Sharing intelligence globally is vital to safeguard everyone's interests

वैश्विक स्तर पर खुफिया जानकारी को आपस में साझा करना सभी के हितों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण

इंडोपैसिफिक जियो इंटेलिजेंस फोरम मंगलवार को शुरू हुआ। इस व्यावहारिक मंच पर वैश्विक साझा हितों, साझा खतरों, समुद्री जोखिमों, अंतरिक्ष में लगातार बढ़ता आपसी टकराव और इस बात पर चर्चा की जाएगी कि कैसे विभिन्न रीजंस में तकनीक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र में जटिलताओं को सुलझाने में मदद करती है

नई दिल्ली: इंडोपैसिफिक जियो इंटेलिजेंस फोरम का 14वां एडिशन, ताज विवांता, द्वारका में रेसिलिएंट मल्टी-डोमेन रीजनल सिक्योरिटी, थीम पर मंगलवार को शुरू हुआ। दो दिवसीय आयोजन में वैश्विक स्तर पर खुफिया जानकारी, अंतरिक्ष-आधारित एसेट्स और अत्याधुनिक इनोवेशन की संयुक्त ताकत पर प्रकाश डाला जाएगा, ताकि इंडो-पैसिफिक में उभरते खतरों से निपटा जा सके, जो दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता क्षेत्र होने के साथ-साथ वैश्विक ट्रेड और कॉमर्स का एक महत्वपूर्ण मार्ग भी है।

लेफ्टिनेंट जनरल के एस चंदेल, प्रेसिडेंट, डिफेंस, इंटरनल सिक्योरिटी एंड पब्लिक सेफ्टी, जियोस्पेशियल वर्ल्ड ने इस बात पर जोर देकर इस तथ्य को प्रमुखता से उठाया कि इंडो-पैसिफिक के महत्व को किसी भी तरह से कम करके नहीं आंका जा सकता। जियोस्पेशियल वर्ल्ड के सीईओ संजय कुमार ने दुनिया के लिए इंडो-पैसिफिक के महत्व पर जोर दिया, खासकर ब्लू इकोनॉमी के लिए ये काफी अहम भूमिका रखता है।

जियोस्पेशियल वर्ल्ड के सीईओ संजय कुमार ने कहा कि “अगले पांच वर्षों में (रक्षा को छोड़कर) जियोस्पेशियल विकास में 8-10 बिलियन डॉलर का निवेश करने की भारत सरकार की प्रतिबद्धता इसके महत्व को रेखांकित करती है। इसे प्राप्त करने के लिए, क्षमता और प्रौद्योगिकी विकास के लिए सहयोग महत्वपूर्ण है।”

लेफ्टिनेंट जनरल राकेश कपूर, डिप्टी चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ (इंफॉर्मेशन सिस्टम्स एंड कोऑर्डिनेशन) ने कहा कि “इंडो-पैसिफिक संभावनाओं से भरा महत्वपूर्ण क्षेत्र है क्योंकि यह एक आर्थिक महाशक्ति है, और दुनिया की लगभग आधी आबादी यहीं रहती है।”, “इस क्षेत्र की सेनाओं को अपने प्रतिद्वंद्वियों पर प्रतिस्पर्धात्मक लाभ हासिल करने के लिए जियोस्पेशियल तकनीक की आवश्यकता है।

इंडो-पैसिफिक कई देशों के बीच जारी कई तरह के संघर्षों का भी एक प्रमुख थिएटर है”। उन्होंने जोर देकर कहा कि अधिकांश डोमेन- भूमि, समुद्र, वायु, अंतरिक्ष – विकास और विकास के लिए वैश्विक कॉमन्स हैं। उन्होंने कहा कि “हालांकि, ग्लोबल कॉमन्स के साथ मुद्दा कानून और शासन का पालन करना है। इस क्षेत्र की विशेषता सहयोग, सहभागिता है, लेकिन प्रतिस्पर्धा भी मौजूद है। यह समृद्धि और प्रगति की पहचान है, लेकिन गरीबी भी मौजूद है।”

