केंद्रीय हिंदी समिति की 32वीं बैठक

युवा पीढ़ी की 100 प्रतिशत क्षमता उपयोग करने, अपनी मातृभाषा में पढ़ना, सोचना, विश्लेषण करना जरूरी

विश्व में 11 शास्त्रीय भाषाओं वाला भारत इकलौता देश बना
भारत में इंजीनियरिंग मेडिकल प्राथमिक व सेकेंडरी शिक्षा भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होने से सभी भाषाओं के विकास का अनुकूल माहौल सराहनीय- अधिवक्ता के.एस. भावनानी

अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया के देशों को सर्वविदित है कि भारत अनेक जातियों भाषाओं धर्मों का एक गढ़ है, जहां हर समूह अपनी भाषाओं की मिठास और समृद्धि को महकाते हुए अपनी मातृभाषा की धरोहर संजोए हुई है। भारत बहुत भारी तादाद में हर समाज, भाषाओं, उपभाषाओं, बोलियां में अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करता है। यह भाषाएं व बोलियां इतनी मीठी होती है कि हर भाषा को बोलने के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है कि काश मैं यह भाषा बोल पाता। तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, सिंधी, संस्कृत, बंगाली, मराठी, असमिया, राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती, भोजपुरी, हरियाणवी सहित पूरे भारत में हजारों, लाखों बोलियां है, जिनकी मिठास का अद्भुत आगाज होता है, परंतु हमारे संविधान निर्माता और बाद में संशोधन द्वारा भारत में संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को दर्ज किया गया है जिसमें केंद्र व राज्य सरकारें भी बहुत सहायता करती है।

विशेष रूप से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में तो मातृभाषाओं को बहुत अधिक महत्व दिया गया है फिर भी हिंदी एक ऐसी भाषा है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानी वह समझी जाती है। यह राजकीय भाषा है जिसे राष्ट्रीय भाषा बनाने के प्रयास दशकों से चल रहा है। इस विषय पर आज हम बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि दिनांक 4 नवंबर 2024 को देर रात्रि केंद्रीय हिंदी समिति की 32वीं बैठक नई दिल्ली में समाप्त हुई। जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय गृहमंत्री ने की जिसमें 9 केंद्रीय मंत्री, 6 राज्यों के मुख्यमंत्री, संसदीय राजभाषा समिति के अध्यक्ष एवं 3 संयोजकों सहित कुल 21 सदस्य हैं, सभी उपस्थित थे।

बता दें विश्व में 11 शास्त्रीय भाषाओं वाला भारत एक इकलौता देश है, तथा भारत में इंजीनियरिंग, मेडिकल, प्राथमिक व सेकेंडरी शिक्षा भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होने से सभी भाषाओं के विकास को अनुकूल माहौल सराहनीय है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, केंद्रीय हिंदी समिति की 32वीं बैठक का आगाज, युवा पीढ़ी की 100 प्रतिशत क्षमता का उपयोग करने के लिए अपनी मातृभाषा में पढ़ना, सोचना व विश्लेषण करना ज़रूरी है।

साथियों बात अगर हम 4 नवंबर 2024 को देर रात्रि समाप्त हुई 32वीं केंद्रीय हिंदी समिति की बैठक के आगाज की करें तो, दिल्ली में केंद्रीय हिंदी समिति की 32वीं बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री ने भाग लिया। उन्होंने कहा कि भाषाओं के संरक्षण को लेकर मोदी सरकार के कार्यकाल में खूब काम किया गया। समय-समय पर इसके लिए प्रचार भी किए जाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि पीएम के नेतृत्व वाली सरकार में कुछ समय पहले ही पांच और भारतीय भाषाओं को शास्त्रीय भाषा में शामिल किया गया, केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि केंद्रीय हिंदी समिति इस उद्देश्य से काम करती है कि हिंदी साहित्य का संरक्षण किया जाना चाहिए, उन्होंने कहा कि हिंदी को इस्तेमाल करके देश की संपर्क भाषा के रूप में स्थापित की जाए। भाषा सशक्त बनाने के लिए सरकार ने पिछले 5 सालों में किए गए कामों को लेकर बताया कि हिंदी शब्द सिंधु शब्दकोष को तैयार किया गया है।

