वैश्विक भविष्य की सोच में मानव केंद्रित दृष्टिकोण को सर्वोच्च प्राथमिकता देना समय की मांग
भारत सहित कई देश संयुक्त राष्ट्र संघ यूएनएससी व वीटो पावर के विस्तार सहित अनेक बदलाव कर 194 सदस्यों वाले इस अंतरराष्ट्रीय मंच को पावरफुल व सशक्त बनाना चाहतें है- एड. के.एस. भावनानी
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर समय के बदलते चक्र के चलते मानवीय बौद्धिक क्षमता का तेजी से विस्तार के कारण आए प्रौद्योगिकी व डिजिटल युग में अब कई बड़े-बड़े विकसित देश पिछड़े हैं,तो कई विकासशील देश अगड़े हो गए हैं। ऐसी स्थिति में 1945 में गठित संयुक्त राष्ट्र संघ जिसमें कभी 50 के करीब देश हुआ करते थे, आज उसका विस्तार होकर 194 से अधिक देशों की सदस्यता है जिसमें कई देश अब बहुत पावरफुल हैं जो रेखांकित करने वाली बात है। इसलिए अब समय आ गया है कि संयुक्त राष्ट्र संगठन के संगठनात्मक व शाखाओं के स्ट्रक्चर को पुनर्गठित करने की आवश्यकता है। मसलन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अभी 15 सदस्य देश हैं जिसमें पांच देशों को वीटो पावर प्राप्त है, मेरा मानना है कि इस स्ट्रक्चर को अब बदलकर दो गुना यानी 30 सदस्य व 10 वीटो पावर वाले देशों को करना समय की मांग है तथा उनकी शाखाओं में भी संगठनात्मक परिवर्तन करने की खास जरूरत है, विशेषकर उन देशों को जवाबदारी देने की जरूरत है जो उसे क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल हैं। जिससे संयुक्त राष्ट्र संघ की कम होती जा रही प्रतिष्ठा व मूल्यांकन को तेजी से बढ़ावा व सशक्तता मिलेगी उसके घटते प्रभाव में पावर आएगा।
पिछले दिनों से हम देख रहे हैं कि यूएन के आदेशों की कई मामलों में अवहेलना होती आ रही है। खासकर अभी शुरू दो युद्धों रूस-यूक्रेन व हमास इजराइल में कई मुद्दों पर यूएन के आदेशों, अपीलों, दिशा निर्देशों को सिरे से खारिज कर दिया गया है, जो हम मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से सुनते रहते हैं। इसलिए अब यूएन को इतना सख़्त व प्रभावशाली बनाया जाए कि उसके आदेश की अवहेलना की हिम्मत किसी देश में ना हो, कोई देश यूएन के आदेशों की अवहेलना करता है तो वैश्विक प्रतिबंधों की झड़ी लगा देना चाहिए, जिसका डर हर सदस्य देशों में रहेगा और यूएन के आदेशों का पालन गंभीरता व तुरंत प्रभाव से करेंगे। बता दें इस 79 वें सत्र में भारतीय विदेशमंत्री का इस सत्र की आम डिबेट में 28 सितंबर 2024 को संबोधन करना संभव है। इसके पहले माननीय पीएम 26 सितंबर 2024 को संबोधित करने वाले थे, जिसमें संशोधन कर अब विदेश मंत्री संबोधन करेंगे। वैश्विक भविष्य की सोच में अब मानव केंद्रित दृष्टिकोण को सर्वोच्च प्राथमिकता देना समय की मांग है। चुंकि संयुक्त राष्ट्र महासभा का 79वां सत्र 24-30 सितंबर 2024 को हो रहा है, जिसमें वैश्विक मुद्दों का समाधान ढूंढने 194 से अधिक देशों की बैठक शुरू है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारत सहित कई देश संयुक्त राष्ट्र संगठन, यूएनएससी व वीटो पावर में विस्तार सहित अनेक बदलाव कर 194 सदस्यों वाले इस अंतरराष्ट्रीय मंच को पावरफुल व सशक्त बनाना समय की मांग है।
साथियों बात अगर हम यूएन महासभा के 79वें सत्र की जनरल डिबेट मंगलवार 24 से 30 सितंबर को जानने की करें तो, वार्षिक उच्चस्तरीय जनरल डिबेट, मंगलवार, 24 सितम्बर को शुरू हो गई है। इसमें दुनियां भर के 120 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्ष व सरकार अध्यक्ष अपनी बात दुनियां के सामने रखने के लिए न्यूयॉर्क पहुँच चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश, सदस्य देशों से कह चुके हैं कि वो यहाँ न्यूयॉर्क में, बहुपक्षवाद में फिर से जान फूँकने के लिए एकत्र हो रहे हैं, तो मुद्दा ये है कि क्या समायोजन करने और तालमेल बिठाने की एक नई भावना, एक अधिक टिकाऊ व शान्तिपूर्ण भविष्य का रास्ता खोल सकती है। संयुक्त राष्ट्र संघ एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का एक संगठन के रूप में जाना जाता है!
