हाईकोर्ट का 2010 के बाद ज़ारी ओबीसी प्रमाणपत्रों को रद्द करने का आदेश ज़ारी- दूरसंचार का 6.80 लाख मोबाइल कनेक्शन का पुनःसत्यापन के निर्देश ज़ारी
पूरे भारत में आरक्षण सहित सभी हित धारकों के पात्रता प्रमाण पत्रों का पुनः निरीक्षण का अभियान चलाकर पात्रता सुनिश्चित करना समय की मांग- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। भारत में पिछले कुछ दिनों से आरक्षण को तथा कथित रूप से हटानें, दूरसंचार विभाग द्वारा तथाकथित संबंधित फर्जी 6.80 लाख मोबाइल कनेक्शन के नकली, जाली, पहचान पत्र, प्रमाण पत्र वाली ऐड्रेस, प्रमाणन के सहारे प्राप्त किया गया है, जिनका वेरिफिकेशन दो माह के अंदर करने, इस प्रकार से दो मामले बहुत गूंज रहे हैं। स्वभाविक ही है, क्योंकि 1 जून 2024 तक लोकसभा महापर्व की धमा चौकड़ी रहेगी तो, यह होना ही है। परंतु दिनांक 22 मई 2024 को कलकत्ता हाई कोर्ट का फैसला आया कि 2010 के बाद जारी ओबीसी प्रमाण पत्रों को रद्द किया जाए, ठीक उसी तरह दूरसंचार विभाग का 3.80 लाख मोबाइल नंबरों को 2 माह के भीतर वेरीफिकेशन के आदेश का भी 24 मई 2024 को आदेश आया, अन्यथा मोबाइल नंबर और हैंडसेट दोनों ब्लॉक कर दिए जाएंगे।
तो, मेरा ध्यान इसकी मुख्य कड़ी प्रमाणपत्रों की तरफ गया जो कई प्रकार से, कई तरह से जाली रूप में बन जाते हैं, जिसके आधार पर अनेक तथाकथित व्यक्ति अनेकों सुविधाओं का लाभ उठाते हैं जिनके वे हकदार नहीं है, परंतु बस कुछ ही हरे पीले खर्च कर दें, तो प्रमाणपत्र हाथ में आ जाता है। यह मैं इसीलिए कहा रहा हूं कि मैं खुद यह कार्य तहसील एसडीओ ऑफिस में देख चुका हूं। इसे उदाहरण के रूप में समझे तो अगर हमको आय प्रमाण पत्र चाहिए तो वह मात्र 300 रुपए में हमें घर बैठे मिल जाता है, हालांकि इसकी पूरी लंबी प्रक्रिया है और उसके साथ यह प्रमाण पत्र उस व्यक्ति के नाम जारी होता है जिसमें उसे राज्य के सेतु केंद्र से एफिडेविट बनता है, उसका लाइव फोटो खींचा जाता है परंतु इसके बिना ही यह आय का प्रमाणपत्र मिल जाता है। धान खरीदी, निवासी, सीनियर सिटीजन प्रमाण पत्र सहित अनेकों प्रमाणपत्र मात्र कुछ रुपए में घर पहुंच सेवा के रूप में मिल जाता है, जो दलालों या कर्मचारीयों के द्वारा किया जाता है।
इन प्रमाण पत्रों के बल पर ही तथा कथित सुविधा, आरक्षण, ओबीसी सहित हित प्राप्त होते हैं। आजकल मैं देख रहा हूं कि जिसको देखो वही ओबीसी, आर्थिक पिछड़ा गरीब इत्यादि के कारण प्रमाण पत्र बनाकर अपने तथा परिवार वालों का हित साधे बैठा है। जबकि अनेक लोकसभा सीटों के प्रचार के दौरान माननीय पीएम ने कहा है कि, इतने करोड़ लोग गरीबी रेखा के ऊपर उठ चुके हैं। इसीलिए अब इस आलेख के माध्यम से मेरी अपील है के नई सरकार का गठन होने के बाद पहले, मंत्रिमंडल की मीटिंग में पहले ही प्रस्ताव यह पारित होना चाहिए कि जो गरीबी रेखा के ऊपर उठ चुके हैं वह अपना गरीबी हित स्कीम जो शासकीय सुविधाओं के रूप में मिल रही है त्यागना होगा, साथ ही शासन प्रशासन को भी इसे सख़्ती से अभियान चलाना जारी रखना होगा इस तरह हर प्रकार के आरक्षण संबंधी प्रमाण पत्रों का भी पुनः सत्यापन सख़्ती से किया जाना चाहिए, ताकि जो लाखों करोड़ों जाली प्रमाण पत्र के दम पर अनेक सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं उनके प्रमाण पत्र कैंसिल कर उन्हें सजा दी जाए ताकि फोकट की रेवड़ियों पर लगाम लग सके।
चूंकि कलकत्ता हाईकोर्ट ने 23 मई 2024 को 2010 के बाद सभी ओबीसी प्रमाण पत्र को रद्द करने का आदेश दे दिया है व दूर संचार विभाग ने 3.80 लाख मोबाइल कनेक्शन का पुनः सत्यापन करने के आदेश दिए हैं, इसलिए आज हम मीडियम उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे संपूर्ण भारत में आरक्षण सहित हितधारकों के पात्रता प्रमाण पत्र का पुनर्निर्भूषण का अभियान चला कर जाली प्रमाणपत्र को रद्द करना समय की मांग है।
