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हमारा हिंदुस्तान जन्नत का वो बगीचा है, जहां तहजीब का हर रंग फला फूला है
जहान-ए-खुसरो सूफी संगीत महोत्सव एक सांस्कृतिक आंदोलन बन चुका है, पूरी दुनिया के सूफी संगीतकार कवि कलाकार विविधता में एकता का परिचय दे रहें – अधिवक्ता के.एस. भावनानी
अधिवक्ता किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया जानती है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां 142.8 करोड़ जनसंख्या में हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई सहित हजारों लाखों जातियां उपजातियां व अन्य धर्म के लोग एक साथ प्यार मोहब्बत सद्भाव से रहते हैं, जिसे देखकर दुनिया भी दंग है। शायद इसलिए ही सैलानियों के भारत भ्रमण के अनेक कारणों में से यह भी एक कारण हो सकता है। बीते शाम हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने ट्वीट करते हुए कहा था, मैं कल 28 फरवरी को शाम 7:30 बजे दिल्ली के सुंदर नर्सरी में जहान-ए-खुसरो में शामिल होऊंगा, यह महोत्सव का 25वां संस्करण है, जो सूफी संगीत और संस्कृति को लोकप्रिय बनाने का एक सराहनीय प्रयास है। मैं कल के कार्यक्रम के दौरान नजर-ए-कृष्णा को देखने के लिए उत्सुक हूं। पीएमओ ने अपने बयान में कहा, प्रधानमंत्री देश की विविध कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रबल समर्थक रहे हैं, इसी के तहत वह जहान-ए-खुसरो में भाग लेंगे, जो सूफी संगीत, कविता और नृत्य को समर्पित एक अंतरराष्ट्रीय महोत्सव है।
जहान-ए-खुसरो हर साल होने वाला एक सूफी संगीत महोत्सव है, जो तीन दिन दिल्ली में आयोजित किया जाता है। यह कार्यक्रम सूफी आमिर खुसरो की मृत्यु वार्षिकी के मौके पर किया जाता है। जहान-ए-ख़ुसरो की शुरुआत साल 2001 में मशहूर फिल्म निर्माता और कलाकार मुजफ्फर अली ने की थी। जहान-ए-खुसरो के इस आयोजन में एक अलग खुशबू है। ये खुशबू हिन्दुस्तान की मिट्टी की है। वो हिन्दुस्तान जिसकी तुलना हजरत अमीर खुसरो ने जन्नत से की थी। हमारा हिन्दुस्तान जन्नत का वो बगीचा है, जहां तहजीब का हर रंग फला-फूला है। यहां की मिट्टी के मिजाज में ही कुछ खास है। शायद इसलिए जब सूफी परंपरा हिन्दुस्तान आई, तो उसे भी लगा जैसे वो अपनी ही जमीन से जुड़ गई हो। यहां बाबा फरीद की रूहानी बातों ने दिलों को सुकून दिया। हजरत निजामुद्दीन की महफिलों ने मोहब्बत के दीये जलाए। हजरत अमीर खुसरो की बोलियों ने नए मोती पिरोए और जो नतीजा निकला, वो हजरत खुसरो की इन मशहूर पंक्तियों में व्यक्त हुआ।
बन के पंछी भए बावरे, बन के पंछी भए बावरे, ऐसी बीन बजाई सँवारे, तार तार की तान निराली, झूम रही सब वन की डारी।
भारत में सूफी परंपरा ने अपनी एक अलग पहचान बनाई। सूफी संतों ने खुदको महज मस्जिदों या खानकाहों तक सीमित नहीं रखा, उन्होंने पवित्र कुरान के हर्फ पढ़े, तो वेदों के स्वर भी सुने। उन्होंने अजान की सदा में भक्ति के गीतों की मिठास जोड़ी और इसलिए उपनिषद जिसे संस्कृत में एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति कहते थे, हजरत निजामुद्दीन औलिया ने वही बात हर कौम रास्त राहे, दीने व किब्ला गाहे जैसे सूफी गीत गाकर कही। अलग-अलग भाषा, शैली और शब्द लेकिन संदेश वही, मुझे खुशी है कि आज जहान-ए- खुसरो उसी परंपरा की एक आधुनिक पहचान बन गया है।
