तीसरे वर्चुअल वॉइस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन भारत, 17 अगस्त 2024 का आगाज

एक सतत भविष्य के लिए एक सशक्त वैश्विक दक्षिण- 123 देशों के नेताओं मंत्रियों ने हिस्सा लिया
ग्लोबल साउथ की चिंताओं का समाधान, समावेशी ग्लोबल गवर्नेंस पर निर्भर करता है, जिसके लिए ग्लोबल साउथ और नॉर्थ की दूरी कम करने का सराहनीय विचार- एड. के.एस. भावनानी

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनियां की नज़रें भारत की वर्चुअल मेजबानी में 17 अगस्त 2024 को संपन्न हुए तीसरे वाइस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन पर लगी हुई थी, जिसमें 123 सदस्यों ने हिस्सा लिया। विशेष उल्लेखनीय है कि इसमें चीन और पाकिस्तान को आमंत्रित नहीं किया गया था, क्योंकि वे पिछले वर्ष दूसरे सम्मेलन में भी शामिल नहीं हुए थे। ग्लोबल साउथ में ऐसे देश शामिल है जो विकासशील, गरीब, सतत संघर्ष कर रहे हैं और ग्लोबल नॉर्थ में ऐसे देश शामिल है जो पूर्ण रूप से विकसित हैं इसलिए ग्लोबल साउथ और नॉर्थ में तालमेल बैठाने की सख्त जरूरत है जिसका संभावित नेतृत्व भारत करने की कोशिश कर रहा है।

बता दें बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख यूनुस भी शामिल हुए, इस समिट में कुल 123 देशों ने हिस्सा लिया, जिसमें भारत भी शामिल था। 21 देशों ने नेताओं के सत्र में भाग लिया, जबकि 118 मंत्रियों ने डिजिटल, व्यापार और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर अलग-अलग सत्रों में भाग लिया। विदेश मंत्रियों के लिए आयोजित दो सत्रों में कुल 34 देशों ने भाग लिया। बांग्लादेश के अंतरिम सरकार प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने नेताओं के सत्र में भाग लिया। उन्होंने पिछली सरकार के पतन के बाद अपने देश की स्थिति और भू-राजनीति, कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सहित दुनिया के सामने आने वाली चुनौतियों पर बात की। विकास समझौते के अलावा, कुछ अन्य घोषणाएं भी महत्वपूर्ण हैं।

वैश्विक दक्षिण की विकास यात्रा में नीति आंकलन और व्यापार में हिस्सेदारी कमजोर कड़ी रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, क्षमता निर्माण के लिए 2.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर और व्यापार नीति निर्माण में प्रशिक्षण के लिए 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर के एक विशेष फंड की घोषणा की गई है। भारत ने 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर के प्रारंभिक योगदान के साथ एक सामाजिक प्रभाव कोष की स्थापना की भी घोषणा की। आरआईएस के एक अध्ययन के अनुसार, भारत वर्तमान में वैश्विक दक्षिण में विभिन्न साझेदार देशों को सालाना लगभग 7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान देता है। चूंकि एक सतत भविष्य के लिए एक सशक्त ग्लोबल साउथ दक्षिण बनाना है, क्योंकि इनकी चुनौतियों को अनसुना किया जाता है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इसआर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, ग्लोबल साउथ की चिंताओं का समाधान समावेशी ग्लोबल गवर्नेंस पर निर्भर करता है, जिसके लिए ग्लोबल साउथ और नॉर्थ की दूरी कम करने का सराहनीय विचार है।

साथियों बात अगर हम तीसरे वॉइस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन के आगाज की करें तो, इसके उद्घाटन पर उन्होने एक नए वैचारिक ढांचे के साथ दक्षिण के देशों के आपसी संबंधो की शर्तों को पुनः संतुलित करने का प्रयास किया है। जिसे उन्होंने डेवलपमेंट कॉम्पैक्ट के रूप में वर्णित किया। इस अवधारणा के पीछे का विचार एक सामंजस्यपूर्ण तरीके से आपसी जुड़ाव के पांच अलग-अलग तौर-तरीकों का समान लाभ होना है। ये हैं क्षमता निर्माण, प्रौद्योगिकी साझाकरण, विकास के लिए व्यापार, अनुदान और सबसे महत्वपूर्ण, रियायती वित्त, यदि अच्छी तरह से कार्यान्वित किया जाता है, तो भारत की विकास में साझेदारी के साथ व्यापक जुड़ाव के लिए एक नई आधार रेखा स्थापित करेगा।

वैश्विक दक्षिण के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है कि वह बुनियादी बातों पर वापस जाए और विकास के उस विचार पर फिर से गौर करे जो वैश्विक नीति परिदृश्य से गायब हो गए हैं। रीगनवाद और थैचरवाद के नेतृत्व में वित्त संचालित वैश्वीकरण और व्यापार डब्ल्यूटीओ में पुनः व्यवस्थित करने के एक परिवर्तन ने विकासशील देशों के लिए नीतिगत स्थान को पूरी तरह से छीन लिया। इसने एक तरह से उन आशंकाओं को पुष्ट किया जो राउल प्रीबिश और अन्य लोगों के केंद्र-परिधि सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया था। वाशिंगटन विकास मॉडल के पतन के बाद से, वोग्स ने आर्थिक विकास सामाजिक समावेश और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशने के लिए अपने नए अवतार में विकास पर चर्चा करने की नई आशा दी है। विकास के आपसी संबंधों की विडम्बना ऐसी है कि मदद के नाम पर सिर्फ कर्जा ही बढ़ा है।