साथियों बात अगर हम कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा 23 मई 2024 को दिए गए आदेश की करें तो, पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग अधिनियम 2012 की धारा 2एच 56 और धारा 16 की अनुसूची I और III को असंवैधानिक घोषित कर दिया। हालाँकि, अदालत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और सेवाओं और पदों में आरक्षण रिक्तियों को रद्द नहीं करती है। कुछ याचिकाकर्ताओं ने प्रमाणपत्र बनाने की प्रक्रिया को चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 2010 के बाद जारी किए गए ओबीसी प्रमाणपत्रों को अवैध करार दिया। हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह इस आदेश को स्वीकार नहीं करेंगी। अपने फैसले में यह भी कहा है कि रद्द किये गये प्रमाण पत्र किसी भी नौकरी में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब करीब पांच लाख ओबीसी प्रमाणपत्र रद्द कर दिये गये। हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा, इस प्रमाणपत्र का उपयोग जिन लोगों ने पहले कर दिया है उन पर इस फैसले का असर नहीं होगा। कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा ये फैसला सुनाने की वजह कानून मुताबिक इस दस्तावेज का सही नहीं होना है।
हाईकोर्ट का इस मामले में साफ तौर पर कहना है कि 2010 के बाद जितने भी सर्टिफिकेट बनाए गये, वे कानूनन ठीक से नहीं बनाए गए हैं। इसलिए उस प्रमाणपत्र को रद्द किया जाना चाहिए, लिहाजा अब इस सर्टिफिकेट का उपयोग लोग किसी भी नौकरी में नहीं कर पायेंगे। हालांकि जिन लोगों ने इस दस्तावेज उपयोग पहले ही कर लिया है उन लोगों को कोई प्रभाव नहीं होगा। 2010 से पहले जारी किए गए ओबीसी प्रमाणपत्र प्रभावित नहीं होंगे, इसका मतलब यह हुआ कि वास्तव में पिछड़े वर्ग के लोगों को उनके उचित प्रमाणपत्र नहीं दिए गए।कोर्ट के फैसले ने 2010 से 2024 के बीच दिए गए सभी ओबीसी प्रमाणपत्र रद्द कर दिए। हालांकि, जिन लोगों ने 2010 से पहले अपने प्रमाण पत्र प्राप्त किए थे, वे प्रभावित नहीं होंगे। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस आदेश का उन लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जो पहले से ही सेवा में हैं या जो आरक्षण से लाभान्वित हुए हैं और किसी भी राज्य चयन प्रक्रिया में सफल हुए हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि अदालत ने 2010 से पहले 66 ओबीसी वर्गों को वर्गीकृत करने वाले राज्य सरकार के आदेशों में हस्तक्षेप नहीं किया, क्योंकि इन्हें याचिकाओं में चुनौती नहीं दी गई थी।
साथीयों बात अगर हम दो बड़े नेताओं के बयान की करें तो, पश्चिम बंगाल की सीएम ने हाईकोर्ट के फैसले का कड़ा विरोध किया फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए उच्च न्यायालय के आदेश का कड़ा विरोध किया और भाजपा पर फैसले को प्रभावित करने का आरोप लगाया।उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ओबीसी आरक्षण जारी रहेगा और भाजपा के रुख की आलोचना की। उन्होने कहा कि ओबीसी आरक्षण लागू करने से पहले सर्वेक्षण किए गए थे और सवाल किया कि भाजपा शासित राज्यों में इसी तरह के मुद्दे क्यों नहीं उठाए गए। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि प्रधान मंत्री मोदी ने पहले तपशीली (अनुसूचित जाति) आरक्षण पर अल्पसंख्यकों के संभावित प्रभाव पर एक संवैधानिक संकट का सुझाव देते हुए टिप्पणी की थी। केंद्रीय गृह मंत्री ओबीसी प्रमाणपत्र रद्द करने को लेकर कोर्ट के फैसले से सहमत हैं। दूसरी ओर, उन्होने हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत किया। उन्होंने सीएम पर उचित सर्वेक्षण के बिना मुस्लिम जातियों को ओबीसी आरक्षण फिर से वितरित करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। उन्होने अदालत के आदेश को मानने से सीएम के इनकार की निंदा की और कानून के शासन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाया। इस घटनाक्रम ने पश्चिम बंगाल में तीखी राजनीतिक बहस छेड़ दी है, जिसमें दोनों पक्ष ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर मजबूती से अपना पक्ष रख रहे हैं।
