बच्चों के साथ बढ़ते यौन शोषण अपराधों को प्रेरित करने वाली हर कड़ी को काटने, अपराधियों को सख़्त सजा दिलाने, लोकतंत्र के चारों स्तंभों को एक साथ आना जरूरी
सावधान! मोबाइल में बच्चों से जुड़े सेक्सुअल कंटेंट पर एक क्लिक आपको पहुंचा सकती है जेल, पॉक्सो एक्ट 2019 की धारा 15 में 3-7 साल की जेल व जुर्माना या दोनों- एड. के.एस. भावनानी
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनियां में प्रतिष्ठित अपेक्स न्यायपालिका का दिनांक 23 सितंबर 2024 को बच्चों के साथ बढ़ते यौन शोषण अपराधों को प्रेरित करने वाली एक कड़ी बच्चों से जुड़ा सेक्सुअल कंटेंट चाइल्ड पोर्न पर बहुत ही महत्वपूर्ण जजमेंट आया जो इस दिशा में सुधारों में मील का पत्थर साबित होगा, क्योंकि आज के आधुनिक युग में हम देखते हैं कि बड़ों से लेकर बुजुर्गों व युवाओं से लेकर छोटे-छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल आ गया है जिसमें ऐसी सैकड़ो एप्स हैं, जिस पर एक क्लिक से बच्चों से बूढ़ों तक की अश्लील क्लिप आ जाती है जिसे देखकर सामाजिक माहौल खराब हो जाना लाजमी है। परंतु समाज में अच्छा वातावरण बनाने के लिए कुछ एनजीओ या समाज सेवी संगठन भी इस दूषित हो रहे वातावरण को सुधारने के लिए नेककार्य में आगे आ रहे हैं। वर्ष 2019 में चाइल्ड पॉर्न सेक्सुअल कंटेंट देखने के आरोप में एक 28 साल के युवक पर पॉक्सो अधिनियम 2019 व आईटी एक्ट 2000 के तहत केस दर्ज हुआ था जिस पर हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था। फिर एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में इसकी अपील की जिसका जजमेंट दिनांक 23 सितंबर 2024 को दोपहर बाद आया।
जिसमें हाईकोर्ट के जजमेंट को सिरे से खारिज कर कहा पॉक्सो अधिनियम 2019 की धारा 15 के अनुसार चाइल्ड पोर्न देखना/रखना/प्रकाशित, प्रसारित करना अपराध है, जिसमें तीन से 7 साल तक की सजा 10 लाख रुपए का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। इसलिए अब हर मोबाइल धारकों को इसका संज्ञान सख़्ती से लेना होगा, क्योंकि मोबाइल पर इस ऐप या साइट पर एक क्लिक किया कि धारा 15 के आरोपी बन गए! क्योंकि साइबर विभाग की पैनी नजरें आपकी मोबाइल के उपयोग को तीसरी आंख से देख रही है, आप क्या देख रहे हैं यह उनको सब मालूम चल जाता है। चूंकि बच्चों के साथ बढ़ते यौन शोषण अपराधों को प्रेरित करने वाली हर कड़ी को काटने अपराधियों को सख्त सजा दिलाने में लोकतंत्र के चारों स्तंभों को एक साथ आना होगा तथा मोबाइल धारकों द्धारा मोबाइल से बच्चों से जुड़ा सेक्सुअल कंटेंट पर एक क्लिक से आपको जेल पहुंच सकता है। पॉक्सो एक्ट 2019 की धारा 15 में 3 से 7 साल की जेल व जुर्माना या दोनों होगा। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, मोबाइल में बच्चों के साथ यौन अपराध से जुड़े वीडियो को देखना/डाउनलोड करना/सेव करना पॉक्सो एक्ट 2019 की धारा 15(1) के तहत अपराध की श्रेणी में आ गया है।
साथियों बात अगर हम दिनांक 23 सितंबर 2024 को दोपहर आए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सहित दो जजों की बेंच के जजमेंट की करें तो, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो एक्ट की धारा 15 के अनुसार, चाइल्ड पोर्न देखना, रखना, प्रकाशित करना या उसे प्रसारित करना अपराध है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पॉक्सो एक्ट की धारा 15(1) बच्चों से जुड़े अश्लील कंटेंट को न हटाने नष्ट न करने या उसकी जानकारी न देने पर सजा का प्रावधान करती है। वहीं, धारा 15(2) चाइल्ड पोर्न से जुड़े कंटेंट को प्रसारित करने को अपराध बनाती है। जबकि, धारा 15(3) में कारोबारी मकसद से चाइल्ड पोर्न को स्टोर करने को अपराध के दायरे में लाती है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पोक्सो एक्ट के सब-सेक्शन 1, 2 और 3 एक-दूसरे से अलग हैं। अगर कोई मामला सब-सेक्शन 1, 2 और 3 में नहीं बनता है तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो मामला धारा 15 के अंतर्गत नहीं आता। इस फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सुझाव भी दिए।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को अपने फैसले में चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द की जगह ‘चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लॉयटेटिव मटैरियल’ का इस्तेमाल करने के लिए सरकार को पोक्सो कानून में संशोधन करना चाहिए। अदालत ने सुझाव दिया कि सेक्स एजुकेशन पर जोर दिया जाना चाहिए, जिसमें चाइल्ड पोर्न से जुड़े कानूनी और नैतिक प्रभावों की जानकारी शामिल हो।
सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार एक एक्सपर्ट कमेटी बना सकती है, जो सेक्स एजुकेशन का एक सिस्टम तैयार करे। कोर्ट ने स्कूलों को सलाह दी कि कम उम्र से ही बच्चों को पोक्सो कानून के बारे में बताया जाना चाहिए। भारत में पोर्न देखना अपराध नहीं है। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कई फैसलों में साफ कर चुकी हैं कि प्राइवेट स्पेस में पोर्न देखना अपराध नहीं है। पिछले साल एक मामले में फैसला देते हुए केरल हाईकोर्ट ने कहा था, पोर्नोग्राफी सदियों से प्रचलित है। लेकिन आज के नए डिजिटल युग में और ज्यादा सुलभ हो गई है। बच्चों और बड़ों की उंगलियों पर ये मौजूद है। सवाल ये है कि अगर कोई अपने निजी समय में दूसरों को दिखाए बगैर पोर्न वीडियो देख रहा है तो वो अपराध है या नहीं? अदालत इसे अपराध के दायरे में नहीं ला सकती, क्योंकि ये व्यक्ति की निजी पसंद हो सकती है और इसमें दखल करना उसकी निजता में घुसपैठ करने के बराबर होगा। इससे पहले 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि निजी स्पेस में पोर्न देखना गलत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि अकेले पोर्न देखने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन चाइल्ड पोर्नोग्राफी या महिलाओं के खिलाफ बलात्कार या हिंसा से जुड़े अश्लील कंटेंट को देखना या इकट्ठा करना अपराध के दायरे में आता है।
साथियों बात अगर हम मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व में दिए गए जजमेंट की करें तो, साल 2019 में चाइल्ड पोर्न डाउनलोड करने के आरोप में 28 साल के युवक पर पॉक्सो और आईटी कानून के तहत केस दर्ज हुआ था।मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस ने इस केस को ये कहते हुए रद्द कर दिया था कि चाइल्ड पोर्न देखना पॉक्सो और आईटी एक्ट के तहत अपराध नहीं है।कोर्ट ने ये भी कहा था कि आरोपी को पोर्न देखने की आदत थी, लेकिन उसने पहले कभी चाइल्ड पोर्न नहीं देखी थी, न ही उसने डाउनलोड किया वीडियो किसी से शेयर किया था। केस रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि गेनजेड को पोर्न देखने की लत है और उन्हें सजा देने की बजाय जागरूक करना चाहिए। कोर्ट ने आरोपी को सलाह दी थी कि अगर उसे अभी भी पोर्न देखने की लत है तो उसे काउंसलिंग लेना चाहिए।
साथियों बात अगर हम पॉक्सो अधिनियम (संशोधित) 2019 की करें तो, पॉक्सो यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट इस कानून को 2012 में लाया गया था। ये बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन शोषण को अपराध बनाता है। ये कानून 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों, दोनों पर लागू होता है, इसका मकसद बच्चों को यौन उत्पीड़न और अश्लीलता से जुड़े अपराधों से बचाना है। इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के लोगों को बच्चा माना गया है और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। पॉक्सो कानून में पहले मौत की सजा नहीं थी, लेकिन 2019 में इसमें संशोधन कर मौत की सजा का भी प्रावधान कर दिया। इस कानून के तहत उम्रकैद की सजा मिली है तो दोषी को जीवन भर जेल में ही बिताने होंगे। इसका मतलब हुआ कि दोषी जेल से जिंदा बाहर नहीं आ सकता।
इसी तरह अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे का इस्तेमाल पोर्नोग्राफी के लिए करने का पहली बार दोषी पाए जाने पर पांच साल और दूसरी बार में सात साल की सजा हो सकती है। इसके अलावा जुर्माना अलग से देना पड़ेगा। अगर कोई व्यक्ति बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी को स्टोर करता है, डिस्प्ले करता है या फिर किसी के साथ साझा करता है, तो दोषी पाए जाने पर तीन साल की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पॉक्सो) एक्ट में चाइल्ड पोर्नोग्राफी को लेकर सख्त सजा का प्रावधान है। इस कानून की धारा 14 में प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति बच्चे या बच्चों को अश्लील कंटेंट के लिए इस्तेमाल करता है तो उसे 7 साल तक की जेल की सजा हो सकती है। साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। वहीं, पॉक्सो एक्ट की धारा 15 कहती है कि अगर कोई व्यक्ति चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़ा कंटेंट अपने पास रखता, किसी और को भेजता है या उसका कमर्शियल उपयोग करता है तो उसे 3 से 7 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