हेनरी किसिंजर की पुस्तक ‘द वर्ल्ड ऑर्डर’का रेफरेंस देकर उन्होंने व्यापक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि ‘नई विश्व व्यवस्था जो भी हो, भारत की केंद्रीयता बनी रहेगी’। प्रमुख क्षेत्रीय रुझानों के बारे में बात करते हुए लेफ्टिनेंट जनरल कपूर ने कई सारे हितधारकों से उत्पन्न पारंपरिक और गैर-पारंपरिक खतरों में लगातार आ रहे बदलावों का एक आकलन दिया।

उन्होंने कहा कि “वैश्विक साइबर अपराधों में से 35% से अधिक हिंद-प्रशांत भूगोल की सीमाओं के भीतर होते हैं। इस क्षेत्र में मानव तस्करी, अवैध मछली पकड़ना, ड्रग्स और समुद्री डकैती सभी बढ़ रहे हैं, जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका का नुकसान हो रहा है।”

उन्होंने कहा कि “अगला महत्वपूर्ण ग्लोबल ट्रेंड इंटरनेशनल संस्थानों का घटता अधिकार है। ऐसे राष्ट्र हैं जो आर्टिफिशियल स्ट्रक्चर बना रहे हैं। ऐसे में रीजनल स्ट्रक्चर को मजबूत करने की आवश्यकता है।” उन्होंने कहा कि “एक और सर्वव्यापी रुझान जो कि लगातार बदल रहा है, नॉन-काइनेटिक है। इंडो-पैसिफिक में आ रहे बदलावों में, ये सभी एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।”

विवादित क्षेत्र

अंतरिक्ष को नया मोर्चा बताते हुए लेफ्टिनेंट जनरल कपूर ने चेतावनी दी कि हर चीज की निगरानी करने और यह सुनिश्चित करने के लिए एक मैकेनिज्म होना चाहिए कि हेल्फोर्ड मैकिंडर और अल्फ्रेड थेयर महान के जियोपॉलिटिकल सिद्धांत अंतरिक्ष तक न पहुंचे, जो कि महाशक्तियों की एस्ट्रोपॉलिटिक्स राजनीति के साथ तेजी से एक संभावना बनती जा रही है।

लेफ्टिनेंट जनरल कपूर ने कहा कि “भारत-प्रशांत स्थिर है, लेकिन आर्थिक अंतर-निर्भरता के कारण संवेदनशील है, जो सहजीवी संबंधों और रणनीतिक धैर्य को जन्म देता है। हमें कन्वर्जन पर ध्यान देने की जरूरत है, न कि डायवर्जेंस पर, और नियमों और कानूनों के पालन के लिए एक मजबूत मैकेनिज्म की जरूरत है।” उन्होंने कहा कि “तीन महत्वपूर्ण कारक उभरने चाहिए: मानव सुरक्षा और सूचकांक, जलवायु बदलावों पर रोक लगाना, ग्लोबल कॉमन्स में संचालन के लिए मजबूत ढांचा। भारत की सभी के लिए सुरक्षा और विकास की घोषित नीति बनी हुई है। हम साझेदारी और आपसी जुड़ाव के लिए प्रतिबद्ध हैं ताकि क्षेत्र की जटिलताओं को हल किया जा सके।”

विशाल क्षेत्र

वाइस एडमिरल तरुण सोबती, डिप्टी चीफ, इंडियन नेवल स्टाफ का कहना है कि “पश्चिम में ओमान की खाड़ी से लेकर पूर्व में अमेरिकी पैसिफिक कोस्ट तक फैली इंडो-पैसिफिक की विशालता कहीं से भी छिपी नहीं है। इस क्षेत्र का एक मजबूत समुद्री पहलू है। दुनिया का 50% से अधिक व्यापार और भारत का 90% व्यापार इसी क्षेत्र से होता है। हालांकि, हाल की समुद्री घटनाएं चिंताजनक हैं।”

उन्होंने कहा कि “समुद्री डकैती और आईयूयू फिशिंग के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं और ये काफी तेजी से एक बड़ा वैश्विक खतरा बना हुआ है, जो स्थानीय लोगों की आजीविका और आर्थिक विकास को खतरे में डाल रही है”। उन्होंने कहा कि “मादक पदार्थों सहित तस्करी भी बढ़ रही है। अवैध मानव तस्करी भी एक गंभीर अपराध है। टकराव, आग, खोज और बचाव जैसी समुद्री घटनाएं इस क्षेत्र में सबसे व्यापक रूप से दर्ज की गई हैं।”

