वाराणसी। ‘ओम नमः शिवाय’ मंत्र भगवान शिव का अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली मंत्र है। यह मंत्र व्यक्ति के जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भर देता है। शिव पुराण में ‘ओम नमः शिवाय’ मंत्र को अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली माना गया है। यह मंत्र भगवान शिव को समर्पित है और इसके जप से व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। इस मंत्र का उच्चारण न केवल मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह शारीरिक और मानसिक रोगों से भी मुक्ति दिलाने में सहायक है।
मंत्र का अर्थ : ओम नमः शिवाय’ मंत्र पांच अक्षरों का है, जिसे पंचाक्षर मंत्र’भी कहा जाता है। इसमें ‘ओम’ ध्वनि ब्रह्मांड की आदिशक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। ‘नमः’ का अर्थ है नमस्कार’ या ‘समर्पण’ और शिवाय’ का अर्थ है भगवान शिव को’। इस प्रकार, इस मंत्र का अर्थ हुआ ‘मैं भगवान शिव को नमस्कार करता हूं’।
मंत्र का महत्व : ओम नमः शिवाय’ मंत्र भगवान शिव का अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली मंत्र है। यह मंत्र व्यक्ति के जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भर देता है। शिव पुराण में इसके जप के महत्व और लाभों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस मंत्र के नियमित जप से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।
आध्यात्मिक उन्नति : शिव पुराण के अनुसार, ओम नमः शिवाय’मंत्र का नियमित जप करने से व्यक्ति की आत्मा शुद्ध होती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह मंत्र ध्यान और योग के अभ्यास के दौरान विशेष रूप से उपयोगी है।
मानसिक शांति : इस मंत्र का जप मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है। जब व्यक्ति इस मंत्र का उच्चारण करता है, तो उसकी आंतरिक अशांति समाप्त होती है और मन में शांति और संतुलन का अनुभव होता है।
शारीरिक स्वास्थ्य : शिव पुराण में कहा गया है कि इस मंत्र का जप करने से व्यक्ति के शारीरिक रोग भी दूर होते हैं। यह मंत्र शरीर की ऊर्जा को संतुलित करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
सकारात्मक ऊर्जा का संचार : ओम नमः शिवाय’ मंत्र का जप करने से व्यक्ति के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह नकारात्मक शक्तियों और बुरी नजर से भी रक्षा करता है।
कर्मों का शुद्धिकरण : इस मंत्र का उच्चारण व्यक्ति के पापों का नाश करता है और उसे शुभ कर्मों की ओर प्रेरित करता है। इससे उसके जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है।
जप करने की विधि : शिव पुराण के अनुसार, ओम नमः शिवाय’ मंत्र का जप किसी भी समय और किसी भी स्थान पर किया जा सकता है। हालांकि, इसके जप के लिए सुबह और संध्या का समय सबसे उत्तम माना जाता है। मंत्र जप करते समय व्यक्ति को शांत और ध्यानमग्न अवस्था में रहना चाहिए।
मंत्र जप करते समय शरीर और मन दोनों की शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए। स्नान करने के बाद ही मंत्र का जप करना शुभ होता है।
शांत और एकांत स्थान पर बैठकर ध्यान मुद्रा में मंत्र का जप करें। यह मंत्र जप के प्रभाव को बढ़ाता है।
यदि संभव हो तो रुद्राक्ष माला का प्रयोग करें। इससे मंत्र जप का प्रभाव और भी अधिक हो जाता है।
नियमित रूप से इस मंत्र का जप करने से ही व्यक्ति को इसके पूर्ण लाभ प्राप्त होते है।
ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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