आज हम इस विषय पर इसलिए बात कर रहे हैं क्योंकि माननीय पीएम ने इस महोत्सव में किए संबोधन को मैंने स्वयं मीडिया चैनलों पर सुना जिसमें पीएम बहुत ही जोश में थे और दिल्ली में इस मौके पर हो रही बारिश को भी खुसरो से जोड़ा व बाजार घूम कर लोगों से दुआ सलाम कर बात भी की। सूफी संगीत महोत्सव जहान-ए-खुसरो की 25 वीं वर्षगांठ है जो 28 फरवरी से 2 मार्च 2025 तक चलेगी, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, जहान-ए-खुसरो सूफी संगीत महोत्सव एक सांस्कृतिक आंदोलन बन चुका है, पूरी दुनिया के सूफी संगीतकार कई कलाकार विविधता में एकता का परिचय देंगे।
साथियों बात अगर हम सूफी संगीत महोत्सव जहान-ए-खुसरो की करें तो, 25 वर्षों की सांस्कृतिक यात्रा मुजफ्फर अली द्वारा स्थापित जहान-ए-खुसरो महोत्सव पिछले 25 वर्षों में दुनिया भर में 30 संस्करणों के साथ एक सांस्कृतिक आंदोलन बन चुका है। यह महोत्सव सूफी परंपराओं को पुनर्जीवित करने और रूमी, अमीर खुसरो, बाबा बुल्ले शाह, लल्लेश्वरी जैसे महान संतों की शिक्षाओं को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करने का कार्य कर रहा है। महोत्सव के संस्थापक मुजफ्फर अली ने मीडिया में बताया कि जहान-ए- खुसरो का जन्म संतों की वाणी और रहस्यवादियों की धुनों से हुआ था। 25 वर्षों से यह एक ऐसा मंच रहा है जहां संगीत, कविता और भक्ति का संगम होता है। इस महोत्सव के माध्यम से हम प्रेम और एकता के संदेश को फैलाते हैं।
इस वर्ष का महोत्सव विविधता में एकता विषय पर केंद्रित है। इसमें दुनिया भर के सूफी संगीतकार, कवि और कलाकार शामिल होंगे। इसके अलावा, महोत्सव में TEH बाज़ार नामक शिल्प प्रदर्शनी भी होगी। इसमें भारत के समृद्ध विरासत शिल्प, साहित्यिक चर्चाएं, फिल्म स्क्रीनिंग और सूफी-प्रेरित पाक कला का अनुभव प्रस्तुत किया जाएगा। विकास भी, विरासत भी के दृष्टिकोण से मेल खाता यह आयोजन पीएम मोदी की उपस्थिति उनकी विकास भी, विरासत भी नीति को भी मजबूत करती है। इसमें भारत की प्रगति को आगे बढ़ाने के साथ-साथ उसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जड़ों को संरक्षित रखने पर भी जोर दिया जाता है। जहान-ए-खुसरो महोत्सव वसुधैव कुटुंबकम के दृष्टिकोण को साकार करता है जो संगीत, प्रेम और आध्यात्मिक उत्कृष्टता के माध्यम से पूरी दुनिया को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य कर रहा है।
किसी भी देश की सभ्यता, उसकी तहजीब को स्वर, उसके गीत, संगीत से मिलती है। उसकी अभिव्यक्ति कला से होती है। हजरत खुसरो कहते थे भारत के इस संगीत में एक सम्मोहन है। एक ऐसा सम्मोहन कि जंगल में हिरण अपने जीवन का डर भूलकर स्थिर हो जाते थे। भारतीय संगीत के इस समंदर में सूफी संगीत एक अलग रौ के तौर पर आकर के मिला था और ये समंदर की खूबसूरत लहर बन गया। जब सूफी संगीत और शास्त्रीय संगीत की वो प्राचीन धाराएं एक दूसरे से जुड़ी, तो हमें प्रेम और भक्ति की नई कल-कल सुनने को मिली। यही हमें हजरत खुसरो की कव्वाली में मिली। यहीं हमें बाबा फरीद के दोहे मिले। बुल्ले-शाह के स्वर मिले, मीर के गीत मिले, यहां हमें कबीर भी मिले, रहीम भी मिले और रसखान भी मिले। इन संतों और औलियायों ने भक्ति को एक नया आयाम दिया।