इस संगठन की स्थापना द्वितीय विश्वयुद्ध के विजेता देशों द्वारा 24 अक्टूबर 1945 को की गई थी! प्रारंभ में इसके 50 सदस्य देश थे, वर्तमान में 194 मान्यता प्राप्त देशों से भी अधिक इस संस्था के सदस्य हैं! इसके मुख्य उद्देश्य है – युद्ध रोकना, मानव अधिकारों की रक्षा करना, अंतर्राष्ट्रीय कानूनी प्रणाली संचालित करना, सामाजिक एवं आर्थिक विकास को उभारना, लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए प्रयास करना, बीमारियों से मुक्ति के लिए काम करना एवं अन्य जनकल्याण के लिए कुछ करते रहना। भविष्य का शिखर सम्मेलन एक ऐसी उच्च स्तरीय बैठक है, जिसमें दुनिया भर की हस्तियां, न्यूयॉर्क स्थित यूएन मुख्यालय में एकत्र हुई हैं। इस सम्मेलन में इस मुद्दे पर नई अन्तरराष्ट्रीय सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी कि वर्तमान को बेहतर कैसे बनाया जाए और भविष्य की रक्षा किस तरह की जाए।
ये सम्मेलन एक पीढ़ी में एक बार मिलने वाला एक ऐसा अवसर है जिसमें कमज़ोर पड़ चुके भरोसे को बहाल करने और यह दिखाने का मौक़ा मिलता है कि अन्तरराष्ट्रीय सहयोग, दरअसल मौजूदा और हाल के वर्षों में उभरी या निकट भविष्य में उभरने वाली चुनौतियों से असरदार तरीक़े से निपट सकता है। इस सम्मेलन का उद्देश्य दोहरा है : हमारी मौजूदा प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के प्रयासों को तेज करना और उभरती चुनौतियों व असवरों का मुक़ाबला करने के लिए, ठोस कदम उठाना। यह सब, एक कार्रवाई पर आधारित परिणाम दस्तावेज के जरिए हासिल किया जाएगा, जिसे पैक्ट ऑफ द फ्यूचर के नाम से जाना जाता है। जिसमें ग्लोबल डिजिटल कंपैक्ट और डिक्लेरेशन ऑन फ्यूचर जनरेशन भी शामिल होंगे।
साथियों बात अगर हम संयुक्त राष्ट्र की वर्तमान स्थिति की करें तो यह संभवत: जो हालत घर में अशक्त और लाचार बड़े बुजुर्ग की होती है वही हालत संयुक्त राष्ट्र संघ की है। इसकी सबसे बड़ी विडम्बना मात्र 5 देशों को विटो पावर देकर इसकी उपयोगिता को खत्म कर दिया है। आजकल घरों में बुजुर्ग की राय को अहमियत नहीं दी जाती चाहे वो जो मर्जी लाभकारी हो, उसी तरह विश्व में पैदा हुए तनावपूर्ण मसलों में संयुक्त राष्ट्र संघ की सुनता कोई नहीं। संयुक्त राष्ट्र संघ उस लाचार और बेबस, अशक्त माता पिता की तरह है जिनकी नकार खाने में सुनना चाहते ही नहीं, वीटो पावर यह पावर सिर्फ 5 देशों के पास है जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चाइना और रूस इन 5 दशों के पास वीटो पावर वर्तमान में मौजूद हैं।
हम थोड़ा आगे बढ़ते हुए उदाहरण से समझेंगे मान लीजिए कि कहीं युद्ध चल रहा है और उस देश में कोई तानाशाह शासक जनता पर कहर बरपा रहा है तो यूएन में दुनियां के सभी देश बैठकर मीटिंग करेंगे जिसमें अगर यह 5 वीटो पावर वाले देश राजी हो जाते हैं कि उस देश में जो शासक हैं उसको हटाकर किसी नए शासक को सत्ता सौंप दी जाए तो दुनियां की सभी शक्ति मिलकर उस देश के शासक को हटा देंगे और कोई नया शासक उस देश को सौंप देंगे। लेकिन इन पांचों देशों में से कोई एक भी देश वीटो पावर अपना इस्तेमाल करें तो सिर्फ चार देश मिलकर किसी भी डिसीजन पर नहीं पहुंच सकते हैं।
