पितरों को मोक्ष दिलाती है इंदिरा एकादशी
वाराणसी। आश्विन कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 27 सितंबर शुक्रवार दोपहर 01 बजकर 31 मिनट पर प्रारंभ हो गई है और 28 सितंबर शनिवार दोपहर 02 बजकर 50 मिनट पर समाप्त होगी। सूर्योदय व्यापिनी आश्विन कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 28 सितंबर शनिवार होने के कारण, इस वर्ष आश्विन कृष्ण पक्ष की इंदिरा एकादशी का व्रत इस वर्ष सन् 2024 ई. 28 सितंबर शनिवार को है। एक वर्ष में 24 एकादशी होती हैं, लेकिन जब तीन साल में एक बार अधिकमास (मलमास) आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है।
इंदिरा एकादशी व्रत का पारण 29 सितंबर रविवार सुबह होगा। पारण के बाद किसी जरुरतमंद व्यक्तियों या ब्राह्मणों को भोजन कराकर मिष्ठानादि, दक्षिणा सहित यथाशक्ति दान करें। इस दिन जो व्यक्ति दान करता है वह सभी पापों का नाश करते हुए परमपद प्राप्त करता है।
पितृपक्ष के दौरान आने वाली इस एकादशी को पितरों को मोक्ष दिलाने वाली माना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार इंदिरा एकादशी के दिन व्रत करने से न केवल पितरों का उद्धार होता है बल्कि नर्क भोग रहे पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इंदिरा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु और पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए रखा जाता है।
इंदिरा एकादशी का व्रत पापों को नष्ट करने वाला तथा पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाला होता है तथा जीव के सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। एकादशी के व्रत को करने से व्रती को अश्वमेघ यज्ञ, जप, तप, तीर्थों में स्नान-दान से भी कई गुना शुभफल मिलता है। एकादशी का व्रत करने वाले व्रती को अपने चित, इंद्रियों और व्यवहार पर संयम रखना आवश्यक है।
एकादशी व्रत जीवन में संतुलनता को कैसे बनाए रखना है सीखाता है। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में अर्थ और काम से ऊपर उठकर धर्म के मार्ग पर चलकर मोक्ष को प्राप्त करता है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है। कोरोना महामारी के चलते घर में ही पूजन, स्नान करें एवं घर के आसपास जरुरतमंद व्यक्तियों या ब्राह्मणों को दान करें।
एकादशी व्रत पूजन विधि : शारीरिक शुद्धता के साथ ही मन की पवित्रता का भी ध्यान रखना चाहिए। एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही शुरु हो जाता है। दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण कर अगले दिन एकादशी पर सुबह जल्दी उठें और शुद्ध जल से स्नान के बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें पति पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण जी की उपासना करें, पूजा के कमरे या घर में किसी शुद्ध स्थान पर एक साफ चौकी पर श्रीगणेश, भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
इसके बाद पूरे कमरे में एवं चौकी पर गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के कलश (घड़े )में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें, उसमें उपस्थित देवी-देवता, नवग्रहों, तीर्थों, योगिनियों और नगर देवता की पूजा आराधना करनी चाहिए। इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक मंत्रो एवं विष्णु सहस्रनाम के मंत्रों द्वारा भगवान लक्ष्मीनारायण सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें।
इसमें आवाह्न, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, तिल, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें। व्रत की कथा करें अथवा सुने तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
एकादशी के दिन “ॐ नमो वासुदेवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए। हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का मात्र धार्मिक महत्त्व ही नहीं है, इसका मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नजरिए से भी बहुत महत्त्व है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना को समर्पित होता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है।
एकादशी के दिनों में किन बातों का खास ख्याल रखें : एकादशी के दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। ब्रहम्चर्य का पालन करना चाहिए। इन दिनों में शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए। व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए। काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए। किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है। गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है।
ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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