उन्होंने कहा कि “गैर-पारंपरिक खतरों के अस्तित्व के लिए उन्हें पहचानने और उन पर कार्रवाई करने की क्षमता की आवश्यकता होती है। इंडो-पैसिफिक का जियो-स्ट्रेटेजिक लैंडस्केप विकसित होता रहा है। यूक्रेन संघर्ष और इजरायल-हमास युद्ध ने क्षेत्र से बाहर की ताकतों को इस क्षेत्र पर नज़र रखने के लिए मजबूर किया है। इस के साथ ही ये इंडो-पैसिफिक अमेरिका और चीन की प्रतिद्वंद्विता का क्षेत्र भी है।”

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के लिए निगरानी भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। खतरों को कम करने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रभाव पहले कभी इतना अधिक नहीं रहा, खासकर अंतरिक्ष-आधारित एसेट्स, अन-मैन्ड सिस्टम्स, डेटा और इमेजरी के सेक्टर्स में तकनीक का उपयोग लगातार बढ़ रहा है।”

जियोस्पेशियल एक ऐसा क्षेत्र है जहां सीमाओं को आगे बढ़ाया जा सकता है। ये समुद्री डोमेन जागरूकता के लिए महत्वपूर्ण सक्षमकर्ता हैं। भारतीय नौसेना की नवीनतम पहलों में से, नाविक (NaviC) एक भविष्यवादी और व्यावहारिक पहल है जो हमें स्वदेशी नेविगेशन की अनुमति देगी। ऐसे में, एआई हमें उपलब्ध जानकारी का विश्लेषण करने में मदद करता है।”

हालात की जड़ तक पहुंचना

जनरल वीके सिंह, पूर्व चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ, इंडियन आर्मी ने कहा कि हमें प्रभावित करने वाली चीजों के बारे में जानने की ज़रूरत है। इंडो-पैसिफिक एक ऐसा क्षेत्र है जो हमारे सकल घरेलू उत्पाद और व्यापार में योगदान देता है। इसलिए जो आप देख रहे हैं उसका मुकाबला करने के लिए तकनीकों की ज़रूरत है।” उन्होंने कहा कि “हमें स्पष्ट तस्वीर को समझने के लिए अधिक आपसी सहयोग, तालमेल और सहयोग की आवश्यकता है। “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लेकर डेटा तक सभी उपयोगिताओं और जॉइंट एप्लीकेशन का उपयोग करने की आवश्यकता है।”

इंडो पैसिफिक जियो इंटेलिजेंस फोरम: परिचय

इंडो पैसिफिक जियो इंटेलिजेंस फोरम जियोस्पेशियल टेक्नोलॉजी को उभरती हुई प्रगति के साथ एकीकृत करके एक विश्वसनीय टेक्नोलॉजिकल प्लेटफॉर्म स्थापित करना चाहता है, विशेष रूप से जियोस्पेशियल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (जीईओएआई) के फ्यूजन से ये काम किया जा रहा है। इस पहल का उद्देश्य विभिन्न सेवाओं के बीच संवाद को बढ़ावा देना, आपसी हित चर्चाओं, उच्च-स्तरीय संवादों और टेक्नोलॉजिकल प्रगति के लिए विविध देश क्षमताओं को संगठित करना है।

 जियोस्पेशियल वर्ल्ड: परिचय

“विश्व अर्थव्यवस्था और समाज में जियोस्पेशियल नॉलेज के माध्यम से एक अंतर बनाने, के अपने मिशन का पालन करते हुए, जियोस्पेशियल वर्ल्ड एक खुला, विविध, समावेशी, सहयोगी और मानवीय संगठन है जिसने पिछले 27 वर्षों से विचार नेतृत्व, नीति वकालत, प्रौद्योगिकी प्रचार का अनुसरण किया है। जियोस्पेशियल इकोसिस्टम का एक अभिन्न अंग, जियोस्पेशियल वर्ल्ड एक नॉलेज ऑर्गेनाइजेशन के रूप में काम करना जारी रखेगा, जो सस्टेनेबिलिटी के लिए नॉलेज को आगे बढ़ाएगा।

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