आप चाहे सूरदास को पढ़ें या रहीम और रसखान को या फिर आप आंख बंद करके हजरत खुसरो को सुने, जब आप गहराई में उतरते हैं, तो उसी एक जगह पहुंचते हैं, ये जगह है अध्यात्मिक प्रेम की वो ऊंचाई जहां इंसानी बंदिशें टूट जाती हैं और इंसान और ईश्वर का मिलन महसूस होता है। आप देखिए, हमारे रसखान मुस्लिम थे, लेकिन वो हरि भक्त थे। रसखान भी कहते हैं- प्रेम हरी को रूप है, त्यों हरि प्रेम स्वरूप। एक होई द्वै यों लसैं, ज्यौं सूरज अरु धूप॥ यानी प्रेम और हरि दोनों वैसे ही एक ही रूप हैं, जैसे सूरज और धूप और यही एहसास तो हजरत खुसरो को भी हुआ था। उन्होंने लिखा था खुसरो दरिया प्रेम का, सो उलटी वा की धार। जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार।। यानी प्रेम में डूबने से ही भेद की बाधाएं पार होती हैं। यहां अभी जो भव्य प्रस्तुति हुई, उसमें भी हमने यही महसूस किया है।
साथियों बात अगर हम दिनांक 28 फरवरी 2025 को माननीय प्रधानमंत्री ने 25 वें सूफी संगीत महोत्सव जहां एक खुसरो के कार्यक्रम को संबोधन की करने तो उन्होंने ने अपने संदेश में कहा, भारत आध्यात्मिकता, कला और संस्कृति से समृद्ध भूमि है। संगीत हमारे सामाजिक – सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। सूफी संगीत की गूंज समाज और राष्ट्रों के बीच शांति, सद्भाव और मैत्री का सेतु बनाएगी। उन्होंने आशा जताई है कि जहान-ए-खुसरो का यह रजत जयंती संस्करण अविस्मरणीय और अत्यंत सफल रहेगा। पीएम ने रमजान की मुबारकबाद दी। पीएम मोदी ने कहा कि रमजान का मुबारक महीना भी शुरू होने वाला है, मैं आप सभी को और सभी देशवासियों को रमजान की भी मुबारकबाद देता हूं। ऐसे मौके देश की कला संस्कृति के लिए तो जरूरी होते ही है, साथ ही इनसे एक सुकून भी मिलता है। जहान-ए-खुसरो का ये सिलसिला अपने 25 साल पूरा कर रहा है। इन 25 वर्षों में इस आयोजन का लोगों के जहन में जगह बना लेना अपने आप में बड़ी कामयाबी है।
सूफी परंपरा ने न केवल इंसान की रूहानी दूरियों को दूर किया, बल्कि दुनिया की दूरियों को भी कम किया है। मुझे याद है साल 2015 में जब मैं अफगानिस्तान की पर्लियामेंट में गया था, तो वहां मैंने बड़े भाव भरे शब्दों में रूमी को याद किया था। आठ शताब्दी पहले रूमी वहां के ही बल्ख प्रांत में पैदा हुए थे। मैं रूमी के लिखे का हिंदी का एक तरजुमा जरूर यहां दोहराना चाहूंगा क्योंकि ये शब्द आज भी उतने ही प्रासंगिक है। रूमी ने कहा था, शब्दों को ऊंचाई दें, आवाज को नहीं, क्योंकि फूल बारिश में पैदा होते हैं, तूफान में नहीं।। उनकी एक और बात मुझे याद आती है, मैं थोड़ा देशज शब्दों में कहूं, तो उसका अर्थ है, मैं न पूरब का हूं न पश्चिम का, न मैं समंदर से निकला हूं और न मैं जमीन से आया हूं, मेरी जगह कोई नहीं है। मैं किसी जगह का नहीं हूं अर्थात मैं सब जगह हूं। ये विचार, ये दर्शन वसुधैव कुटुंबकम की हमारी भावना से अलग नहीं है। जब मैं दुनिया के विभिन्न देशों में भारत का प्रतिनिधित्व करता हूं, तो इन विचारों से मुझे ताकत मिलती है।
