डीएम द्वारा रेगुलर औचक निरीक्षण- स्कूलों में व्याप्त अनुशासनहीनता, समय का दुरुपयोग व स्टाफ की मनमानी को उजगार कर सख़्त कार्यवाही का सटीक तरीका
सभी राज्यों के जिला प्रशासन द्वारा आपसी समन्वय से ग्रांटेड स्कूलों में इंट्रा जिला औचक निरीक्षण की नीति अपनाने से भारी खामियां उजागार होने की संभावना- एडवोकेट के.एस. भावनानी
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनियां के हर देश के विकास का दरवाजा शिक्षा रूपी कुंजी या चाबी से खुलता है। हमारे भारतवर्ष के विकसित भारत मिशन 2047 का एक प्रमुख स्तंभ भी शिक्षा ही है, इसलिए शिक्षा के ज्ञान को पूरी पारदर्शिता, ईमानदारी, जवाबदेही व जिम्मेदारी से शिक्षकों का छात्रों को देना व छात्रों का उसी दृष्टिकोण से ग्रहण करना ही सच्चा गुरु शिष्य प्रेम है। हर शिक्षक को अपने शिष्य छात्रों को पूरी निष्ठा, समर्पण व त्याग के भाव से शिक्षा रूपी ज्ञान देना उसका परम कर्तव्य सहित राष्ट्रीय प्रेम का प्रतीक भी है, परंतु समय का तकाजा है कि कुछ लोग इस पवित्र प्रथा को दूषित करने में लगे हुए हैं। इसलिए ही कुछ वर्षों से भयंकर पेपर लीक के मामले, स्कूलों में अनुशासनहीनता व सबसे बड़ा प्रौद्योगिकी का अनमोल अस्त्र मोबाइल हैंडसेट स्कूल अनुशासन की मर्यादा भंग करने में अहम रोल निभाने की ओर कदम बढ़ गया है। परंतु अगर शिक्षकों का छात्र, शिक्षा, राष्ट्र व हृदय प्रेम अटल है तो यह मोबाइल प्रेम भी उनके कर्तव्य निष्ठा के आड़े नहीं आएगा, उनको डिगा नहीं पाएगा।
यह अगर हर शिक्षक को समझने की जरूरत आन पड़ी है। परंतु कुछ शिक्षक इस भाव को समझ नहीं पा रहे हैं और स्कूलों में मोबाइल चलाकर फेसबुक, व्हाट्सएप, गेम्स व कुछ गलत क्लिप व फिल्में देखकर छात्रों की पढ़ाई को नजर अंदाज कर उनके भविष्य के हसीन सपनों को खराब कर राष्ट्र के खिलाफ काम करने पर आमदा है, जिनके लपेटे में ईमानदार शिक्षक भी आ रहे हैं। इसीलिए शासन प्रशासन के लिए अब यह अनिवार्य हो गया है कि भारत के सभी ग्रांटेड व निजी स्कूलों में नियमित रूप से सक्षम बड़े अधिकारियों द्वारा रेगुलर निरीक्षण की सख्त जरूरत आन पड़ी है, क्योंकि दिनांक 10 जुलाई 2024 को यूपी के संभल में इसी औचक निरीक्षण के दौरान कई गलतियां व ढाई घंटे मोबाइल चलाते हुए एक शिक्षक को पकड़ा गया है, जो एक ऐप के माध्यम से मोबाइल हैंडसेट से पता चल जाता है कि मोबाइल हैंडसेट का कितना उपयोग किस समय हुआ है।
बता दें राजस्थान में स्कूलों में शिक्षकों को मोबाइल ले जाने पर बैन लगा दिया गया है, जो आज हर राज्य को राजस्थान के इस मॉडल को फॉलो करने की जरूरत है। चूंकि एक डीएम द्वारा औचक निरीक्षण में स्कूलों में व्याप्त अनुशासनहीनता समय का दुरुपयोग स्टाफ की मनमानी को उजगार कर सख्त कार्यवाही करने का एक सटीक तरीका है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, सभी राज्यों के जिला प्रशासन द्वारा आपसी समन्वय से ग्रांटेड स्कूलों में इंट्रा जिला औचक निरीक्षण की नीति बनाई जाए जिससे भारी खामियां उजगार होने की पूरी संभावना है। जिससे विजन 2047 को पाने की दिशा में एक बड़ा सटीक कदम होगा।
