वैश्विक स्तर पर चाबहार व ग्वादर बंदरगाहों ने दुनियां का ध्यान आकर्षित किया
भारत का ईरान में चाबहार बंदरगाह व चीन का पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह में केवल 72 किलोमीटर की दूरी- रणनीतिक भू-राजनीतिक लॉन्च पैड संदर्भ- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर पिछले कुछ दिनों से पूरी दुनियां के सोशल, प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में चाबहार व ग्वादर नाम की चर्चा खूब देखने व सुनने को मिल रही है। शुरू में तो मैं स्वयं भी चाबहार और ग्वादर का नाम बहुत दिनों से सुन रहा था परंतु दोनों क्या है उसपर ध्यान नहीं दिया। फिर दिनांक 13 मई 2024 को जब अमेरिकी विदेश विभाग की एक सख्त चेतावनी सुनी जिसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि ईरान के साथ व्यापार करने वाली संस्थाओं जिसमें चाबहार बंदरगाह से जुड़े लोग भी शामिल है, को प्रतिबंधों के संभावित जोखिम का संभावित सामना करना पड़ सकता है, तो मेरा सटीक ध्यान इस मुद्दे पर गया कि आखिर क्यों बार-बार चाबहार और ग्वादर नाम सुनने को मिल रहे हैं, इस पर मैंने फिर आर्टिकल बनाने का निर्णय लिया और मीडिया, रेडियो, टीवी चैनलों पर रिसर्च शुरू किया तो पिछले तीन-चार दिनों में रिसर्च कर पूरी जानकारी निकाली और इस पर आर्टिकल तैयार किया। असल में चाबहार भारत का ईरान में एक बंदरगाह है, व ग्वादर चीन का पाकिस्तान में एक बंदरगाह है व दोनों बंदरगाहों के बीच मात्र 72 किलोमीटर की दूरी है व इससे दुनियां के कई देशों का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से हित जुड़े हुए हैं, तो यह एक रणनीतिक भूराजनीतिक लॉन्च पैड भी संदर्भित किया गया है, जिसे भारत, अमेरिका, चीन, पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान सहित कई देशों की चिंताएं व बंदरगाहों की समानताओं से प्रभावित कई दूरगामी रणनीतियां शामिल है। चुंकि अभी वैश्विक स्तर पर चाबहार व ग्वादर बंदरगाहों ने दुनियां का ध्यान आकर्षित किया है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारत के ईरान में चाबहार बंदरगाह व चीन के पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह में केवल 72 किलोमीटर की दूरी है, रणनीतिक भू राजनीतिक लॉन्च पैड संदर्भित किया जा सकता है।
साथियों बात अगर हम भारत का चाबहार बंदरगाह बनाम चीन का ग्वादर बंदरगाह की करें तो, पाकिस्तान में चीन के ग्वादर बंदरगाह और ईरान में भारत के चाबहार, जो केवल 72 किलोमीटर की दूरी पर हैं, को क्रमशः चीन और भारत के लिए रणनीतिक भू-राजनीतिक लॉन्च पैड के रूप में संदर्भित किया गया है। दक्षिण-पूर्व ईरान में ओमान की खाड़ी पर चाबहार का बंदरगाह शहर है। सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत के मकरान तट पर ओमान की खाड़ी के करीब और होर्मुज जलडमरूमध्य का मुहाना है जहाँ हमको चाबहार बंदरगाह मिलेगा। केवल ईरान के इस बंदरगाह की हिंद महासागर तक सीधी पहुंच है। इन लैंडलॉक देशों में इसे गोल्डन गेट के रूप में जाना जाता है।
समानताएँ- दोनों बंदरगाहों का मेजबान देशों पाकिस्तान और ईरान और उन देशों (चीन और भारत) के लिए जो दोनों बंदरगाहों पर शिपिंग कंटेनरों और अन्य सुविधाओं के निर्माण में निवेश करते हैं, दोनों के लिए व्यापक आर्थिक महत्व है। हालांकि, उस क्षेत्र में मौजूद उग्रवाद का स्तर जहां दो बंदरगाह स्थित हैं, उनके बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है। अंतर, एक अलग स्तर पर, भारत और चीन की निवेश सहायता की प्रकृति में कई जटिलताएं हैं जो मेजबान देशों पर उनकी आर्थिक निर्भरता की डिग्री को प्रभावित करती हैं। इसके अतिरिक्त चाबहार के विपरीत जहां भारत से कोई बाहरी जनसांख्यिकीय प्रवाह नहीं है ग्वादर ने बंदरगाह में काम कर रहे चीनी लोगों को समायोजित करने के लिए निपटान निर्माण में वृद्धि देखी है।अफगानिस्तान की स्थिति और प्राथमिकताएं जो मध्य एशिया के लिए इन देशों के भूमि पुल के रूप में कार्य करती हैं, एक अन्य कारक हैं। अपनी समुद्री कनेक्टिविटी के लिए पाकिस्तान के बंदरगाहों पर अपनी निर्भरता के विकल्प के रूप में अफगानिस्तान चाबहार के घटनाक्रम को एक सकारात्मक और लाभप्रद कदम के रूप में देखता है।
