भाद्रपद शुक्ल पक्ष की श्रीगणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक मनाएं उत्सव

वाराणसी। इस वर्ष श्री गणेशोत्सव का प्रारंभ 07 सितम्बर शनिवार को होगा। अतः आप भी शुभ मुहूर्त में ही करें श्रीगणेश जी का पूजन। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को कलंक चतुर्थी, पत्थर चौथ एवं अन्य नामो से जाना जाता है। इस साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 06 सितंबर शुक्रवार, 2024 को दोपहर 3 बजकर 02 मिनट पर शुरू होगी वहीं चतुर्थी तिथि अगले दिन 07 सितंबर, 2024 शनिवार को शाम 5:38 मिनट पर समाप्त होगी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सूर्योदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि 07 सितम्बर शनिवार को है। शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि मध्याह्न काल के दौरान हुआ था इसीलिए दोपहर का समय गणेश पूजा के लिए ज्यादा उपयुक्त माना जाता है। शनिवार, 07 सितम्बर शाम 05 बजकर 38 मिनट तक भद्रा काल रहेगा।

धर्मग्रंथों के अनुसार जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु, मकर राशि में रहे तो भद्रा पाताल लोक की होती है। भद्रा जब पाताल लोक की होती है तो आप शुभ कार्य कर सकते हैं। 07 सितम्बर शनिवार को भद्रा तुला राशि में है इसलिए गणेश चतुर्थी पर भद्रा का गणपति की पूजन एवं स्थापना पर कोई प्रभाव नहीं रहेगा। अगर श्रीगणेश जी के भक्त मध्याह्न काल के दौरान श्रीगणेश पूजन करना चाहते हैं तो वह शनिवार 07 सितम्बर सुबह 11 बजकर 04 मिनट से दोपहर 01 बजकर 43 मिनट के मध्य पूजन कर लें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्यान्ह काल में चित्रा और स्वाति नक्षत्र, ब्रह्म योग, विष्टि करण, तुला राशि के चन्द्रमा, सिंह राशि में सूर्य होंगे। इस चतुर्थी पर रात्रि चंद्र दर्शन करना वर्जित है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 06 सितम्बर रात्रि को होगी इसलिए 06 सितम्बर शुक्रवार रात्रि चंद्र दर्शन करना वर्जित है।

श्री गणेश चतुर्थी का त्योहार भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। महंत रोहित शास्त्री ने बताया श्रीगणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी के दिन तक गणेशोत्सव मनाया जाता है। कुछ श्रीगणेश भक्त 3 दिन 5 दिन या फिर 11 दिन के गणेश जी स्थापित करते हैं, भक्त अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार इन दिनों का निर्धारण करते हैं। लेकिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की श्रीगणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक यह उत्सव मनाना चाहिए। श्रीगणेशोत्सव के दौरान श्रद्धालु अपने घर, मंदिरों एवं अन्य स्थानों में भगवान श्री गणेश की मूर्ति स्थापित करते हैं और पूरे दस दिन गणेश भगवान की पूजा पाठ करते हैं।

भगवान श्रीगणेश की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और संपन्नता आती है। श्री गणेश चतुर्थी के दिन व्रत भी रखते हैं। भगवान श्री गणेश जी की मूर्ति को घर पर लाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि श्रीगणेश जी की सूंड बाई तरफ होना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस तरह की मूर्ति की उपासना करने पर जल्द मनोकामना पूरी होती है। भगवान श्रीगणेश जी की मूर्ति का मुख दरवाजे की तरफ नहीं होना चाहिए। क्योंकि गणेश जी मुख की तरफ समृद्धि, सुख और सौभाग्य होता है। जबकि पीठ वाले हिस्से पर दुख और दरिद्रता का वास होता है।

श्री गणेश जी को कभी भी उस दीवार पर स्‍थापित न करें जो टॉयलेट की दीवार से जुड़ी हुई हों। कुछ परिवार घरों में चांदी के भगवान गणेश स्‍थापित करते हैं, अगर आपके भगवान श्रीगणेश चांदी के हैं, तो इसे उत्तर पूर्व या दक्षिण पश्चिम दिशा में स्‍थापित करें। आपके घर में जो उत्तर पूर्व कोना हों, उसमें भगवान श्रीगणेश की मूर्ति स्‍थापित करना सबसे शुभ होता है। अगर आपके घर में इस दिशा का कोना न हों तो परेशान न हों, पूर्व या पश्चिम दिशा में ही स्‍थापित कर लें। कभी भी सीढ़ियों के नीचे भगवान की मूर्ति को स्‍थापित न करें।

श्रीगणेश पूजन विधि : श्रीगणेश चतुर्थी के दिन सुबह जल्द उठकर स्नान करने के बाद, सर्वप्रथम साफ चौकी पर लाल कपडा बिछा कर श्रीगणेश जी एवं माता गौरी जी की मूर्ति एवं जल से भरा हुआ कलश स्थापित करे फिर घी का दीपक, धूपबत्ती जलाएं। रोली, कुंकु, अक्षत, पुष्प, दूर्वा से श्रीगणेश जी, माता गौरी एवं कलश का पूजन करें, उसके बाद श्रीगणेश जी का ध्यान और हाथ मैं अक्षत पुष्प लेकर श्रीगणेश जी के मंत्र को बोलते हुए गणेश जी का आह्वान करे। अक्षत और पुष्प श्रीगणेश जी को समर्पित कर दे।

अब श्रीगणेश एवं माता गौरी जी को जल, कच्चे दूध और पंचामृत से स्नान कराये (मिट्टी की मूर्ति हो तो सुपारी को स्नान कराये), श्री गणेशजी को नवीन वस्त्र और आभूषण अर्पित करे,रोली/कुंकु, अक्षत, सिंदूर, इत्र, दूर्वां, पुष्प और माला अर्पित करे। धुप और दीप दिखाए। दुर्वा चढ़ाना चाहिए और श्रीगणेश जी के स्तोत्रों एवं मंत्रो का जप करें। यह क्रम प्रतिदिन जारी रखने एवं नियमित समय पर करने से जो आप चाहते हैं उसकी प्रार्थना गणेश जी से करें। पूजा के दौरान विघ्ननायक पर श्रद्धा व विश्वास रखना चाहिए।

मनोकामना शीघ्र पूर्ण हो जाती है। श्रीगणेश जी को मोदक सर्वाधिक प्रिय हैं। अतः मोदक, मिठाइयाँ, गुड़ एवं ऋतुफल आदि का नैवेद्य अर्पित करे। इसके बाद श्रीगणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करे, अंत में श्रीगणेश जी की आरती करे। आरती के बाद 1,3, या 7 बार परिक्रमा करे और पुष्पांजलि दे। श्रीगणेश पूजा के बाद अज्ञानतावश पूजा में कुछ कमी रह जाने या गलतियों के लिए भगवान श्रीगणेश जी के सामने हाथ जोड़कर क्षमा याचना करे।

ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848

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