उन्होंने कहा कि आने वाले 5 सालों में इसे इतना ज्यादा इस्तेमाल किया जाएगा कि ये दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला शब्दकोष बन जाएगा। उन्होंने हिंदी की शक्ति को बताते हुए कहा कि जब तक हम सभी भारतीय भाषाओं को मजबूत करने कि दिशा में काम रहे होते हैं तो इससे हम अपने विकास को मजबूत करते हैं, उन्होंने भारतीय भाषाओं को लेकर आंकड़ों के जरिए बताया कि 11 भाषाओं को शास्त्रीय भाषाओं में शामिल करने वाला अकेला एकमात्र देश है। पीएम ने सभी सार्वजनिक मंचों से हिंदी भाषा के इस्तेमाल और बोले जाने के लिए देशवासियों को प्रेरित किया है। पीएम ने हिंदी भाषा के व्यापक तौर पर प्रचार-प्रसार के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी इसके बारे में चर्चा की है। उन्होंने कहा कि सभी अंतरराष्ट्रीय मंच पर हिंदी में अपनी बात को कह कर पीएम ने इसके प्रचार में बेजोड़ काम किया है। जब बच्चे अपने शुरुआती शिक्षा को ग्रहण की शुरुआत मातृभाषा में करते हैं तो वो अपनी क्षमताओं का पूरा विकास कर सकते हैं।

साथियों बात अगर हम दुनिया के इकलौते देश भारत में 11 शास्त्रीय भाषाओं की करें तो (1) तमिल- 2004 (2) संस्कृत- 2005 (3) तेलुगु- 2008 (4) कन्नड़- 2008 (5) मलयालम- 2013 (6) उड़िया- 2014 (7) मराठी- 2024 (8) पाली- 2024 (9) प्राकृत- 2024 (10) असमियाँ- 2024 (11) बंगाली- 2024 शास्त्रीय भाषा के मानदंडो के अनुसार, भाषा का 1500 से 2000 पुराना रिकॉर्ड होना चाहिए, साथ ही भाषा का प्राचीन साहित्य/ग्रंथो का संग्रह होना चाहिए। शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त होने के बाद प्राचीन साहित्यिक धरोहर जैसे ग्रंथों, कविताओं, नाटकों आदि का डिजिटलीकरण और संरक्षण किया जाता है। इससे आने वाली पीढ़ियाँ उस धरोहर को समझ और सराह सकती हैं।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से उस भाषा और उसकी सांस्कृतिक विरासत के प्रति समाज में जागरूकता और सम्मान दोनों बढ़ता है, साथ ही उस भाषा के दीर्घकालिक संरक्षण और विकास को भी गति मिलती है। सरकार ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है, जिससे भारत में शास्त्रीय भाषाओं की संख्या बढ़कर 11 हो गई है। इन भाषाओं का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है और शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से इनके संरक्षण, अध्ययन और शोध को बढ़ावा मिलेगा। बता दें साल 2013 में तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा था, जिसे अब मंजूरी मिल गई है, यह फैसला महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से ठीक पहले आया है, जिसे एक राजनीतिक कदम भी माना जा रहा है।

साथियों बात अगर हम समिति के बारे में समझने की करें तो केन्द्रीय हिन्दी समिति हिन्दी के प्रचार-प्रसार तथा प्रगामी प्रयोग के संबंध में दिशा-निर्देश देने वाली सर्वोच्च समिति है। समिति का कार्य हिन्दी के विकास और प्रसार में भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे कार्यों और कार्यक्रमों का समन्वय करना है। अपने काम के निष्पादन में सहायता देने के लिए समिति को आवश्यकतानुसार उप-समितियां नियुक्त करने और अतिरिक्त सदस्य सहयोजित करने का अधिकार है। समिति का कार्यकाल सामान्‍यत: तीन वर्ष का होता है। वर्तमान समिति का पुनर्गठन 09 नवंबर, 2021 को किया गया था।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि केंद्रीय हिंदी समिति की 32वीं बैठक का आगाज- युवा पीढ़ी की 100 प्रतिशत क्षमता उपयोग करने, अपनी मातृभाषा में पढ़ना, सोचना, विश्लेषण करना जरूरी। विश्व में 11 शास्त्रीय भाषाओं वाला भारत इकलौता देश बना। भारत में इंजीनियरिंग मेडिकल प्राथमिक व सेकेंडरी शिक्षा भारतीय भाषाओं में उपलब्ध होने से सभी भाषाओं के विकास का अनुकूल माहौल सराहनीय।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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