साथियों बात अगर हम ग्वादर बंदरगाह के साथ जुड़ी पड़ोसी देशों व पश्चिमी देशों की चिंताओं की करें तो, ग्वादर ने पड़ोसी दक्षिण एशियाई देशों, विशेष रूप से भारत के साथ-साथ पश्चिमी देशों में भी चिंता पैदा कर दी है। पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की सामरिक क्षमताओं को मजबूत करने की अपनी क्षमता के संदर्भ में। इनमें से कुछ चिंताएं हैं;
सामान्य चिंताएं- प्रत्येक राष्ट्र ग्वादर को रणनीतिक रूप से अलग तरह से देखता है। चीन के लिए यह एक महत्वपूर्ण पारगमन मार्ग है जो इसे बीजिंग से दुबई की यात्रा करने की अनुमति देता है। यह चीन को अपने पश्चिमी क्षेत्र को निकटतम बंदरगाह से जोड़ने और विस्तार करने में भी मदद करता है। इस क्षेत्र के राष्ट्र सबसे अधिक चिंतित हैं कि बंदरगाह को सैन्य रूप से रणनीतिक स्थिति में बदल दिया जा सकता है जहां चीन अपना नौसैनिक अड्डा स्थापित कर सकता है।इसके अतिरिक्त चीन उद्देश्यपूर्ण रूप से रणनीतिक अस्पष्टता की नीति अपना रहा है, जिससे क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा में किसी भी संभावित वृद्धि की प्रत्याशा में, अपने चयन के एक पल में नौसेना कार्रवाई को बढ़ावा देने का विकल्प प्राप्त कर रहा है। परिणामस्वरूप पड़ोसी देशों में सुरक्षा की स्थिति और अधिक समस्याग्रस्त होती जा रही है। इसके अतिरिक्त, यह संवेदनशील क्षेत्रीय सुरक्षा प्रणाली को और अधिक जटिल बनाता है। भारत की चिंता, भारत हमेशा चीन की मुखर क्षेत्रीय व्यस्तताओं से परेशान रहा है। प्रचलित सर्वसम्मति यह रही है कि ईरान के चाबहार बंदरगाह के निर्माण में भारत की भागीदारी ग्वादर में व्यापक निर्माण परियोजनाओं की प्रतिक्रिया है। जबकि ग्वादर एक सैन्य रणनीतिक पहल है, चाबहार केवल एक वाणिज्यिक उद्यम है। चाबहार के लिए खतरे के रूप में देखे जाने वाले ग्वादर के विकास के बारे में चिंता ईरान में भी मौजूद है। ईरानी सरकार ने प्रतिद्वंद्विता पर सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए सद्भावना के रूप में ग्वादर और चाबहार के बीच एक कड़ी बनाने का सुझाव दिया है।
संयुक्त राज्य अमेरिका की चिंता- पश्चिम एशियाई क्षेत्र में चीन के भू-राजनीतिक उद्देश्यों को लेकर अमेरिका में भी चिंता जताई गई है। हालांकि अमेरिका ने इस संबंध में सार्वजनिक रूप से कोई बड़ी घोषणा नहीं की है, लेकिन वह ग्वादर के घटनाक्रम पर पैनी नजर रखे हुए है। प्रशांत क्षेत्र में चीनी गतिविधियों के बारे में अपनी चिंताओं के विपरीत, सामान्य रूप से पश्चिमी हिंद महासागर और विशेष रूप से ग्वादर में चीनी उपस्थिति के बारे में अमेरिका की बेचैनी निचले स्तर पर स्पष्ट है।
साथियों बात अगर हम ग्वादर पोर्ट के भू-राजनीतिक प्रभाव की करें तो, भारत ने चीन के एक मोतियों की माला से घिरे होने पर चिंता व्यक्त की है। शत्रुता की स्थिति में, भारत चीनी आयात को जलडमरूमध्य से गुजरने से रोक सकता है। ग्वादर बंदरगाह का विकास ओमान की खाड़ी और अरब सागर में इसकी नौसैनिक सुरक्षा के माध्यम से भारत के ऊर्जा और तेल के आयात के एक महत्वपूर्ण हिस्से के लिए खतरा है। अंडमान सागर में भारतीय समुद्री निगरानी के परिणाम स्वरूप पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह में चीनी रुचि बढ़ सकती है। भारत ने चाबहार बंदरगाह विकसित करके जवाब दिया, जो पाकिस्तान में चीन द्वारा निर्मित ग्वादर बंदरगाह से सिर्फ 76 समुद्री मील की दूरी पर है। रूस, मध्य एशियाई राष्ट्रों और अफगानिस्तान के साथ व्यापार संपर्क में सुधार के लिए, भारत ने चाबहार बंदरगाह के निर्माण के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया। चाबहार विशेष आर्थिक क्षेत्र में निवेश के लिए भारत ने एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। यहां लिंक किए गए पेज में विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) के बारे में और जानकारी है। चाबहार हाजीगक कॉरिडोर का विकास भारत की प्राथमिकता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि अफगान सरकार ने भारतीय फर्मों को हाजीगक लौह और इस्पात परियोजना के लिए अनुबंध दिया था।