साथियों बात अगर हम भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सदस्यता की करें तो, अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का समर्थन किया है। विकासशील देशों का बेहतर प्रतिनिधित्व हो सके इसलिए यूएनएससी में सुधार की जरूरत है। इसे लेकर अमेरिकी विदेश मंत्री ने दिनांक 23 सितंबर 2024 को कहा कि अमेरिका ने लंबे समय से भारत-जापान और जर्मनी के लिए परिषद में स्थायी सीटों का समर्थन किया है। सोमवार को न्यूयॉर्क में 79वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में भविष्य के शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए अमेरिका ने अफ्रीका के लिए दो स्थायी सीटों, छोटे द्वीप विकासशील देशों के लिए एक रोटेशन सीट, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन के लिए स्थायी प्रतिनिधित्व पर अमेरिका का विचार रखा। उन्होने कहा, विकासशील देशों और अधिक व्यापक रूप से आज की दुनिया का बेहतर प्रतिनिधित्व करने के लिए यूएनएससी में सुधार जरूरी है।
अमेरिका का मानना है कि इसमें अफ्रीका के लिए दो स्थायी सीटें, छोटे द्वीप विकासशील देशों के लिए एक रोटेशनल सीट और लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के लिए स्थायी प्रतिनिधित्व शामिल होना चाहिए। देशों के लिए स्थायी सीटों के अलावा हमने लंबे समय से जर्मनी, जापान और भारत का स्थाई सीट के लिए समर्थन किया है। उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका परिषद सुधारों पर तुरंत बातचीत का समर्थन करता है। भारत ने विकासशील दुनिया के हितों का बेहतर तरीके से प्रतिनिधित्व करने के लिए लंबे समय से सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट मांगी है। दुनिया के कई देशों ने इसका समर्थन किया है। यूएनएससी 15 सदस्यों से बना समूह है। इसके पांच स्थायी सदस्य हैं, जिनके पास वीटो की शक्ति है। 10 गैर-स्थायी सदस्य शामिल हैं जो दो साल के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं। पांच स्थायी सदस्यों में चीन, यूके, फ्रांस, रूस और अमेरिका हैं। सोमवार को पीएम मोदी ने भविष्य के शिखर सम्मेलन में बोलते हुए वैश्विक संस्थानों में सुधार का आह्वान किया और सुधारों को प्रासंगिकता की कुंजी करार दिया।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि संयुक्त राष्ट्र महासभा का 79 वां सत्र 24-30 सितंबर 2024- वैश्विक मुद्दों का समाधान ढूंढने 194 से अधिक देशों की बैठक वैश्विक भविष्य की सोच में मानव केंद्रित दृष्टिकोण को सर्वोच्च प्राथमिकता देना समय की मांग। भारत सहित कई देश संयुक्त राष्ट्र संघ, यूएनएससी व वीटो पावर के विस्तार सहित अनेक बदलाव कर 194 सदस्यों वाले इस अंतरराष्ट्रीय मंच को पावरफुल व सशक्त बनाना चाहतें है।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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