मुझे याद है, जब मैं ईरान गया था, तो ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस के समय मैंने वहां मिर्जा गालिब का एक शेर पढ़ा था- जनूनत गरबे, नफ्से-खुद, तमाम अस्तजे-काशी, पा-बे काशान, नीम गाम अस्त॥
अर्थात, जब हम जागते हैं तो हमें काशी और काशान की दूरी केवल आधा कदम ही दिखती है। वाकई, आज की दुनिया के लिए, जहां युद्ध मानवता का इतना बड़ा नुकसान कर रहा है, वहां ये संदेश कितने काम आ सकता हैं। हजरत अमीर खुसरो को तूती-ए हिन्द’ कहा जाता है। भारत की तारीफ में, भारत से प्रेम में उन्होंने जो गीत गाये हैं, हिंदुस्तान की महानता और मन मोहकता का जो वर्णन किया है, वो उनकी किताब नुह-सिप्हर में देखने को मिलता है। हजरत खुसरो ने भारत को उस दौर की दुनिया के तमाम बड़े देशों से महान बताया। उन्होंने संस्कृत को दुनिया की सबसे बेहतरीन भाषा बताया। वो भारत के मनीषियों को बड़े-बड़े विद्वानों से भी बड़ा मानते हैं। भारत में शून्य का, गणित और विज्ञान और दर्शन का ये ज्ञान कैसे बाकी दुनिया तक पहुंचा, कैसे भारत का गणित अरब पहुंचकर वहां पर जाकर के हिंदसा के नाम से जाना गया।
हजरत खुसरो न केवल अपनी किताबों में उसका ज़िक्र करते हैं, बल्कि उस पर गर्व भी करते हैं। गुलामी के लंबे कालखंड में जब इतना कुछ तबाह किया गया, अगर आज हम अपने अतीत से परिचित हैं, तो इसमें हजरत खुसरो की रचनाओं की बड़ी भूमिका है। इस विरासत को हमें निरंतर समृद्ध करते रहना है। मुझे संतोष है, जहान-ए-खुसरो जैसे प्रयास इस दायित्व को बखूबी निभा रहे हैं और अखंड रूप से 25 साल तक ये काम करना, ये छोटी बात नहीं है। मैं मेरे मित्र को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। मैं एक बार फिर आप सभी को इस आयोजन के लिए बधाई देता हूँ। कुछ कठिनाइयों के बीच भी इस समारोह का मजा लेने का कुछ अवसर भी मिल गया, मैं इसके लिए मेरे मित्र का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं, बहुत-बहुत धन्यवाद।
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अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि 25वें सूफी संगीत महोत्सव जहान-ए-खुसरो 28 फ़रवरी से 2 मार्च 2025 का आगाज़। हमारा हिंदुस्तान जन्नत का वो बगीचा है,जहां तहजीब का हर रंग फला फूला है। जहान-ए-खुसरो सूफी संगीत महोत्सव एक सांस्कृतिक आंदोलन बन चुका है, पूरी दुनिया के सूफी संगीतकार कवि कलाकार विविधता में एकता का परिचय दे रहें।
(स्पष्टीकरण : उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। यह जरूरी नहीं है कि कोलकाता हिंदी न्यूज डॉट कॉम इससे सहमत हो। इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।)
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