साथियों बात अगर हम दिनांक 10 जुलाई 2024 को यूपी के संभल में डीएम द्वारा एक सरकारी स्कूल का औचक निरीक्षण करने की करें तो, यूपी के संभल जिले के एक सरकारी स्कूल में निरीक्षण पर पहुंचे डीएम ने पाया कि एक टीचर ड्यूटी टाइम में मोबाइल गेम खेल रहे थे। डीएम ने टीचर का मोबाइल चेक किया तो पता चला कि 5.30 घंटे के स्कूल टाइम में उन्होंने एक घंटा 17 मिनट कैंडी क्रश खेला और इसके अलावा सोशल मीडिया का भी यूज किया। इतना ही नहीं जब डीएम ने टीचर द्वारा चेक की गई कॉपियों को दोबारा देखा तो छह पेज में 95 गलतियां भी सामने आई। मोबाइल में कैंडी क्रश गेम खेलने वाले टीचर को डीएम के निर्देश के बाद सस्पेंड कर दिया गया है। यहां उन्होंने टीचरों का शिक्षण कार्य देखा और बच्चों के पढ़ाने के तरीके पूछे, उसके बाद शिक्षकों द्वारा जांची गई गृह पुस्तिकाओं को खुद चेक किया। डीएम ने क्लास के 6 छात्रों की कॉपियों के 6 पेज चेक किए तो शिक्षक के द्वारा चेक की गई कॉपियो के 6 पेज में 95 गलतियां देखने के लिए मिली हैं। जिसमें पहले पेज पर 9 गलतियां, दूसरे पर 23 गलतियां, तीसरे पेज पर 11 गलतियां, चौथे पेज पर 21 गलतियां, पांचवे पेज पर 18 गलतियां और छठे पेज पर 13 गलतियां देखने के लिए मिली। इसको लेकर उन्होंने टीचरों को फटकार भी लगाई।
इस दौरान उन्होंने एक शिक्षक और एक शिक्षिका की बेहतर कार्यशैली की तारीफ भी की इस दौरान डीएम ने शिक्षक प्रेम गोयल के मोबाइल की डिजिटल वेलबेंग फंक्शन से हिस्ट्री निकाली तो सामने आया कि उन्होंने स्कूल टाइम में करीब दो से ढाई घंटा मोबाइल चलाया, जिसमें एक घंटा 17 मिनट कैंडी क्रश सागा गेम खेला गया। 26 मिनट फोन पर बात की गई। इसके अलावा 17 मिनट फेसबुक,11 मिनट गूगल क्रोम, 8 मिनट एक्शन दश, 6 मिनट यूट्यूब, 5 मिनट इंस्टाग्राम और 3 मिनट रीड आलोंग ऐप चलाया गया, इनमें से केवल रीड आलोंग ऐप ही विभागीय ऐप है। इस स्कूल में कुल 101 छात्र-छात्राओं का नाम दर्ज है, लेकिन जब डीएम निरीक्षण पर पहुंचे तो स्कूल में 50 फीसदी से भी कम छात्रों की उपस्थिति दर्ज की गई। इस दौरान वहीं कुल 47 छात्र-छात्राएं ही मौजूद थे। हालांकि निरीक्षण के दौरान पांचों शिक्षक मौजूद थे। वहीं इस मामले में डीएम ने कहा, स्कूल के निरीक्षण में स्कूल में कायाकल्प का काम चल रहा था। प्रधान कार्य में सहयोग नहीं कर रहे थे। ऐसे में बीडीओ को निर्देश दिए गए हैं कि कायाकल्प के काम में सहयोग कराएं। जिन पुस्तिकाओं को टीचर चेक कर चुके थे, उनमें कई कमियां मिलीं है। स्कूल टाइमिंग में एक टीचर कैंडी क्रश सागा गेम खेल चुके थे। इस दौरान डीएम ने खराब एजुकेशन क्वालिटी को लेकर शिक्षा विभाग से नाराजगी जताई।
साथियों बात अगर हम कुछ दिन पूर्व एक अन्य स्कूल में औचक निरीक्षण की करें तो, शिक्षक ही नशे में धुत होकर आए तो उस विद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों का भविष्य कितना सुनहरा होगा इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। यह किसी एक विद्यालय की स्थिति नहीं है, कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें शिक्षक नशे की हालत में विद्यालय पहुंच रहे हैं। इसे लेकर कुछ शिक्षकों के विरुद्ध कार्रवाई भी की गई है। ऐसा ही मामला माध्यमिक शाला पलकी का प्रकाश में आया है। मंगलवार को यहां मध्यान्ह भोजन की जांच करने अधिकारियों की टीम पहुंची हुई थी। टीम को देखते हुए शिक्षक वहां से भाग खड़ा हुआ। शिक्षक के भागते हुए का ग्रामीणों ने वीडियो भी बनाया। जांच दल ने शिक्षक के खिलाफ पंचनामा बनाया है, जिसे उच्च अधिकारियों के समक्ष कार्रवाई के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।