अंकटाड (2023) के आंकड़े कहते हैं 2023 में विकासशील देशों का सार्वजनिक ऋण 29 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर था। 2023 में विकासशील देशों के सार्वजनिक ऋण पर शुद्ध ब्याज भुगतान 847 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 54 विकासशील देश अपने राजस्व का 10 प्रतिशत से अधिक शुद्ध ब्याज भुगतान पर खर्च करते हैं। इस कर्जे का एक बड़ा कारण विकास के नए मार्गों की चिंता नहीं करना था। यहां, यह भी याद रखना आवश्यक है कि जीएनपी का 0.7 प्रतिशत प्रदान करने के वैश्विक स्तर पर सहमत संयुक्त राष्ट्र के 1970 के लक्ष्य को पूरा करने में भी ओईसीडी देशों की लगातार विफलता के कारण ऋण संकट और बढ़ गया है। ओडीए, जो कभी साकार नहीं हो सका। जलवायु परिवर्तन पर उनकी 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता के साथ भी यही हुआ। चीन जैसे देशों ने कर्जे की मार को और बढाया ही है। इस संबंध में, विकास के अनुभवों और नीति निर्माण पर अंतर्दृष्टि का पारस्परिक आदान प्रदान नए विकल्प विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस वर्ष के थीम सतत भविष्य के लिए वैश्विक दक्षिण को सशक्त बनाना के साथ, शिखर सम्मेलन ने वैकल्पिक विकास प्रतिमान विकसित करने के लिए एक-दूसरे के अनुभवों, अंतर्दृष्टि और संभावनाओं को साझा करने पर ध्यान केंद्रित किया है। विचार यह है कि इस विकास कथा को दक्षिणी अनुभवों और दृष्टिकोणों पर आधारित किया जाए, दक्षिणी आशाओं और आकांक्षाओं को संबोधित किया जाए।

साथियों बात अगर हम शिखर सम्मेलन में माननीय पीएम के संबोधन की करें तो, उन्होने अपनी बात रखते हुए कहा कि ये पहल मानव केंद्रित और विकास की दिशा में मल्टी डाइमेंशनल साबित होगा। पहल डेवलपमेंट फाइनेंस के नाम पर जरूरतमंद देशों को कर्ज के तले नहीं दबाएगी। उन्होंने कहा कि इसकी नींव भारत की खुद की विकास यात्रा के सुझाव से प्रेरित है और ये पहल पार्टनर देशों के संतुलित और समावेशी विकास में मदद करेगा। पीएम ने बताया कि इस कॉम्पैक्ट के तहत ट्रेड फॉर डेवलपमेंट, कैपेसिटी बिल्डिंग फॉर सस्टेनेबल ग्रोथ, टेक्नोलॉजी शेयरिंग, व्यापार से जुड़ी गतिविधियों और ग्रांट्स पर फोकस करेंगे। पीएम ने आगे कहा कि भारत ग्लोबल साउथ के देशों में फाइनेंशियल स्ट्रेस और डेवलपमेंट फंडिंग के लिए एसडीजी स्टिमुलस लीडर्स ग्रुप में सहयोग दे रहा है। इसके पीएम ने आगे कहा कि ग्लोबल साउथ की चिंताओं का समाधान समावेशी ग्लोबल गवर्नेंस पर निर्भर करता है और ग्लोबल साउथ और ऩॉर्थ के बीच की दूरी को कम करने के लिए कदम उठाए जाने जरूरी हैं।

उन्होंने चुनौतियों का जिक्र करते हुए उद्घाटन सेशन को संबोधित करते हुए पीएम ने कहा कि वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट एक ऐसा मंच है, जहां हम उन लोगों की जरुरतों और आकांक्षाओं को आवाज जाती है, जिन्हें अभी तक अनसुना किया गया। आगे कहा कि आज हम ऐसे समय में मिल रहे हैं जब अनिश्चितताओं का माहौल है। हम भोजन स्वास्थ्य ऊर्जा और सुरक्षा की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। कोविड के असर से दुनियां निकल नहीं पाई है और दूसरी ओर युद्ध के हालात ने हमारी विकास यात्रा के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। इसके साथ ही उन्होने आतंकवाद अतिवाद और अलगाववाद की समस्या का भी जिक्र किया। आगे कहा कि टेक्नोलॉजी डिवाइड और इससे जुड़ी आर्थिक और सामाजिक चुनौतियां भी सामने आ रही हैं।

भारत ग्लोबल साउथ के सभी देशों के साथ अपने अनुभव, अपनी क्षमताएं साझा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होने बताया कि किस तरह भारत ने ग्लोबल साउथ के कई देशों को यूपीआई के साथ जोड़ने की दिशा में कोशिशें की हैं। पीएम ने मानवीय आपदाओं और संघर्षों में मानवीय मदद को लेकर भारत की भूमिका का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि दुनिया की दूसरे आपदाओं और तनाव क्षेत्रों के साथ साथ गाजा और यूक्रेन जैसे संघर्ष के क्षेत्रों में भी मदद की गई है। उन्होंने सभी देशों से एक सकारात्मक अप्रोच के साथ आगे बढ़ने की भी अपील की, पीएम ने ये भी कहा कि अगले महीने यूएन में होने वाली समिट ऑफ द फ्यूचर के लिए ये महत्वपूर्ण सुझाव बन सकते हैं।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि तीसरे वर्चुअल वॉइस ऑफ़ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन भारत,17 अगस्त 2024 का आगाज़।एक सतत भविष्य के लिए एक सशक्त वैश्विक दक्षिण- 123 देशों के नेताओं मंत्रियों ने हिस्सा लिया।ग्लोबल साउथ की चिंताओं का समाधान समावेशी ग्लोबल गवर्नेंस पर निर्भर करता है,जिसके लिए ग्लोबल साउथ और नॉर्थ की दूरी कम करने का सराहनीय विचार है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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