साथियों बातें अगर हम जाली प्रमाण पत्र पर एक्शन की करें तो, बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में, खंडपीठ ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) को संबोधित करते हुए यह निर्णय लिया। जिसमें ओबीसी प्रमाणपत्र देने की प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी। अदालत ने निर्देश दिया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 के आधार पर ओबीसी की एक नई सूची बनाई जानी चाहिए। 2010 के बाद तैयार की गई ओबीसी सूची अवैध थी, इसके अलावा, अदालत ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा) की अनुसूची I और III के साथ-साथ धारा 2H, 5, 6 और 16 को रद्द कर दिया। अनुसूचित जनजाति (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 को असंवैधानिक कहा गया है।
साथियों बातें अगर हम आईपीसी में जाली प्रमाणपत्र धाराओं की, करें तो, 420, 465, 466, 468, 471, 472, 474 व 34 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया जाता है।
धारा 465: जालसाजी के लिए सजा, जो कोई भी जालसाजी करेगा उसे दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा। इसका मतलब यह है कि कानून जालसाजी को गंभीरता से लेता है और ऐसी धोखाधड़ी गतिविधियों को रोकने के लिए महत्वपूर्ण दंड का प्रावधान करता है। ताशी दादुल भूटिया बनाम सिक्किम राज्य (2011) इस मामले में, स्वच्छता पर्यवेक्षक के रूप में कार्यरत ताशी दादुल भूटिया को झूठे दस्तावेज, विशेष रूप से नकली व्यापार लाइसेंस बनाने का दोषी पाया गया था। उसने कई लोगों को ये फर्जी लाइसेंस जारी किए।
अदालत ने उन्हें इसके लिए दोषी ठहराया : जाली दस्तावेज़ों को असली के रूप में उपयोग करने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 465 के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 471 के तहत एक वर्ष। धोखाधड़ी के इरादे से जालसाजी के लिए आईपीसी की धारा 468 के तहत दो साल का साधारण कारावास। शीला सेबेस्टियन बनाम आर जवाहराज और अन्य (2018) भारत के सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि आईपीसी की धारा 465 के तहत जालसाजी के लिए किसी को दोषी ठहराने के लिए, धारा 463 और 464 में निर्दिष्ट सभी शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए। इसका मतलब यह है कि अभियोजन पक्ष को यह साबित करना होगा कि एक गलत दस्तावेज बेईमान इरादे से बनाया गया था जैसा कि इन धाराओं में परिभाषित किया गया है।
साथियों बात अगर हम दिनांक 24 मई 2024 को दूरसंचार विभाग द्वारा जारी किए गए आदेश की करें तो, दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने लगभग 6.80 लाख मोबाइल कनेक्शनों की पहचान की है, जिनके बारे में संदेह है कि उन्हें अमान्य, गैर-मौजूद या नकली/जाली पहचान प्रमाण (पीओआई) और पते के प्रमाण (पीओए) केवाईसी दस्तावेजों का उपयोग करके प्राप्त किया गया है। पुन: सत्यापन के लिए निर्देश- दूरसंचार विभाग ने टीएसपी को इन पहचाने गए मोबाइल नंबरों का तत्काल पुन: सत्यापन करने के निर्देश जारी किए हैं। सभी टीएसपी को 60 दिनों के भीतर चिह्नित कनेक्शनों को फिर से सत्यापित करना अनिवार्य है। पुन: सत्यापन पूरा करने में विफल रहने पर संबंधित मोबाइल नंबर बंद कर दिया जाएगा। संयुक्त प्रयासों से परिणाम प्राप्त हुए: विभिन्न क्षेत्रों के बीच सहयोग और एआई प्रौद्योगिकी का उपयोग इन धोखाधड़ी वाले कनेक्शनों की पहचान करने में महत्वपूर्ण रहा है, यह पहचान धोखाधड़ी से निपटने में एकीकृत डिजिटल प्लेटफार्मों की प्रभावशीलता को प्रदर्शित करता है। दूरसंचार विभाग ने मोबाइल कनेक्शन की प्रामाणिकता और डिजिटल लेनदेन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पुनः सत्यापन की मांग की है। दूरसंचार विभाग सभी के लिए सुरक्षित डिजिटल वातावरण बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि पूरे भारत में सभी प्रकार के प्रमाण पत्रों का पुनः सत्यापन अभियान सख़्ती से चलाना समय की मांग। हाईकोर्ट का 2010 के बाद ज़ारी ओबीसी प्रमाणपत्रों को रद्द करने का आदेश ज़ारी। दूरसंचार का 6.80 लाख मोबाइल कनेक्शन का पुनः सत्यापन के निर्देश ज़ारी। पूरे भारत में आरक्षण सहित सभी हितधारकों के पात्रता प्रमाणपत्रों का पुनः निरीक्षण का अभियान चलाकर पात्रता सुनिश्चित करना समय की मांग है।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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