वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में गोस्वामी तुलसीदास का रचना संसार विषय पर केंद्रित राष्ट्रीय परिसंवाद सम्पन्न

भारतीयता का साकार बिम्ब है गोस्वामी तुलसीदास का काव्य- प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा
वैश्विक परिदृश्य में सभी चुनौतियों का प्रति उत्तर मिलता है तुलसी काव्य में- प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी

उज्जैन। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला एवं पत्रकारिता और जनसंचार अध्ययनशाला द्वारा गोस्वामी तुलसीदास जयंती महोत्सव के अवसर पर दिनांक 10 अगस्त शनिवार को दोपहर में वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में गोस्वामी तुलसीदास का रचना संसार पर केंद्रित राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। विक्रम विश्वविद्यालय के शलाका दीर्घा सभागार में प्रभारी कुलगुरु प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा की अध्यक्षता में सम्पन्न इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में अनेक साहित्यकारों और शिक्षाविदों ने तुलसीदास जी के अवदान पर मंथन किया। कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि वक्ता डॉ. हरिसिंह गौड़ विश्वविद्यालय सागर के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी थे। विशिष्ट वक्ताओं में कला संकायाध्यक्ष प्रो. सोनल सिंह, प्रो. गीता नायक, प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा, प्रो. सन्दीप कुमार तिवारी, डॉ. अजय शर्मा ने अपने विचार व्यक्त किए।

विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के प्रभारी कुलपति प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि तुलसीदास जी का काव्य भारत और भारतीय संस्कृति का अक्षर प्रतीक है। वह सही अर्थों में भारतवाणी है और भारतीयता का साकार बिम्ब है। गोस्वामी तुलसीदास अन्यतम विश्वकवि हैं। उनकी रचना विमल है जिससे दुनिया के सौ से अधिक देशों में बसे भारतवंशी प्रेरणा पाते हैं। राम का चरित्र ही मंगल भवन अमंगलहारी नहीं है, तुलसी का काव्य भी मंगल निधान है। वर्तमान विश्व को परस्पर प्रेम, अहिंसा और सद्भाव की आवश्यकता है जिसे तुलसीदास जी की कालजयी कविता से प्राप्त किया जा सकता है।

प्रमुख अतिथि वक्ता प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी, सागर ने अपने व्याख्यान में कहा कि वैश्विक परिदृश्य में तुलसी के काव्य में सभी चुनौतियों का प्रति उत्तर मिलता है। तुलसी ने राम में परकाया प्रवेश किया था। तुलसी राम को तलाश रहे थे तो साथ ही समाज को तराश रहे थे। तुलसी काव्य में ज्ञान, विज्ञान, योग और साहित्य का सुंदर समावेश है। तुलसी का संघर्ष बड़ा गहरा है। राम जीवन की शैली है और राम ही जीवन का रास्ता है। राम और तुलसीदास एक हो गए हैं।

प्रो. गीता नायक ने कहा कि तुलसीदास जी मानते हैं कि जल और लहर की भांति शब्द और अर्थ भी एक हैं। रामचरित मानस हमें परिवार संगठन, मर्यादा और मीठे वचनों को बोलने की प्रेरणा देने वाला काव्य है। विपत्ति के साथी विद्या, विनय और विवेक होते हैं। कर्तव्य – अकर्तव्य, प्रवृत्ति- निवृत्ति का मार्ग हमें रामचरितमानस से मिलता है।

प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा ने अपने उद्बोधन में तुलसीदास जी की कृति बरवै रामायण के काव्य सौंदर्य पर बात करते हुए बताया कि तुलसीदास जी ने राम और सीता के रूप सौंदर्य को संतुलित दृष्टि से देखने का प्रयास किया है। तुलसी बहुअधीत कवि हैं। उनका काव्य कौशल कई स्तरों पर दिखाई देता है।

कला संकायाध्यक्ष प्रोफेसर सोनल सिंह ने तुलसी की प्रासंगिकता, उनके काव्य में आदर्श परिवार, सामाजिक मूल्य, व्यावहारिक रूप, लोकमंगल की भावना आदि पर चर्चा की। गणित अध्ययनशाला के अध्यक्ष प्रोफेसर संदीप कुमार तिवारी ने अपने जीवन में रामचरित मानस से जुड़े कुछ रोचक प्रसंगों को सुनाया। उन्होंने कहा कि हमें अपने जीवन में रामचरित मानस की एक एक बात का अनुकरण करना है।

इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार एवं आलोचक प्रोफेसर आनंद प्रकाश त्रिपाठी को अंग वस्त्र, साहित्य एवं पुष्पमाल अर्पित कर उनका सारस्वत सम्मान अतिथियों द्वारा किया गया। कार्यक्रम में प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी द्वारा सम्पादित पुस्तक संस्कृत में विश्व और नाट्यम पत्रिका के भास विशेषांक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।

अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका अक्षर वार्ता के विशेष अंक का विमोचन संस्थापक संपादक डॉ. मोहन बैरागी ने करवाया। कार्यक्रम डॉ. बिन्दुमती त्रिपाठी, अयोध्या, प्रो. बी.के. आंजना, डॉ. क्षमाशील मिश्रा, अनीता पंवार, डॉ. नेत्रा रावणकर आदि सहित अनेक साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं शोधार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी पूजा परमार ने किया। आभार प्रदर्शन डॉक्टर अजय शर्मा ने किया।

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