इसे परिवर्तिनी एकादशी व पदमा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है
वाराणसी। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में भगवान विष्णु 4 मास के लिए योग निद्रा में गए हुए हैं। वहीं, भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन करवट लेंगे। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी के अलावा पदमा एकादशी, जलझूलनी एकादशी जैसे नामों से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने से हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।
परिवर्तिनी एकादशी की तिथि : भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि आरंभ : 13, सितंबर, शुक्रवार, रात्रि 10:30 बजे
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त: 14 सितंबर, शनिवार, रात्रि 08:41 पर।
उदया तिथि के अनुसार परिवर्तिनी एकादशी 14 सितंबर 2024 शनिवार को है।
जैसा कि सब जानते हैं कि चातुर्मास में विष्णु जी योग निद्रा में रहते हैं और उनका शयनकाल रहता है। ऐसे में इस एकादशी पर विष्णु जी करवट बदलते हैं। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है, साथ ही जीवन में खुशियों का आगमन होता है।
परिवर्तिनी एकादशी का मुहूर्त : पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी 14 सितंबर 2024 को रात 08 बजकर 41 मिनट तक रहेगी। एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु की पूजा का मुहूर्त प्रातः 07:38 से प्रातः 09:11 तक रहेगा। इसके बाद राहुकाल शुरू हो जाएगा।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत पारण का समय : परिवर्तिनी एकादशी का व्रत पारण समय: 15 सितंबर, रविवार, प्रातः 06:06 से प्रातः 08:34 मिनट के बीच रहेगा।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत की विधि : परिवर्तिनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इसके बाद साफ-सुथरे वक्त धारण करके व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु की पूजा आरंभ करें सबसे पहले उन्हें पुस्तक के माध्यम से जल अर्पित करें। आप भगवान विष्णु को पीला रंग का चंदन और अक्षत लगाएं। भगवान विष्णु को फूल, माला, तुलसी दल आदि चढ़ाएं। इसके बाद भगवान विष्णु को भोग लगाएं। घी का दीपक और धूप जलाकर भगवान विष्णु की एकादशी व्रत का पाठ करें। पाठ करने के बाद भगवान विष्णु की चालीसा मंत्र का जाप करने के बाद विधिवत तरीके से आरती करें। अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
परिवर्तिनी एकादशी का महत्व : परिवर्तिनी एकादशी को पद्मा एकादशी और जलझूलनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओ के अनुसार, भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी के भगवान विष्णु करवट लेते हैं इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। बता दें कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (देवशयनी एकादशी) को भगवान विष्णु 4 माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसके बाद प्रभु नारायण कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी (देवउठनी एकादशी) तिथि को जागते हैं।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा : पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेतायुग में बलि नामक एक असुर राजा था। असुर होने के बावजूद भी वह महादानी और भगवान श्री विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। वैदिक विधियों के साथ वह भगवान का नित्य पूजन किया करता था। उसके द्वार से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटता था। कहा जाता है कि अपने वामनावतार में भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा ली थी। राजा बलि ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया था लेकिन उसमें एक गुण यह था कि वह किसी भी ब्राह्मण को खाली हाथ नहीं भेजता था उसे दान अवश्य देता था।
दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने उसे भगवान विष्णु की लीला से अवगत भी करवाया, लेकिन फिर भी राजा बलि ने वामन स्वरूप भगवान विष्णु को तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया। फिर क्या था दो पगों में ही भगवान विष्णु ने समस्त लोकों को नाप दिया तीसरे पग के लिए कुछ नहीं बचा तो बलि ने अपना वचन पूरा करते हुए अपना शीष उनके पग के नीचे कर दिया। भगवान विष्णु की कृपा से बलि पाताल लोक में रहने लगा, लेकिन साथ ही उसने भगवान विष्णु को भी अपने यहां रहने के लिए वचनबद्ध कर लिया था। मान्यता है कि वामन अवतार की इस कथा को सुनने और पढ़ने वाला व्यक्ति तीनों लोकों में पूजित होता है।
ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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