वाराणसी। सावन माह को महादेव की पूजा के लिए अति शुभ माना जाता है। इस माह के सभी व्रत त्योहार भगवान शिव को समर्पित होते हैं। इस दौरान आने वाले प्रदोष व्रत को शंकर जी की पूजा के लिए शुभ माना गया है। प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है। सावन माह में आने की वजह से इस तिथि की महत्ता अधिक बढ़ जाती हैं। इस दिन व्रत रखने का भी विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रदोष व्रत रखने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
वहीं 19 अगस्त 2024 को सावन माह समाप्त हो रहा है। ऐसे में इस माह का दूसरा प्रदोष व्रत 17 अगस्त 2024 को रखा जा रहा है। ये व्रत सावन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। इस दिन शनिवार होने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाएगा। इसी कड़ी में आइए प्रदोष व्रत की पूजा विधि से लेकर शुभ मुहूर्त के बारे में विस्तार से जान लेते हैं।
सावन शनि प्रदोष व्रत के शुभ योग : सावन माह के अंतिम प्रदोष व्रत के दिन प्रीति योग का निर्माण होगा। ये योग प्रात: काल से लेकर सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। वहीं फिर आयुष्मान योग प्रारंभ हो जाएगा, जो 18 अगस्त सुबह 7 बजकर 51 मिनट तक रहने वाला है। मान्यता है कि इस योग में पूजा पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं।
प्रदोष व्रत का पूजा मुहूर्त : इस वर्ष सावन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 17 अगस्त की सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर हो रही है। इसका समापन 18 अगस्त सुबह 05 बजकर 51 मिनट पर होगा। ऐसे में 17 अगस्त 2024 को शनि प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस दौरान पूजा का समय संध्याकाल 6 बजकर 58 मिनट से रात 9 बजकर 11 मिनट तक रहेगा।
प्रदोष व्रत पूजा विधि : सावन माह के अंतिम प्रदोष व्रत पर सुबह ही स्नान कर लें। इसके बाद भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करें। फिर प्रदोष काल में पूजा करने से पहले भी स्नान कर लें, और साफ वस्त्रों को धारण करें। अब मंदिर में चौकी लगाएं। चौकी लगाने के बाद उसपर भगवान शिव के पूरे परिवार की तस्वीर स्थापित करें। सबसे पहले शिव जी और गणेश जी को चंदन का तिलक लगाएं। वहीं माता पार्वती को सिंदूर का तिलक लगाना चाहिए। फिर शंकर जी को बेलपत्र, धतूरा, फूल आदि सब अर्पित करें। इसके बाद घी की दीपक जलाएं और महादेव को मिष्ठान का भोग लगाएं। अंत में भगवान शिव की चालीसा का पाठ करें।
शनि प्रदोष व्रत का महत्व : कहा जाता है कि शनि प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और सभी दुखों को दूर करके सुख, शांति, समृद्धि प्रदान करते हैं। वहीं जो लोग संतानहीन हैं, उनको विशेषकर शनि प्रदोष व्रत करना चाहिए। भगवान शिव की कृपा से संतान की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत में करें शिव पूजा का महाउपाय : यदि आप चाहते हैं कि आपको प्रदोष व्रत का पूरा फल मिले और आपके जीवन से जुड़े सभी कष्ट पलक झपकते दूर हो जाएं तो आपको प्रदोष व्रत वाले दिन भगवान शिव की प्रदोष काल में भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करते हुए महादेव को मनाने का महाउपाय भी करना चाहिए। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति शिव की पूजा में उनकी प्रिय चीजें जैसे रुद्राक्ष, शमी पत्र, बेलपत्र, भस्म, गंगाजल और भांग चढ़ाता है तो उस पर शीघ्र ही भोलेनाथ की कृपा बरसती है। शिव की पूजा में इन चीजों को चढ़ाने के साथ शिव साधक को रुद्राक्ष की माला से शिव के पंचाक्षरी मंत्र का कम से कम एक माला जप जरूर करना चाहिए।
शनि प्रदोष व्रत कथा : शनि प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में एक नगर सेठ थे। सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे।
सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए। सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं। साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा। साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और शंकर भगवान की निम्न वंदना बताई।
ज्योर्तिविद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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