकना नहीं, थकना नहीं।/भर खुशियों की स्याही, अपने लक्ष्य की ओर बढ़े चले।

शशि कंकानी ने सुनाया जो किरणों द्वारा संदेश देती हैं। हिम्मत चोरड़िया प्रज्ञा ने गीतिका- बढ़ी दूरियाँ ये कहाँ सह सकोगे। बिना तुम हमारे नहीं रह सकोगे।।
मल्लिका छंद आधारित गीत- हो बड़ा यहाँ सुधार। पेड़ की लगे कतार।।
सुनाकर समाज की एकता पर ध्यान दिलाया है।

अहमदाबाद की कवयित्री भारती मेहता ने अपनी रचनात्मक अनुभूति को कविता में पिरोया है जिसमें जिंदगी को चरवाहे के रूप में अभिव्यक्त किया है। नर्तकी अपने थिरकते चरणों से धरती पर लिख रही है कविता, कविता अनुभूति की, कविता अभिव्यक्ति की। जिंदगी चरवाहा बन, मुझे हाँकती जा रही। चल इधर..चल उधर/अदृश्य बेंत का डर बता / मुझपर नियंत्रण करती जा रही।

हिंदी दिवस पर सुशीला चनानी कहती हैं कि मन को न उदास करो हिन्दी पखवाडा पर, हिन्दी पर स्वरचित कुछ दोहे
नवरस से परिपूर्ण है हिन्दी का भण्डार। सभी विधायें निहित हैं, होतीं जो साकार।।

वहीं युवा कवयित्री चंद्र कांता सुराना जिहाद के विषय में अपनी बात कहती है कि जिहाद जिहाद करते रह गए, यह जिहाद है क्या? आज़ादी के नारे लगाते रह गए, यह आज़ादी सही है क्या??

कवयित्री मृदुला कोठारी कहती हैं कि छत पर टहलते वक्त अक्सर, यूं सूरज से बात होती है और गीत- ओ पूनम के चांद उतरो/मन धरती पर आज/नव नव रितु सिंगर सजाए/तुमको मनाए आज… सुनाया।

राजस्थानी लोक भाषा प्रेमी संजू कोठारी ने संस्कृति पर आधारित कविता धर्म हो या हमारी संस्कृति/त्योहार हों या परम्परायें/सभी में छुपा है/तर्क का खजाना सुनाकर परंपराओं को विरासत माना। ज़िन्दगी/करती रहती है/मुझसे की सवाल/पूछती रहती है/मुझसे मेरे मन का हाल/गीत- गा रहा है गीत कोई/प्राण की वीणा बजाकर सुनाकर इंदू चांडक ने काव्य गोष्ठी को काव्यमय और गीतमय बना दिया।

आज की संध्या बड़ी खूबसूरत रही जिसमें विभिन्न विषयों पर कवियों ने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। इंदू चांडक का संचालन और संयोजन रहा।

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