अशोक वर्मा “हमदर्द”, चापदानी। मणिपुर में हिंसा की घटनाएँ एक बार फिर से सामने आ रही हैं, जिसमें हाल ही में दो जिलों में हुई हिंसा में छह लोगों की मौत हो गई और दस से अधिक लोग घायल हो गए। यह स्थिति न केवल मणिपुर के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित कर रही है, बल्कि इससे राज्य के स्थायित्व पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। राज्य को लगातार उग्रवादी गतिविधियों से जूझना पड़ रहा है और इन घटनाओं में प्रमुख भूमिका कुकी उग्रवादियों की दिखाई देती है। इस आलेख में हम मणिपुर की ताजा हिंसा, कुकी उग्रवादियों की साजिश और उनके पीछे की शक्तियों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे। मणिपुर के दो जिलों में हाल ही में जो हिंसा भड़की है, वह स्थानीय संघर्षों और उग्रवादी गतिविधियों की पुरानी परंपरा का एक नया अध्याय है। इस घटना में छह लोगों की हत्या कर दी गई और दस से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। स्थानीय प्रशासन के मुताबिक, हिंसा को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया था। इसमें शामिल उग्रवादी समूह विशेष रूप से कुकी उग्रवादी माने जा रहे हैं, जो लंबे समय से मणिपुर के कुछ हिस्सों में सक्रिय हैं और राज्य की सुरक्षा व स्थायित्व को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।
कुकी समुदाय मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करता है और यह समुदाय लंबे समय से अपने अधिकारों, संसाधनों और स्वायत्तता के लिए संघर्ष कर रहा है। कुकी उग्रवादियों का उदय भी इसी पृष्ठभूमि से जुड़ा है। इन उग्रवादियों का दावा है कि वे अपने समुदाय के हितों की रक्षा के लिए हथियार उठा रहे हैं, लेकिन इनकी गतिविधियों का परिणाम राज्य की शांति और सामान्य जनजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। कुकी उग्रवादियों के साथ-साथ अन्य आदिवासी समूहों के बीच भी तनाव है, जो कि संसाधनों और अधिकारों के लिए संघर्ष का हिस्सा है। यह स्थिति धीरे-धीरे एक राजनीतिक संकट में बदल रही है, जिसमें मणिपुर की सरकार और केंद्र सरकार को भी शामिल होना पड़ा है।
कुकी उग्रवादियों को मिलने वाले समर्थन के पीछे कई कारक हैं। इनमें से कुछ आंतरिक और कुछ बाहरी तत्व शामिल हैं, जो इस संघर्ष को बढ़ावा दे रहे हैं। मणिपुर के कुछ क्षेत्रों में कुकी उग्रवादियों को स्थानीय नेताओं और समुदायों से समर्थन मिलता है। यह समर्थन उनकी राजनीतिक मांगों और संघर्ष को वैधता प्रदान करता है, जिससे इनकी गतिविधियाँ और मजबूत होती हैं। मणिपुर की भौगोलिक स्थिति भी इस संघर्ष में अहम भूमिका निभाती है। मणिपुर म्यांमार की सीमा से सटा हुआ है और यह संभावना है कि म्यांमार से कुकी उग्रवादियों को समर्थन मिलता है। म्यांमार में भी कुकी और अन्य आदिवासी समूहों के बीच संघर्ष होते रहे हैं और मणिपुर में उनके उग्रवादी समूहों को वहाँ से हथियार, प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता मिल सकती है।
मणिपुर का संघर्ष कई बार अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के हस्तक्षेप का शिकार भी हो सकता है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन और पाकिस्तान जैसे देश भारत की पूर्वोत्तर सीमा पर अस्थिरता बढ़ाने के लिए इन उग्रवादी समूहों को अप्रत्यक्ष समर्थन दे सकते हैं। यह समर्थन न केवल वित्तीय रूप में हो सकता है, बल्कि हथियारों और लॉजिस्टिक सपोर्ट के रूप में भी हो सकता है।मणिपुर की स्थिति इसे अवैध तस्करी और नशीले पदार्थों के व्यापार के लिए एक उपयुक्त मार्ग बनाती है। यह तस्करी उग्रवादी गतिविधियों के लिए एक महत्वपूर्ण वित्तीय स्रोत हो सकती है। ड्रग माफिया और अन्य आपराधिक संगठन इन उग्रवादी समूहों के साथ गठजोड़ कर सकते हैं, ताकि उन्हें वित्तीय और भौतिक सहायता मिल सके।
मणिपुर में बार-बार भड़कने वाली हिंसा से निपटने के लिए राज्य और केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं। मणिपुर पुलिस और भारतीय सेना ने उग्रवादियों के खिलाफ ऑपरेशन शुरू किए हैं, लेकिन स्थिति की जटिलता और स्थानीय समर्थन के चलते इनका पूरी तरह से सफाया कर पाना अभी भी एक चुनौती बना हुआ है। केंद्र सरकार ने समय-समय पर शांति वार्ता और विकास योजनाओं की भी पहल की है, लेकिन उग्रवादी गुटों की मांगें और उनके बाहरी समर्थन के चलते यह संघर्ष अब तक थमा नहीं है।मणिपुर में हिंसा और उग्रवाद की यह समस्या तब तक जारी रह सकती है जब तक कि इन उग्रवादी समूहों को मिलने वाले समर्थन और संसाधनों को पूरी तरह से बंद नहीं किया जाता। सरकार को न केवल उग्रवादी समूहों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी होगी, बल्कि स्थानीय समुदायों के साथ संवाद स्थापित करके उनकी वास्तविक समस्याओं का समाधान भी निकालना होगा। इस संघर्ष के पीछे छिपे आंतरिक और बाहरी कारकों को समझकर ही मणिपुर में स्थायी शांति स्थापित की जा सकती है।
मणिपुर में ताजा हिंसा ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि राज्य में उग्रवाद और हिंसा की समस्या गहराई से जमी हुई है। कुकी उग्रवादियों को मिलने वाला आंतरिक और बाहरी समर्थन इस समस्या को और जटिल बना देता है। जब तक इन कारकों का समाधान नहीं किया जाता, तब तक मणिपुर में शांति और स्थायित्व एक चुनौती बनी रहेगी। सरकार और स्थानीय प्रशासन को इस दिशा में ठोस और समग्र प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि राज्य में शांति और विकास की राह सुनिश्चित हो सके।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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