A unique effort to present the heritage of Indian philosophy at the global level

भारतीय दर्शन की विरासत को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने का अनूठा प्रयास

Kolkata Hindi News, कोलकाता। देशी शिक्षा के बजाय 1835 में लॉर्ड मैकाले ने इस देश में पश्चिमी शिक्षा प्रणाली शुरू की। लेकिन इससे भारतीय दर्शन की शिक्षा में कभी कमी नहीं आई। इसके बाद 1893 में शिकागो धर्मसभा में हिंदू धर्म के संन्यासी स्वामी विवेकानंद, ब्रह्म धर्म के प्रतिनिधि प्रतापचंद्र मजूमदार, जैन धर्म के प्रतिनिधि वीरचंद गांधी और बौद्ध धर्म के प्रतिनिधि अनागारिक धर्मपाल (श्रीलंका) के माध्यम से पूरी दुनिया ने भारतीय दर्शन की गहराई को नए सिरे से जाना। इसके बाद भारतीय दर्शन विश्व भर में लोकप्रिय होने लगा।

मार्गरेट नोबल (भगिनी निवेदिता), मीरा अल्फांसा (श्रीमां), रोमा रोलां, मैक्समूलर जैसे विदेशियों ने भारत आकर या अपने देश में भारतीय दर्शन की शिक्षा देना शुरू किया। लगभग पांच सौ साल पहले श्रीचैतन्य महाप्रभु ने भक्ति की जो धारा शुरू की थी, उसे भक्ति सिद्धांत सरस्वती प्रभुपाद ने आगे बढ़ाया। उनकी निजी लाइब्रेरी अब भारतीय दर्शन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इस देश के वैष्णव दर्शन को विदेशों में एसी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने ISKCON के माध्यम से फैलाया।

भारतीय दर्शन की विरासत और विभिन्न धाराओं को प्रस्तुत करने के साथ-साथ अब कोलकाता के भक्तिवेदांत रिसर्च सेंटर ने भारतीय दर्शन की उस परंपरा को पुनर्जीवित करने की पहल की है। यह संस्था भारतीय ध्रुपदीय दर्शन और पश्चिमी दर्शन के साथ-साथ इस देश की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत पर भी लंबे समय से शोध और संरक्षण का काम कर रही है।

अब नई पीढ़ी को दर्शन की शिक्षा देने के लिए उन्होंने ध्रुपदीय भारतीय दर्शन और पश्चिमी दर्शन पर कार्यशाला और ऑडियो-विज़ुअल ऑनलाइन कोर्स शुरू किया है, जहां गोवा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कोशी थ्राकन, IIIT नई दिल्ली के प्रोफेसर निशाद पट्टनायक, अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ टेनेसी के प्रोफेसर इथान मिल्स, नॉर्वे के यूनिवर्सिटी ऑफ बर्गेन के प्रोफेसर न्यूट एक्सेल जैकबसन, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एन तिवारी, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राकेश चंद और हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सीए टोमी जैसे दर्शनशास्त्र के विशेषज्ञ कक्षाएं ले रहे हैं।

कोर्स कोऑर्डिनेटर और पूर्व उपकुलपति निर्माल्य नारायण चक्रवर्ती ने कहा कि कोलकाता में भक्तिवेदांत रिसर्च सेंटर के दर्शन और पांडुलिपि संरक्षण केंद्र में इस विषय पर पहले ही दो कोर्स पूरे हो चुके हैं, जो वर्तमान में ‘BRC Global’ यूट्यूब चैनल पर मुफ्त में उपलब्ध हैं। बहुत जल्द भारतीय और पश्चिमी दर्शन पर और कई कोर्स शुरू होंगे।

उन्होंने कहा कि दर्शन शास्त्र पर शोध करने वाले देश-विदेश के शोधकर्ता सीधे या ऑनलाइन इस कार्यशाला में शामिल हो रहे हैं। उनका लक्ष्य भारतीय ध्रुपदीय दर्शन की विरासत और अभ्यास को आम जनता के बीच भी वापस लाना है।

भक्तिवेदांत रिसर्च सेंटर के डीन सुमंत रुद्र ने कहा कि कार्यशाला में भाग लेने वाले यहां से भारतीय दर्शन की विरासत के बारे में जान पा रहे हैं और साथ ही संस्था की ओर से उन्हें प्रमाणपत्र भी प्रदान किया जा रहा है।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

3 × 2 =