प्यार के भवर जाल में पिसती जिंदगी की कहानी : लव मैरिज, तीसरी किस्त

अशोक कुमार वर्मा ‘हमदर्द”, चांपदानी। अर्जुन और स्नेहा का रिश्ता अब परिपक्व हो रहा था। दोनों ने अपने करियर को प्राथमिकता देते हुए प्यार को समझदारी से निभाने का फैसला किया था। लेकिन स्नेहा को पता था कि असली चुनौती तब आएगी जब वह अपने पापा से इस रिश्ते की बात करेगी। चांदनी तो उसकी तरफ थी, लेकिन उसके पापा रवि, को मनाना आसान नहीं होगा। रवि एक पारंपरिक सोच वाले व्यक्ति थे, जिन्होंने चांदनी के भागकर शादी करने के बाद से प्यार के खिलाफ ही रुख अपना लिया था।

एक दिन चांदनी ने रवि से बात करने का फैसला किया। उसने धीरे से स्नेहा और अर्जुन के रिश्ते की बात छेड़ी। रवि का चेहरा सुनते ही सख्त हो गया। उन्होंने तुरंत गुस्से में कहा, “नहीं, ये सब नहीं चलेगा। मैंने अपनी जिंदगी में बहुत देखा है। प्यार करने वाले कभी सुखी नहीं रहते। देखो चांदनी, तुमने भी प्यार किया और देखो क्या हाल हुआ तुम्हारा।”

चांदनी ने शांत स्वर में कहा, “रवि, मैं मानती हूँ कि मैंने गलतियाँ की थीं, लेकिन स्नेहा उन गलतियों को दोहराना नहीं चाहती। वह हमारी इजाजत से और सही समय पर ही शादी करना चाहती है। अर्जुन भी समझदार लड़का है। हमें एक मौका देना चाहिए।”

रवि ने अपनी पत्नी की बातों को अनसुना करते हुए कहा, “मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं अपनी बेटी के लिए किसी अच्छे घर का लड़का ढूंढूंगा, जैसे मैं पहले से सोचता आया हूँ।”

चांदनी ने निराशा में अपना सिर झुका लिया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने स्नेहा से कहा, “बेटी, हम धीरे-धीरे तुम्हारे पापा को समझाने की कोशिश करेंगे। जब सही समय आएगा, तो वह भी हमारी बात मान लेंगे।”

स्नेहा ने अपनी माँ की हिम्मत को देखकर खुद को मजबूत बनाया और इंतजार करने का फैसला किया। इस बीच अर्जुन और स्नेहा ने अपने-अपने करियर पर ध्यान देना शुरू कर दिया। अर्जुन ने एक बड़ी कंपनी में नौकरी हासिल की, और स्नेहा ने भी पढ़ाई पूरी करके एक स्कूल में टीचर की नौकरी शुरू कर दी।

एक साल बीत गया। अर्जुन और स्नेहा का रिश्ता और गहरा हो गया था। स्नेहा ने फिर से अपने पापा से बात करने की हिम्मत जुटाई। उसने एक दिन उन्हें अकेले में बुलाया और कहा, “पापा, मैं आपसे अर्जुन के बारे में बात करना चाहती हूँ। हम दोनों अब अपने करियर में स्थिर हैं और मैं चाहती हूँ कि आप अर्जुन से मिलें।”

रवि ने गहरी सांस ली और कहा, “ठीक है, मैं उससे मिलूंगा। लेकिन याद रखना, अगर मुझे कुछ भी गलत लगा, तो मैं इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होऊंगा।”

अर्जुन से मिलने का दिन आया। स्नेहा के दिल में घबराहट थी, लेकिन अर्जुन ने उसे भरोसा दिलाया कि सब ठीक होगा। रवि ने अर्जुन से कई सवाल पूछे—उसके करियर, उसके परिवार और उसकी भविष्य की योजनाओं के बारे में। अर्जुन ने हर सवाल का धैर्य और ईमानदारी से जवाब दिया। रवि की नजरों में अब भी संदेह था, लेकिन अर्जुन की सच्चाई और दृढ़ता ने उन्हें प्रभावित किया।

कुछ दिन बाद, रवि ने चांदनी से कहा, “अर्जुन मुझे एक अच्छा लड़का लगता है। मैंने उसकी बातों में ईमानदारी देखी। लेकिन फिर भी, मैं अपनी बेटी को इतनी आसानी से नहीं सौंप सकता। मैं चाहता हूँ कि वह स्नेहा को खुश रख सके और जिम्मेदारी समझ सके।”

चांदनी ने मुस्कुराते हुए कहा, “रवि, यही तो मैंने भी चाहा था जब मैं तुमसे मिली थी। वक्त के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा। अर्जुन और स्नेहा समझदार हैं, और हमें उन पर भरोसा करना चाहिए।”

रवि ने एक गहरी सांस ली और धीरे से कहा, “ठीक है, अगर स्नेहा इस रिश्ते में खुश है, तो मैं भी इसके लिए तैयार हूँ। लेकिन मैं उसे ये जरूर समझा दूंगा कि किसी भी रिश्ते में प्यार के साथ जिम्मेदारी और समर्पण भी उतना ही जरूरी है।”

इस तरह, रवि ने अंततः स्नेहा और अर्जुन के रिश्ते को स्वीकार कर लिया। यह सब आसान नहीं था, लेकिन स्नेहा की समझदारी, अर्जुन की सच्चाई, और चांदनी के धैर्य ने सब कुछ संभव कर दिया।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

अब, स्नेहा और अर्जुन की शादी की तैयारियाँ शुरू हो गई। यह नई शुरुआत न केवल उनके लिए, बल्कि चांदनी और रवि के रिश्ते के लिए भी एक नयी किरण लेकर आई थी। दोनों ने महसूस किया कि प्यार को सही दिशा और समय देकर ही उसे सच्ची खुशी में बदला जा सकता है।

अगली किश्त में, शादी की तैयारियों और परिवार की खुशियों के साथ सामने आने वाले नए मोड़ों की कहानी देखेंगे।

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