भाग रहे शिक्षक से स्कूल में न होने की वजह पूछी गई तो वह शौच के लिए जाने का बहाना करते नजर आ रहे हैं। माध्यमिक शाला पलकी में 86 बच्चे दर्ज हैं, लेकिन शिक्षक की इन हरकतों से तंग आकर 40 से 45 बच्चे ही स्कूल आते हैं। हाल ही में हदवानी बीईओ कार्यालय का एक पत्र सामने आया था। पत्र के मुताबित सिर्फ हदवानी विकास खंड के 15 शिक्षकों को कार्रवाई के लिए चिन्हित किया गया है। यह शिक्षक भी नशे की बुरी लत की चपेट में है। नशे के शौकीन यह शिक्षक पढाई के नाम पर नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।पलकी गांव के ही हाईस्कूल में पदस्थ शिक्षक ने बताया कि माध्यमिक शाला में पदस्थ शिक्षक प्रतिदिन नशे की हालत में आते हैं। वहीं स्कूल में पढऩे वाले बच्चों ने बताया कि शिक्षक देरी से स्कूल आते हैं और छुट्टी होने के पहले ही स्कूल से चले जाते हैं।
साथियों बात अगर हम राजस्थान में स्कूल के समय में मोबाइल बंदी व शिक्षा मंत्री के बयान व मंत्रालय के आदेश की करें तो, राज्य के सरकारी स्कूलों के लिए सख्त कदम उठाए हैं। उन्होंने स्कूलों में मोबाइल पर बैन लगाया है। खासकर टीचरों को मोबाइल ले जाने पर सख्त मनाही की गई है। इसके अलावा उन्होंने कहा है कि टीचर्स भैरूजी, बालाजी की पूजा और नमाज पढ़ने के नाम पर स्कूल नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने स्कूल में टीचरों के मोबाइल ले जाने पर नाराजगी जताई है। साथ ही सख्त निर्देश देते हुए इस पर प्रतिबंध लगाया है। स्कूल में मोबाइल रखने की अनुमति सिर्फ प्रिंसिपल को होगी। उन्होंने स्कूलों में बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए टीचरों को हिदायत भी दी है। उन्होने स्कूल टाइम में किसी भी पूजा-पाठ और नमाज के नाम पर स्कूल छोड़ने वाले टीचरों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही है। उन्होंने साफ कहा है कि अगर कोई टीचर धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होना चाहता है तो वह छुट्टी लेकर जा सकता है। उनके मुताबिक, स्कूलों के निरीक्षण के दौरान अकसर ऐसे मामले सामने आते हैं। उनका कहना है कि इस तरह से बच्चों की पढ़ाई में बाधा उत्पन्न होती है। इसके पीछे उन्होंने तर्क देते हुए कहा है कि स्कूलों में टीचर पूरे दिन मोबाइल पर शेयर मार्केट और न जाने क्या-क्या देखते रहते हैं। टीचर्स उसमें उलझे रहते हैं, इससे बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि मोबाइल एक बीमारी जैसा हो गया है। अगर कोई शिक्षक गलती से मोबाइल लेकर आ जाता है तो उसे अपना मोबाइल प्रिंसिपल के पास जमा कराना होगा। केवल प्रिंसिपल को ही स्कूल में मोबाइल लाने की अनुमति होगी।
उन्होंने कहा है की टीचर बच्चों को पढ़ाने से पहले खुद पढ़कर जाएं जिससे बच्चों को पढ़ाई में मदद मिले। कुछ शिक्षक स्कूल में मोबाइल ले जाते हैं और वहां पर बच्चों को पढ़ाने की अपेक्षा मोबाइल ही देखते रहते हैं। ऐसे में बच्चों की शैक्षणिक गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है। इस कारण शिक्षा मंत्री ने सख्त आदेश जारी कर दिये हैं। ताकि अब कोई स्कूल में मोबाइल नहीं चला सके। शिक्षा मंत्री ने साफ कह दिया है कि अगर कोई इस आदेश की अवेहलना करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई किया जाएगा। शिक्षक अपने परिवार या अन्य लोगों को प्रिंसिपल का नंबर दे सकते हैं। जो विद्यालय में चालू रहेगा। लेकिन अन्य टीचर फोन नहीं ले जा सकेंगे। उन्होने कि शिक्षक मोबाइल ले जाते हैं, वे शेयर मार्केट देखते रहते हैं या फिर सोशल मीडिया पर समय गंवाते हैं। ऐसे मैं स्कूल में शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। उसे दुरुस्त करने के लिए हम यह सब कर रहे हैं। इसकी पालना आज से ही शुरू कर दी गई है। ऐसा नहीं करने पर शिक्षकों के खिलाफ एक्शन लिया जाएगा।
उन्होने अपने सरकारी आवास पर इसके बारे में जानकारी दी ऐसी जानकारी मीडिया में आई है। उन्होने कहा पता नहीं मोबाइल में क्या-क्या देखते रहते हैं। कई शिक्षकों के बारे में शिकायतें मिलती है कि वे दिनभर मोबाइल में ही व्यस्त रहते हैं। पता नहीं इतना वे क्या देखते रहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि शिक्षकों के स्कूल में मोबाइल ले जाने पर पहले से रोक लगी हुई है। बच्चों के भविष्य के लिए यह उचित कदम है। वर्तमान सरकार इन नियम को सख्त तरीके से लागू करने का प्रयास कर रही है। नियमों की पालना कराना और स्कूलों का वातावरण सही करना सरकार की प्राथमिकता है। बता दें कार्यालय संयुक्त निदेशक, स्कूल शिक्षा कोटा संभाग, कोटा ने आदेश जारी किए है। मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी कोटा, बांरा, बूंदी एवं झालावाड़ को आदेश जारी किए है।
साथियों बात अगर हम शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने के प्रयासों की करें तो, चूंकि मैं भी गोंदिया राइस सिटी की एक प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान का हाईकोर्ट के आदेश पर चैरिटी कमिश्नर द्वारा बनाया गया मेंबर हूं, मेरा मानना है कि शिक्षा संस्थान में किसी संस्था, पंचायत या किसी बढ़ते सामाजिक सेवा समिति या किसी विशेष संस्था की दखलंदाजी नहीं होनी चाहिए, संस्थान के टीचरों को किसी बढ़ते सामाजिक सेवा समिति का सदस्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि वह सेवा समिति इन टीचरों व हेड मास्टर के कंधों का उपयोग या इस्तेमाल कर शैक्षणिक संस्थान में अपनी पैंठ बढ़ाने अपने विचारधारा चलाने की कोशिश करती है, या फिर कार्यकारिणी में किसे रखना है, किसे नहीं रखना है इसमें दखलअंदाजी करती है। वह अपने मेंबर कार्यकारी में फिट करने की कोशिश पर अपनी चलाती है। इन्हें बच्चों की शिक्षा से कोई लेना देना नहीं होना होता है, इसलिए सबसे पहले मास्टरों, हेड मास्टरों को किसी भी बढ़ते सामाजिक सेवा समिति से इस्तीफा देने का फरमान देना जरूरी है, ताकि वे बच्चों की शिक्षा व गुणवत्ता पर पूरा ध्यान दे सके।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत में संपूर्ण ग्रांटेड स्कूलों में सक्षम बड़े अधिकारियों द्वारा रेगुलर निरीक्षण की सख़्त ज़रूरत।डीएम द्वारा रेगुलर औचक निरीक्षण- स्कूलों में व्याप्त अनुशासनहीनता, समय का दुरुपयोग व स्टाफ की मनमानी को उजगार कर सख़्त कार्यवाही का सटीक तरीका। सभी राज्यों के जिला प्रशासन द्वारा आपसी समन्वय से ग्रांटेड स्कूलों में इंट्रा जिला औचक निरीक्षण की नीति अपनाने से भारी खामियां उजागार होने की संभावना है।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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