साथियों बात अगर हम पोर्नोग्राफी और पॉर्न वीडियो पर कानून की करें तो, हमारे देश में प्राइवेट में पोर्न देखने में कोई दिक्कत न हो, लेकिन अश्लील वीडियो या फोटो देखने, डाउनलोड करने और उसे वायरल करना अपराध है। ऐसा करने पर इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 67, 67ए, 67बी के तहत जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है। धारा 67 के तहत, पोर्न कंटेंट देखने, डाउनलोड करने और वायरल करने पर पहली बार 3 साल की जेल और 5 लाख रुपये के जुर्माने की सजा है। दूसरी बार पकड़े जाने पर 5 साल की कैद और 10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है। धारा 67ए के तहत, मोबाइल में पोर्न कंटेंट रखने और वायरल करने पर पहली बार पकड़े जाने पर 5 साल की जेल और 10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है। दूसरी बार पकड़े जाने पर 7 साल की जेल और 10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा का प्रावधान है।वहीं, धारा 67B कहती है कि अगर किसी के मोबाइल में चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़ा वीडियो या फोटो मिलता है तो पहली बार पकड़े जाने पर 5 साल जेल और 10 लाख के जुर्माने की सजा होगी।
दूसरी बार पकड़े जाने पर 7 साल जेल और 10 लाख रुपये का जुर्माना चुकाना होगा। इसी तरह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 294, 295 और 296 में भी सजा का प्रावधान है। धारा 294 के तहत, अश्लील वस्तुओं को बेचने, बांटने, प्रदर्शित करने या प्रसारित करना अपराध है। ऐसा करते हुए पहली बार पकड़े जाने पर 2 साल तक की जेल और 5 हजार तक का जुर्माना लग सकता है, दूसरी बार पकड़े जाने पर 5 साल तक जेल और 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। जबकि धारा 295 के तहत, किसी बच्चे को अश्लील वस्तु दिखाना, बेचना, किराये पर देना या बांटना अपराध है। ऐसा करने पर पहली बार दोषी पाए जाने पर 3 साल तक की जेल और 2 हजार रुपये की सजा का प्रावधान है। दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 7 साल तक की जेल और 5 हजार रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है।
इसी तरह धारा 296 के तहत सार्वजनिक स्थानों पर अश्लील गाना गाने या अश्लील हरकत करने पर 3 महीने की जेल और 1 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। देश में ऑनलाइन पोर्न देखना अब तक गैर-कानूनी नहीं था। हालांकि आईटी एक्ट 2000 में पोर्न वीडियो बनाने, पब्लिश करने और सर्कुलेट करने पर बैन है। आईटी एक्ट 2000 के सेक्शन 67 और 67 ए में इस तरह के अपराध करने वालों को 3 साल की जेल के साथ 5 लाख तक जुर्माना देने का भी प्रावधान है। इसके अलावा IPC के सेक्शन-292, 293, 500, 506 में भी इससे जुड़े अपराध को रोकने के लिए कानूनी प्रावधान बनाए गए हैं। वहीं, चाइल्ड पोर्नोग्राफी में पॉक्सो कानून के तहत कार्रवाई होती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब चाइल्ड पोर्न देखना या डाउनलोड करना क्राइम होगा।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मोबाइल में बच्चों के साथ यौन अपराध से जुड़े वीडियो को देखना/डाउनलोड करना/सेव करना/ पॉक्सो एक्ट 2019 की धारा 15 (1) के तहत अपराध। बच्चों के साथ बढ़ते यौन शोषण, अपराधों को प्रेरित करने वाली हर कड़ी को काटने अपराधियों को सख़्त सजा दिलाने लोकतंत्र के चारों स्तंभों को एकसाथ आना जरूरी सावधान! मोबाइल में बच्चों से जुड़े सेक्सुअल कंटेंट पर एक क्लिक आपको पहुंचा सकती है जेल, पॉक्सो एक्ट 2019 की धारा 15 में 3-7 साल की जेल व जुर्माना या दोनों।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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