भारतीय स्वाधीनता संग्राम जीवन मूल्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

बाहरी स्तर पर दिखाई देने वाले अंतर के बावजूद आंतरिक संभावना जरूरी है समर्थ राष्ट्र के लिए- प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा

उज्जैन। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी भारतीय स्वाधीनता संग्राम जीवन मूल्य और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में पर केंद्रित थी। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने अपने व्याख्यान में कहा कि भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में अनेक नवीन जीवन मूल्यों का विकास हुआ, जो आज भी हमारे देश के लिए उपादेय हैं। समर्थ राष्ट्र के लिए जरूरी है बाहरी स्तर पर दिखाई देने वाले अंतर के बावजूद आंतरिक संभावना, समर्पण और संगठन।

भारत के महान स्वतंत्रता समर में अनेक कलमकारों और संस्कृति कर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ब्रिटिश हुकूमत ने कई बार साहित्यिक कृतियों और अखबारों को प्रतिबंधित किया। अनेक साहित्यकारों और पत्रकारों ने जेल यात्राएँ कीं, लेकिन वे झुके नहीं। देश के लिए मर मिटने वाले महान क्रांतिकारी और कवि रामप्रसाद बिस्मिल की प्रखर वाणी आज भी राष्ट्रीयता के अविरल प्रवाह के लिए प्रासंगिक बनी हुई है।

विशिष्ट अतिथि डॉ. हरिसिंह पाल राष्ट्रीय मार्गदर्शक एवं महामंत्री नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली ने कहा कि आजादी का मतलब सही तरीके से समझना जरूरी है। हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों की भी व्याख्या की गई है। हम एक बेहतर नागरिक बनकर ही सही मायने में आजादी का लुत्फ उठा सकते है।

संगोष्ठी में विशिष्ट वक्ता डॉ. प्रभु चौधरी राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष ने कहा कि समस्त देशवासियों का 78वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देते हुए हम घर-घर तिरंगा फहराए और राष्ट्रीय एकता, गर्व और प्रगति के रंगो को सजाएं। हमने सीढ़ी दर सीढ़ी विकास यात्रा तय कर हिन्दुस्तान ने बदली खुद की तस्वीर और दुनिया को बताया नया भारत, बुलंद भारत और समृद्ध भारत।

विशेष वक्ता राष्ट्रीय संयोजक पदमचंद गांधी जयपुर ने उद्बोधन में कहा कि स्वतंत्रता मनुष्य को उच्च शिखर पर पहुंचाती है और एक परिपक्वता का निर्माण करती है। स्वतंत्रता अपने साथ आत्मनिर्भरता का अवसर लेकर चलती है।

किसी भी प्रकार के दबाव एवं भय से मुक्त होकर मनुष्यता के नाम पर उच्च शिखर की ओर बढ़ने का अवसर प्रदान करती है। उसी का नाम स्वतंत्रता है। राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता डॉ. रश्मि चौबे ने बताया कि आज हम अधिकार की बात करते है। लेकिन कर्तव्य को भूल जाते है। यदि हम अपने कर्त्तव्यों और जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाएं तो अधिकार तो स्वतः मिल जायेंगे। स्वतंत्रता दिवस पर संकल्प लेना कि हम अपने दायित्व को पूरा करेंगे और देश को सशक्त बना होंगे।

राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ राष्ट्रीय सचिव डॉ. संगीता पाल ने सरस्वती वंदना ‘हे शारदे माँ तार दे माँ‘ को मधुर आवाज में प्रस्तुत की। स्वागत भाषण डॉ. शहेनाज शेख राष्ट्रीय महासचिव ने दिया। संगोष्ठी की प्रस्तावना सुन्दर लाल जोशी सूरज ने कवितामय प्रस्तुत की।

संगोष्ठी के शुभारम्भ में बांसुरी वादक अमर सिंह गुनेर धार ने सुमधुर बांसुरी के वादन में राष्ट्र भक्ति की प्रस्तुति दी। विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष महिला इकाई डॉ. अनसूया अग्रवाल ने कहा कि साथियों हम बड़े भाग्यशाली है जो इस 78वें स्वतंत्रता दिवस के साक्षी बने हैं। क्योंकि आज का भारत एक नए आत्मनिर्भर और हौसलों से लबरेज राष्ट्र के रूप में विश्व के मानचित्र पर दैदीप्यमान नक्षत्र की तरह जगमगा रहा है।

विशेष अतिथि वरिष्ठ कवयित्री डॉ. दक्षा जोशी अहमदाबाद राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने अपनी कविता आजादी पर्व में सुनाया कि यूँ ही नहीं मिली आजादी है प्राण चुकाएं वीरों ने। डॉ. शहनाज शेख नान्देड़ ने मर मिटेंगे हम अपने वतन के लिए, जान कुर्बान है, प्यारे चमन के लिए।

संचालिका श्वेता मिश्र पुणे ने भारत माता के पुत्र वह अपना प्रण देता है। हे ईश्वर मुझे नींद न आये, मुझे जागते रहने का वरदान दो। संगोष्ठी में ओस्लो नॉर्वे से वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, अनिता श्रीवास्तव, डॉ. अरुणा शुक्ला, सुवर्णा जाधव, सुधा शिक्षिका, हंसा गुनेर, डॉ. अरुणा सराफ ने भी कविता प्रस्तुत की।

संगोष्ठी की अध्यक्षता राष्ट्रीय मुख्य संयोजक सुवर्णा जाधव पुणे ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि यही राष्ट्र है, यही देव है, भारत माँ का गुणगान करे। नई चेतना और विकास से भारत का पुनर्निमाण करे। संगोष्ठी का संचालन राष्ट्रीय सचिव श्वेता मिश्र बरेली ने किया एवं आभार रजनी प्रभा पटना ने माना।

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