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा- सीपीईसी बेल्ट एंडरोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की एक प्रमुख परियोजना है और इसके तहत राजमार्ग, रेलमार्ग और पाइपलाइन 3 हज़ार किलोमीटर का निर्माण करते हैं। बीआरआई चीनी राष्ट्रपति का एक बहु-अरब डॉलर का ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसे 2015 में लॉन्च किया गया था।बीआरआई का लक्ष्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के जरिए विश्व स्तर पर बीजिंग के प्रभाव को बढ़ाना है। यह अंततः एक बड़े राजमार्ग और रेल नेटवर्क के माध्यम से दक्षिण पश्चिमी पाकिस्तान में ग्वादर और उत्तर पश्चिमी चीन में झिंजियांग शहरों को जोड़ने का प्रयास करता है। प्रस्तावित परियोजना को काफी सब्सिडी वाले ऋणों द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा जो चीनी बैंक पाकिस्तान सरकार को प्रदान करेंगे। जब 13 नवंबर, 2016 को चीनी कार्गो को ग्वादर पोर्ट पर स्थानांतरित किया गया, तो सीपीईसी ने काम करना शुरू कर दिया, जबकि कुछ महत्वपूर्ण बिजली परियोजनाएं 2017 के अंत तक पूरी हो गईं।
साथियों बात अगर हम भारत के चाबहार पोर्ट से अमेरिका को चिढ़ लगने की करें तो, भारत और ईरान के बीच हुई डील से अमेरिका चिढ़ा हुआ है। अमेरिका शुरू से इसका विरोध करता रहा है। अब एक बार फिर उसने चेतावनी दी है। अमेरिका ने कहा है कि ईरान के साथ व्यापारिक सौदे करने वाले किसी भी देश पर प्रतिबंध लगाए जाने का संभावित खतरा है, उसने यह भी कहा कि वह जानता है कि ईरान और भारत ने चाबहार बंदरगाह से जुड़े एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।भारत ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ईरान के चाबहार बंदरगाह को संचालित करने के लिए 10 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर किया है। यानें 10 साल तक इसके संचालन की जिम्मेदारी भारत की होगी। भारत ईरान के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, इससे उसे मध्य एशिया के साथ व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी। ये बंदरगाह 7,200 किलोमीटर लंबा है। इसके जरिए भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई की जाएगी।
साथियों बात अगर हम भारत ईरान के चाबहार समझौते के कुछ ही घंटों में अमेरिका के बयान की करें तो, भारत द्वारा ईरान में चाबहार बंदरगाह को 10 वर्षों के लिए संचालित करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटों बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका ने दोहराया कि ईरान के साथ व्यापारिक सौदों पर विचार करने वाले किसी भी व्यक्ति को प्रतिबंधों के संभावित जोखिम के बारे में पता होना चाहिए। यह बात ऐसे समय में आई है जब कुछ ही दिन पहले अमेरिका ने इजराइल पर हमले के बाद ईरान के मानवरहित हवाई वाहन उत्पादन को निशाना बनाते हुए उस पर नए प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। अमेरिकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने भारत और ईरान के बीच समझौते के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि हम इन रिपोर्टों से अवगत हैं कि ईरान और भारत ने चाबहार बंदरगाह के संबंध में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। मैं भारत सरकार को चाबहार बंदरगाह के साथ-साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों के संबंध में अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों के बारे में बात करने दूंगा। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुंबई में संवाददाताओं से कहा कि जब भी कोई दीर्घकालिक व्यवस्था संपन्न होगी, तो बंदरगाह में बड़े निवेश का रास्ता साफ हो जाएगा। शिपिंग मंत्रालय के एक करीबी सूत्र ने कहा कि सोनोवाल के एक महत्वपूर्ण अनुबंध पर हस्ताक्षर करने की उम्मीद है जो भारत को बंदरगाह का दीर्घकालिक पट्टा सुनिश्चित करेगा।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत का चाबहार बंदरगाह बनाम चीन का ग्वादर बंदरगाह। वैश्विक स्तर पर चाबहार व ग्वादर बंदरगाहों ने दुनियां का ध्यान आकर्षित किया। भारत का ईरान में चाबहार बंदरगाह व चीन का पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह में केवल 72 किलोमीटर की दूरी- रणनीतिक भू-राजनीतिक लॉन्च पैड संदर्भ है।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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